Sunday 19 July 2020

दरभंगा महाराज के लिए चर्चिल की भतीजी ने बनायी थी गांधी की पहली प्रतिमा.


आज महात्मा गांधी का अनूठा किस्सा लेकर आया हूं. इस किस्से के तीन किरदार हैं. पहली चर्चिल की भतीजी, वही विंस्टन चर्चिल को गांधी को शातिर बुड्ढा कहता था. दूसरे दरभंगा के जमींदार महाराज कामेश्वर सिंह जिन्हें गांधी ने अपना पुत्र समान बताया था तथा अंगरेज सरकार ने सर और नाइट कमांडर की उपाधि दी थी और तीसरे खुद महात्मा गांधी हैं, जो शांति और प्रेम के वैश्विक प्रतीक हैं.यह दिलचस्प है कि चर्चिल की भतीजी क्लेयर शेरिडन 1931 के आसपास गांधी की आवक्ष मूर्ति बनायी थी. जाहिर सी बात है विंस्टन चर्चिल उस वक्त ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर नहीं थे. हालांकि वे उस वक्त की चर्चित राजनीतिक हस्ती रहे होंगे, और गांधी को लेकर उनके बहुत स्पष्ट विचार भी होंगे. मगर उनकी भतीजी क्लेयर शेरिडन जो एक मूर्तिकार, लेखक और पत्रकार थी के अपने स्वतंत्र विचार थे. वह गांधी, चर्चिल और लेनिन को अपने वक्त की तीन प्रभावशाली वैश्विक हस्तियों में गिनती थी और दुनिया भर के बेहतरीन राजनेताओं की आवक्ष प्रतिमा बनाना उनका शौक था.

गांधी से उनका परिचय 1931 में सरोजिनी नायुडू ने कराया, जब गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गये हुए थे. यह संयोगवश गांधी के जन्मतिथि वाला दिन था. शेरिडन ने उस मुलाकात को अपनी डायरी में इस तरह दर्ज किया है, वे एक सफेद कुशन में पालथी मारे बैठे थे और सफेद वूलेन चद्दर में लिपटे थे. वे मुझे किसी सम्मोहन प्रतिमा की तरह दिखे.

उसी दौरान शेरिडन ने गांधी की आवक्ष कांस्य प्रतिमा तैयार की थी. जब प्रतिमा तैयार हो गयी तो शेरिडन ने इसे गांधी को दिखाया और पूछा कि यह प्रतिमा आपको कैसी लगी. तब गांधी ने कहा कि मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता… मगर आपकी याद मुझे आयेगी. मैं आपको भूल नहीं पाऊंगा. आप भारत आयें. वहां आप हर किसी का मेहमान बन जायेंगी.

तो इस तरह गांधी की यह कांस्य प्रतिमा तैयार हुई और इसे तैयार उस महिला ने किया जिसके चचा जान आने वाले वक्त में गांधी को खूसट बुड्ढ़ा के खिताब से नवाजने वाले थे. मगर 1931 के बाद इस आवक्ष कांस्य प्रतिमा का किस्सा कहीं गुम हो गया. साथ में इसकी कहानियां भी.इस घटना के ठीक 81 साल बाद फिर से इस प्रतिमा का किस्सा खुला. मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय के कर्मियों को प्लास्टिक में लिपटी यह प्रतिमा मिली. वहां के तत्कालीन निदेशक सब्यसांची महाराज ने जब इस मूर्ति के बारे में पता करने के लिए अपने संग्रहालय का रिकार्ड चेक किया तो वहां दर्ज था, महात्मा एमके गांधी की कांस्य आवक्ष प्रतिमा, हिज एक्सिलेंसी वायसराय द्वारा उपलब्ध करायी गयी, कलाकार- क्लेयर शेरि़डन. फिर उन्होंने इस प्रतिमा और मूर्तिकार के बारे में रिसर्च करना शुरू किया तो ये तमाम जानकारियां हासिल हुई. मगर इस किस्सा का सबसे दिलचस्प हिस्सा शिमला टाइम्स की 1940 की एक रिपोर्ट से मालूम हुआ. इस रिपोर्ट के मुताबिक…

‘क्लेयर शेरिडन की बनायी महात्मा गांधी की आवक्ष प्रतिमा बम्बई के प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम के सेंट्रल हॉल में एक 4.5 फीट के पेडस्टल पर रखी है. यह प्रतिमा हाल ही में हिज एक्सीलेंसी वायसराय लॉर्ड लिनलिथिगो (1936-44) के द्वारा म्यूजियम को उपलब्ध करायी गयी है. वायसराय को यह प्रतिमा महाराजा ऑफ दरभंगा ने खरीद कर बतौर उपहार दी थी. यह प्रतिमा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. महात्मा गांधी के बाईं तरफ वीनस की प्रतिमा है और दाहिनी तरफ सर रिचर्ड वेलस्ले की. महात्मा गांधी ध्यान की मुद्रा में नजर आ रहे हैं और उनका चेहरा नेपोलियन की आवक्ष प्रतिमा की तरफ है.’


वह प्रतिमा आज भी मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय में रखी होगी. क्योंकि उस ऐतिहासिक प्रतिमा को खरीद कर लाने वाला जमींदार बिहारी था.
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Maharaja Kameshwar Singh Bahadur was the first person in India to get a bust of Mahatma Gandhi made, by celebrated artist Clare Sheridan, cousin of Winston Churchill. The bust was presented to the viceroy of India, Victor Hope, 2nd Marquess of Linlithgow, to be displayed in Government House (now Rashtrapati Bhawan). This was acknowledged by Gandhi in a letter to Lord Linlithgow in 1940.

(पुष्यमित्र का यह आलेख कुछ जरुरी संशोधनों के साथ)
https://mumbaimirror.indiatimes.com/mumbai/other/a-bronze-bust-of-gandhi-with-a-churchill-connection/articleshow/60067118.cms
साभार कुमुद सिंह जी की फेसबुक वॉल से 

( विजय शंकर सिंह )

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