Wednesday 22 December 2021

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास (3)

चित्र: वह पुस्तक जिसमें पहली बार ‘Dravidian’ शब्द प्रयोग किया गया

दक्षिण भारत में अंग्रेज़ पहले आए, अंग्रेज़ी भाषा पहले आयी, और पश्चिमी संस्कृति भी पहले आयी। पुर्तगाली, डच, फ्रेंच, ब्रिटिश सभी वहाँ पहले आए। यहाँ तक कि डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी तमिलनाडु में मौजूद थी।

किसी का यह मानना कि उत्तर भारतीय अधिक पाश्चात्य और ‘स्ट्रीट-स्मार्ट’ हैं, या दक्षिण भारतीय पारंपरिक रूढ़िवादी हैं, सही नहीं है। न ही यह मान्यता ठीक है कि तमिलों ने अंग्रेज़ी उत्तर भारतीयों से संवाद के लिए सीखी। वे इस विदेशी भाषा को सीखने-बोलने में उत्तर भारतीयों की अपेक्षा एक सदी से अधिक आगे रहे हैं। उन्होंने यह भाषा यूरोपीयों से संवाद के लिए सीखी, या उन्हें मिशनरियों द्वारा सिखायी गयी।

जब ब्रिटिश मद्रास शहर बसा रहे थे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से एक जीर्ण-शीर्ण गिरजाघर मौजूद है। वे देख कर चौंक गए। 

“यहाँ यह गिरजाघर किसने बना दिया? हमसे पहले भी कोई इस स्थान पर आया था?”

“मैंने कुछ मछुआरों से पूछा। कुछ मुसलमान इसकी देख-भाल कर रहे थे। वे इसे बोथुमा बुलाते हैं।”

“मगर यह तो चर्च है”

“इसकी कहानी यीशु मसीह के समय की है”

“मतलब?”

“यहाँ यीशु के बारह प्रचारकों में से एक संत थॉमस की कब्र है”

“यह क्या बकवास है? वे कब भारत आ गए? अगर आ ही गए तो उनके बनाए ईसाई कहाँ गए?”

“क़िस्सा तो यह है कि यहाँ के तमिल हिंदुओं ने उन्हें मार डाला”

“इसका क्या सबूत है?”

“कोई सबूत नहीं। एक और क़िस्सा मार्को पोलो ने लिखा है।”

“अब वह भी सुना दो”

“मार्को जब भारत आए थे, तो वह इस जगह पर आए थे। उन्होंने सुनी हुई कथा लिखी है कि संत थॉमस यहीं जंगल में कुछ मोर पंछियों के साथ बैठे थे। तभी एक हिंदू गोवि जाति के बहेलिए का तीर ग़लती से उन्हें लग गया। वह यहीं मर गए।”

“अच्छा? उन्होंने यह गिरजाघर देखा था?”

“नहीं। उस समय तो यह एक टीला था। बाद में पुर्तगालियों ने इसे एक चर्च बना दिया।”

“संत थॉमस का काम तो अधूरा रह गया। हमारे मिशनरी यह काम पूरा कर सकते हैं”

“एक बार हमारे पाँव तो जम जाएँ। वह काम भी पूरा होगा”

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक मद्रास प्रेसीडेंसी में कुल 1185 मिशनरी विद्यालयों में लगभग 38000 भारतीय विद्यार्थी पढ़ रहे थे। जबकि बंगाल और बंबई प्रेसीडेंसी मिला कर मिशनरी स्कूलों की संख्या 472, और विद्यार्थियों की संख्या 18000 थी।

इस गणित का क्या महत्व है? अंग्रेज़ी स्कूल खुल गए, यह तो मद्रास के लिए अच्छी बात हुई। इससे तमिलनाडु के राजनीतिक भविष्य का आखिर क्या लेना-देना? 

1856 में एक ईसाई मिशनरी रॉबर्ट काल्डवेल ने एक मोटी शोधपूर्ण किताब लिखी। इसमें पहले ही पृष्ठ पर उन्होंने लिखा- 

“मनु ने कहा है- क्षत्रियों के कुछ वंश ब्राह्मणों से संपर्क तोड़ कर और अपना पवित्र धर्म भूल कर वृषाल (outcast) बन गए हैं- पौन्ड्रक, औद्र, यवन, कम्बोज, चीन, खासा….और द्रविड़!”

इससे पहले अगर ‘द्रविड़’ शब्द किसी ने प्रयोग किया भी होगा, तो उसके न जाने क्या मायने रहे होंगे। मगर काल्डवेल द्वारा ‘नव-आविष्कृत’ इस शब्द ने एक चिनगारी का काम किया, जिसने पूरे दक्षिण भारत को सदा के लिए उत्तर भारत से भिन्न ‘नस्ल’ बना दिया। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास (2)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/12/2.html
#vss 

No comments:

Post a Comment