ग़ालिब - 17.
' असद ' बिस्मिल है किस अंदाज़ का, क़ातिल से कहता है,
कि मश्क ए नाज़ कर, खून ए दो आलम मेरी गरदन पर !!
असद - मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम असदुल्ला खान ग़ालिब.
बिस्मिल - हत, घायल.
मश्क - अभ्यास.
नाज़ - हाव भाव. घमंड.
दो आलम - दोनों दुनिया में.
' Asad ' bismil hai kis andaaz kaa, qaatil se kahtaa hai,
Ki mashq e naaz kar, khoon e do aalam meree garadan par !!
-Ghalib.
वह व्यक्ति जिसका क़त्ल किया जा रहा है, कातिल से चुनौती देते हुए कहता है, मेरा क़त्ल करने के पहले क़त्ल करने का अभ्यास दोनों संसार में सब का क़त्ल करने के बाद कर, क्यों कि मेरा क़त्ल आसान नहीं है. इसके लिए पर्याप्त हुनर और अभ्यास की आवश्यकता है.
यह बेहद चुनौतीपूर्ण और आत्म विश्वास से भरा भाव है. देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है का भाव लिए. प्रेम के सन्दर्भ में लिखा यह शेर पूरे संसार को चुनौती देता हुया दिखता है. कुछ विद्वानों ने इसे आतताइयों को चुनौती के सन्दर्भ में इसे माना है. आततायी कितना भी कठोर क्यों न हो, वह सत्य के समक्ष सफल नहीं हो सकता है. दोनों संसार के सभी लोगों का क़त्ल करने का अनुभव और अभ्यास हो तो भी वह सत्य को न तो पराजित कर सकता है और न ही समाप्त. प्रेम को यहाँ सत्य के रूप में देखा गया है.
-vss.
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