Tuesday 7 December 2021

उद्धरण - गोलवलकर - सावरकर, संघ और राजनीति

आज मैं जो उद्धरण आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ, वह RSS के सरसंघचालक रहे एमएस गोलवलकर के विचार नवनीत से है। यह पुस्तक बच ऑफ थॉट का हिंदी अनुवाद है। कभी भी कोई संघी मित्र इसका उद्धरण नहीं देता और न इस किताब की विचारधारा पर गर्व करता है। 

उसे गांधी के सेक्स के साथ प्रयोग से लेकर नेहरू और एडविना के अंतरंग सम्बंधो का पता है, उसे यह पता है कि, गांधी ने भगत सिंह को नहीं बचाया, उसे यह पता है कि, गांधी ने सुभाष का अपमान किया, उसे यह पता है कि नेहरू को पटेल के ऊपर जानबूझकर गांधी ने थोपा था, उसे यह पता है कि 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में, RSS ने भाग लिया था, हालांकि ऐसा कोई अभिलेख रक्षा मंत्रालय के पास नहीं है, बस उसे यह पता नहीं है कि, 1925 से लेकर 1947 तक, जब देश आज़ादी के लिये हर तरह से लड़ रहा था, तब यह क्या कर रहे थे? 

आप सब को अब बच ऑफ थॉट और संघ तथा सावरकर जिन्ना ब्रांड राष्ट्रवाद, जो इनका लक्ष्य है से जुड़े उद्धरण उपलब्ध साझा करूँगा। 

यह पोस्ट मैंने Shyam Singh Rawat जी की एक टिप्पणी से लिया है।
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गोलवलकर ने शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत का मजाक उड़ाते हुए लिखा है— 

'हमारी उपासना की वस्तुएं हमेशा ऐसे (श्रीराम जैसे) सफल जीवन रहे हैं। यह स्पष्ट है कि जो जीवन में असफल रहे हैं, उनमें अवश्य कोई बहुत बड़ी कमी रही होगी। जो पराजित हो चुका है, वह दूसरों को प्रकाश कैसे दे सकता है? हवा के प्रत्येक झोंके से कंपित ज्योति हमारा पथ कैसे प्रकाशित कर सकती है?' 
(विचार नवनीत—पृ-280)

उन्होंने आगे लिखा है—
'नि:संदेह ऐसे व्यक्ति जो अपने आप को बलिदान कर देते हैं, श्रेष्ठ व्यक्ति हैं और उनका जीवन दर्शन भी प्रमुखतया पौरुषपूर्ण है। वे ऐसे सर्वसाधारण व्यक्तियों से, जोकि चुपचाप भाग्य के आगे समर्पण कर देते हैं और भयभीत एवं अकर्मण्य बने रहते हैं, बहुत ऊंचे हैं। फिर भी हमने ऐसे व्यक्तियों को समाज के सामने आदर्श के रूप में नहीं रखा। हमने ऐसे बलिदान को महानता के उस सर्वोच्च बिंदु, जिसकी मनुष्य आकांक्षा करें, नहीं माना है; क्योंकि अंततः वे अपना उद्देश्य प्राप्त करने में असफल हुए और असफलता का अर्थ है कि उनमें कोई गंभीर त्रुटि थी।' 
(विचार नवनीत—पृ-281)

वे यहीं नहीं रुके और लिखा—
'देशभक्ति का मतलब केवल जेल जाना नहीं है। इस तरह की दिखावटी देशभक्ति में बह जाना सही नहीं है।' 
(सी पी. भिषकर, संघवृक्ष के बीज-डॉ केशवराव हेडगेवार-पृ-21)

दरअसल, संघी बिरादरी वर्चस्ववाद की ग्रंथि से पीड़ित है जो अभी तक अपने पेशवाकालीन प्रभुत्व के हैंगओवर में झूल रही है। इसीलिए सरसंघचालक खुद को हिंदू परंपरा के शंकराचार्य से ऊपर समझते हैं। जिसका प्रमाण है— रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण की शुरुआत करते समय किसी शंकराचार्य को आमंत्रित न कर स्वयं मोहन भागवत का पूजा-अर्चना करने बैठ जाना। यह ठीक ईरानी शिया नेता आयतुल्ला खोमैनी मुसावी की नकल कर यहां हिंदुओं की धार्मिक शक्ति तथा देश की राजसत्ता को अपने नियंत्रण में लेने का प्रपंच है।

( श्याम सिंह रावत )
#vss

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