Saturday, 17 September 2016

एक कविता, ज़रा पूछना वक़्त से / विजय शंकर सिंह

कभी उन पर भी करम हो ,
कभी उन पर भी तरस खाइये
कभी वे भी तो मुस्कुराएं
कभी उन्हें भी तो बुलाइये !

वक़्त ने कितने सितम ,
उनको भी तो दिखाएँ हैं .
ज़ख्म धूप ने दिए हैं कितने
फिर भी वे टूटे न झुके
और न भुलाया तुमको !

गर्दिश ए दौराँ ने,
मुश्किल वक़्त के फलसफे ने,
जो रंग दिखाए हैं उन्हें,
कितने जज़्बात,
और लम्हात कितने,
हो गए हैं दफ़न , उनके
दिल के तहखाने में ।

सोचा है कभी , तुमने
गुना है कभी उनको।
रात जब वीरान हो,
हवा जब तुम्हे छू छू कर
सरसराहट सी कहे कुछ,
पूछना, एकांत के इन पलों में
अतीत के सारे सवालों को !

वक़्त बताएगा, तुम्हे सब !
सारे सवालों के जवाब ,
तह कर रखे हैं उसने ।
वह लाजवाब कर देता है,
लाजवाब होता नहीं दोस्त !

( विजय शंकर सिंह )

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