Wednesday 28 September 2016

सऊदी अरब और धर्म का ' रंगभेद ' - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

सुधारवादी आंदोलन सभी धर्मों में चलते रहते है । भले ही वह संख्या बल में कम हो । पर एक बड़ी झील के शांत और गहरे पानी में फेंका गया एक छोटा कंकड़ भी उस पानी को अशांत कर देता है । इस्लाम दुनिया का सबसे रूढ़िवादी और कट्टर धर्म समझा जाता है । कुरआन की किसी आयत के बारे में और हजरत मुहम्मद की परम्पराओं की कथा हदीस के बारे में अगर आप मुस्लिम होते हुए भी शंकालु हैं तो आप कुफ़्र कर रहे हैं और काफ़िर होने का खतरा मोल ले रहे हैं । इन आयतों की व्याख्या भी अगर आप ने परम्परागत सोच के विपरीत की तो भी आप कट्टरपंथ के निशाने पर आ जाएंगे । जब कि सच्चाई यह है कि, कोई भी उद्धरण, कथन और उदाहरण सार्वकालिक नहीं होता है । वह किसी न किसी सन्दर्भ विशेष, या स्थान अथवा काल विशेष में ही कहा गया होता है । स्थान और काल के सापेक्ष ही सब कुछ होता है । निरपेक्ष कुछ भी नहीं होता है । दनिया के सभी धर्मों में एक अद्भुत समानता होती है । वह है धर्म के जानकार, धर्म को रूढ़ बनाये रखना चाहते हैं और वे सभी चाहते हैं कि, धर्म को उन धार्मिक व्यक्तियों के ही नज़रिये से देखा जाय । हर प्रकार की जिज्ञासा , अनुसंधित्सु क्षमता और अध्ययन को वे हतोत्साहित करते हैं । इसी लिए वे नियति, भाग्य , कर्म और जैसी उसकी इच्छा जैसे शब्द गढ़ लेते हैं । ये शब्द कभी कभी हमें अनावश्यक हताशा और श्लाघा से भी बचाते रहते हैं पर धर्म के विभिन्न प्रावधानों के बारे में सवालात तो मन में उठते ही रहते हैं ।

इस्लाम में सवाल कम उठते हैं । इस लिए नहीं कि सवाल वहाँ हैं नहीं या वह पूर्ण धर्म है , बल्कि वहाँ सवाल उठाना कुफ़्र को न्योतना है। हो सकता है कुछ मित्र मेरे इस वाक्य को आक्षेप के रूप में ले लें और वे कुरआन की कोई आयत प्रस्तुत कर के यह साबित करने का प्रयास करें कि, इस्लाम हर शंका का समाधान प्रस्तुत करता है और उदार धर्म है । लेकिन मैं इस से सहमत नहीं हूँ । जहां विचार असह्य और अनुत्तरित होने लगते हैं वहाँ खीज उत्पन्न होने लगती है और वह खीज हिंसा को जन्म देती है । हिंसा, भयभीत करती है । भय उन विचारों और संदेहों को उठने से रोक देता है । इस हिंसा की इजाज़त कुरआन में हो या न हो पर, पर जब आयत न सुनाने पर हिंसा का ही प्राविधान हो तो उस व्यक्ति और उस जमात की सोच पर तरस आता है जो अपने धर्म के लिए लड़ रहा है । दरअसल ये धर्म के रक्षक नहीं है बल्कि धर्म इनकी हिंसा और गर्हित उद्देश्य का एक माध्यम है ।

मेरे एक मित्र खालिद उमर ने फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट मेँ लिखा है कि,
" तब्लीगी जमात , ( यह संगठन इस्लाम का प्रचार प्रसार, गैर इस्लामिक देशों में करता है ) को सभी देश अपने अपने देश में प्रवेश करने के लिए तब तक वीसा न दें जब तक कि, सऊदी अरब अपने देश में ईसाई मिशनरी या अन्य धर्मों के प्रचार के लिए अनुमति नहीं देता है । "
खालिद आगे लिखते हैं,
" फ्रांस में 2300 मस्जिदें हैं और अभी सैकड़ों और मस्जिदों के बनने की योजना है । जब कि सऊदी अरब में एक भी चर्च नहीं है । वहाँ किसी भी गैर मुस्लिम के सार्वजनिक उपासना स्थल नहीं हैं । जब कि, वहाँ, एक करोड़ बीस लाख विदेशी कामगार हैं और वहाँ की अपनी जनसंख्या एक करोड़ नब्बे लाख है । वहाँ एक करोड़ बीस लाख ईसाई, दो लाख पचास हज़ार हिन्दू, सत्तर हज़ार बौद्ध और पैंतालीस हज़ार सिख है । ईसाई आबादी वहाँ की जन संख्या की 4.4 % है पर उनके लिए वहाँ एक भी चर्च नहीं है । वहाँ चौथी सदी का बना हुआ एक भग्न चर्च है जो सिर्फ एक खँडहर है जो जुबैल नामक स्थान में है । वहाँ इस्लाम से किसी अन्य धर्म में परिवर्तन एक दंडनीय अपराध है और वह दंड भी , मृत्यु दंड ही है । "

खालिद की पूरी पोस्ट नीचे मूल रूप में दी गयी है ।
( Via Khalid Umer )
All visas for "Tableeghi Jamat" to the non-Muslim states must be banned until Saudi Arabia open its doors for Christian and other missionaries.

In France there are 2300 mosques with hundreds more planned. In Saudi Arabia there are no churches for Christians and public practice of all non-Muslim religions is prohibited.

Remember there are 12 million foreign workers in Saudi Arabia with a population of 19 million citizens. Including 250,000 Hindus, 70,000 Buddhists, 45,000 Sikhs.

There are 1.2 million Christians which is 4.4% of the total population but there is not a single native Christian in Saudi Arabia; all are foreign workers.

Remember the oldest standing Christian Church in the world is from the 4th century and located in Jubail, the present day Saudi Arabia which is in ruins. Celebration of Christmas and Easter must be indoors in private homes.

Conversion by Muslims to another religion is punishable by death in Saudi Arabia whereas hordes of Mullahs roam Europe on proselytising visas. Oil is not more expensive by human blood.
This religious apartheid must end.

खालिद इसके लिए रेलिजस एपार्थीड यानी धार्मिक रंगभेद शब्द का प्रयोग करते हैं । यह धर्मभेद अपने धर्म की शुद्धता की बात भले करे पर दूसरे धर्मों से मिलने और उनसे बहस करने वाद विवाद करने से बचता है । सऊदी अरब या अधिकतर इस्लामी देश दूसरे धर्मों से अपने धर्म में परिवर्तन का तो स्वागत करते हैं पर अपने धर्म से दूसरे धर्म में जाने की इजाज़त नहीं देते हैं । यह एक गंभीर अपराध माना जाता है और इस गुनाह की सजा भी है । सभी धर्म जब एक ही लक्ष्य की ओर जाते हैं , सभी धर्म एक ही ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं , सभी धर्मों की मौलिक नैतिक शिक्षा भी एक ही प्रकार से है , फिर मेरा ही धर्म सवोपरि और पूर्ण है यह कहना भी एक प्रकार का भ्रम और छल है । संसार और विचार सदैव गतिमान हैं और हर पल वह परिवर्तित होते रहते हैं । कोई भी धर्म पूर्ण नहीं है । उसमे कुछ भी ग्राह्य करने की गुंजायश बनी ही रहती है । धर्म में जब राजनीति का प्रवेश हो जाता है तो वह धर्म स्वार्थ सिद्धि का साधन बन जाता है ।

( विजय शंकर सिंह )

No comments:

Post a Comment