Wednesday 22 December 2021

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास (1)

ओस्लो की एक दुकान के ‘सब माल पचास टक्का’ सेक्शन में एक किताब दिखी। उस किताब के आवरण पर एक विशाल हाथी था जिसके मस्तक पर जालीदार कवच और पीठ पर मशालें बँधी थी। यह मशहूर वयोवृद्ध थ्रिलर लेखक विल्बर स्मिथ की नॉवेल ‘गोस्ट फ़ायर’ थी। यह कहानी उसी काल-खंड और उसी स्थान से शुरू हो रही थी, जहाँ से मैं यह इतिहास-कथा शुरू कर रहा हूँ। 

अगस्त 1639 की एक दोपहर थी, जब दो अंग्रेज़ पुलीकट के दक्षिण में समुद्र तट पर एक वीरान ज़मीन को निहार रहे थे। 

“क्या लगता है? अपने कारखाने के लिए यह ठीक रहेगा?”,   फ्रांसिस डे ने कहा

“अब पूछ रहे हो? अब तो मैंने वेंकटाद्री से बात फ़ाइनल भी कर ली”, एंड्रयू ने कहा

“अक्सर हम अपने निर्णय पर तभी शंका करते हैं जब निर्णय लिया जा चुका होता है”

“तुमने चंद्रगिरी में महाराज वेंकट राय का वैभव देखा? क्या आलीशान महल! क्या हाथी-घोड़े, सोना…नर्तकियाँ!”

“हमें उससे क्या? मैंने तो यह जगह इसलिए चुनी कि कपड़े सस्ते में बन जाएँगे। बीस टक्का तक का मुनाफ़ा है। 

“तुम्हें क्या लगता है महाराज यूँ ही ज़मीन दे रहे हैं?”

“वह महाराज अब खत्म हो रहा है। उसे हमारे हथियारों और फौज़ की ज़रूरत है।”

“इनकी चिंता छोड़ो। पुलीकट में डच आ गए हैं। कंपनी से हिदायत है इन कमीनों को अपने पैर नहीं फैलाने देना। उनके पड़ोस की ज़मीन हथिया कर तुमने बिल्कुल ठीक फैसला लिया।”

“हाँ! हम यहीं अपना भव्य किला बनाएँगे। उस महाराज और डच कंपनी से भी बड़ा और मॉडर्न। यहाँ नदी किनारे और समंदर किनारे प्लॉट काट कर यूरोपीय बस्ती बनाएँगे।”

“यह विचार अच्छा है। इन काले लोगों को इस शहर से दूर ही रखना। बड़े ही असभ्य लोग हैं।”

“वह वेंकटाद्री देख लेगा। मैंने कह दिया है कि मछुआरों का गाँव खाली करवा दे।”

“वह ठीक है। मगर उन मछुआरों में तुमने एक बात ग़ौर की?”

“क्या?”

“वे दिखने में दुबले-पतले हैं मगर ताकत अफ़्रीकियों से कम नहीं”

“तुम क्या कह रहे हो? इन्हें पकड़ कर बेचना है?”

“मैं तो बस सोच रहा था। दाम मिले तो क्या बुराई है? वैसे भी कंपनी हमें देती ही क्या है? कुछ तो हमारी भी कमाई हो”

“हा हा! यह भी सही कहा। कमाने को तो यहाँ बहुत कुछ है और कंपनी को खबर भी न होगी। तभी तो इस भीषण गर्मी में इन कालों के देश में पसीना बहा रहा हूँ। मगर नाम क्या रखें शहर का?”

“तुम कह रहे थे कोई गाँव है मछुआरों का?”

“मदर…”

“हाँ! यह लिखा है न काग़ज़ में। मद्रासा..पट्टनमा..”

“कोई आसान नाम? मैड्रास ठीक रहेगा। लिखो- M..A..D..R..A..S”
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास (भूमिका)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/12/blog-post_20.html 
#vss

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