Thursday 30 July 2020

डॉ मार्गरेट वाकर और उनकी कविता फ़ॉर माय पीपुल / विजय शंकर सिंह


अफ्रीकी-अमेरिकी महिला कवि मार्गरेट वाकर (1915-1998) की राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कविता फ़ॉर माय पीपुल का हिंदी अनुवाद, अपने लोगो के लिये। 


अपने लोगों के लिये

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अपने उन लोगों के लिये

जो गाते हैं हर कहीं अपनी दासता के गीत

निरन्तर : अपने शोकगीत और पारंपरिक गीत

अपने विषाद गीत और उत्सव-गीत,

जो दोहराते आ रहे हैं प्रार्थना के गीत हर रात

किसी अज्ञात ईश्वर के प्रति,

घुटनों पर बैठ कर आर्त्त भाव से

किसी अदृश्य शक्ति के सामने;


अपने उन लोगों के लिये

जो देते आ रहे हैं उधार अपनी सामर्थ्य वर्षों से,

बीते वर्षों और हाल के वर्षों और संभावित वर्षों को भी,

धोते इस्तरी करते खाना पकाते झाड़ू-पोंछा करते

सिलाई मरम्मत करते फावड़ा चलाते 

जुताई खुदाई रोपनी छंटाई करते पैबन्द लगाते

बोझा खींचते हुए भी जो न कमा पाते न चैन पाते हैं

न जानते और न ही कुछ समझ पाते हैं;


बचपन में अलबामा की 

मिट्टी और धूल और रेत के अपने जोड़ीदारों के लिये 

आंगन के खेल-कूद बपतिस्मा और धर्मोपदेश और चिकित्सक

और जेल और सैनिक और स्कूल और ममा और खाना

और नाट्यशाला और संगीत समारोह और दूकान और बाल

और मिस चूम्बी एंड कंपनी के लिये;


तनाव और कौतूहल से भरे उन वर्षों के लिये 

जब हम दाखि़ल हुए स्कूल में पढ़ाई के लिये

क्यों के कारणों और उत्तरों और कौन से लोग

और कौन सी जगह और कौन से दिन को 

जानने के लिये, उन कड़वे दिनों को याद करते हुए

जब हमें पहली बार मालूम हुआ कि हम 

अश्वेत और गरीब और तुच्छ और भिन्न हैं 

और कोई भी हमारी परवाह नहीं करता

और किसी को हम पर अचंभा नहीं होता

और कोई भी समझता ही नहीं हमें;


उन लड़कों और लड़कियों के लिये

जो इन सबके बावज़ूद भी पलते रहे बढ़ते रहे

आदमी और औरत बनने के लिये

ताकि हंसें और नाचें और गायें और खेलें और

कर सकें सेवन शराब और धर्म और सफलता का,

कर सकें शादी अपने जोड़ीदारों से और 

पैदा करें बच्चे और मर जायें एक दिन

उपभोग और एनीमिया और लिंचिंग से;


अपने उन लोगों के लिये जो कसमसाते हैं 

भीड़भाड़ में शिकागों की सड़कों पर और 

लेनॉक्स एवेन्यू में और न्यू ओरलीन्स की

परकोटेदार गलियों में, उन गुमशुदा

वंचित बेदख़ल और मगन लोगों के लिये

जिनसे भरे हैं शराबख़ाने और चायख़ाने और

अन्य लोग जो मोहताज़ हैं रोटी और जूतों

और दूध और ज़मीन के टुकड़े और पैसे और 

हर उस चीज़ के लिये जिसे कहा जा सके अपना;


अपने उन लोगों के लिये,

जो बांटते फिरते हैं ख़ुशियां बेपरवाह होकर,

नष्ट कर देते हैं अपना समय क़ाहिली में,

सोते हैं भूखे-प्यासे, बोझा ढोते चिल्लाते हैं,

पीते हैं शराब नाउम्मीदी में,

जो बंधे हुए, जकड़े और उलझे हैं हमारे ही बीच के

उन अदृश्य मनुष्यों की बेड़ियों में

हमारे ही कंधों पर होकर सवार जो

बनते हैं सर्वज्ञानी और हंसते हैं;


अपने उन लोगों के लिये जो

करते हैं गलतियां और टटोलते 

और तड़फड़ाते हैं अंधेरों में

गिरजाघरों और स्कूलों और क्लबों

और समितियों, संस्थाओं और परिषदों

और सभाओं और सम्मेलनों के,

जो हैं दुखी और क्षुब्ध और ठगी के शिकार

और जिन्हें निगल लिया है धनपशुओं

और प्रभुता के भुक्खड़ जोंकों ने,

जिन्हें लूटा जा रहा है

राज्य के हाथों प्रत्यक्ष बल-प्रयोग से

और छला जा रहा है झूठे 

भविष्यवक्ताओं और धार्मिक मतवादियों द्वारा;


अपने उन लोगों के लिये

जो जुटे हैं इकट्ठा हैं प्रयासरत हैं

एक ऐसे बेहतर मार्ग के निर्माण के लिये

जो कि बाहर निकाल सके उन्हें

भ्रमजाल से, पाखंड और ग़लतफ़हमी से,

जो प्रयासरत हैं एक ऐसी दुनिया बनाने के लिये

जो जगह दे सके तमाम लोगों, तमाम शक्लों

तमाम आदमों और ईवों

और उनकी बेहिसाब पीढ़ियों को भी;


एक नयी पृथ्वी का उदय होने दो।

पैदा होने दो एक और दुनिया को।

एक रक्तिम शान्ति को 

अंकित हो जाने दो आसमान पर।

साहस से भरी अगली पीढ़ी को आने दो आगे,

होने दो संवर्द्धन एक ऐसी आज़ादी का 

भरा हो अनुराग जिसमें जन-जन के लिये।

राहत से भरी हुई सुन्दरता को 

और उस शक्ति को जो निर्णयकारी हो

हो जाने दो स्पंदित हमारी आत्माओं में

और ख़ून में हमारे।

आओ कि अब लिखे जायें गीत प्रयाण के,

जिनमें तिरोहित हो जायें शोक के गीत।

अब हो जाना चाहिये उद्भव तत्क्षण

इन्सानों की एक प्रजाति का 

और सम्भाल लेना चाहिये जिम्मा शासन का उसे। 


(अंग्रेज़ी से अनुवाद– राजेश चंद्रा )

डॉ मार्गरेट वाकर अलेक्जेंडर. 


1968 में जैक्सन स्टेट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में, डॉ मार्गरेट वाकर ने इतिहास के अध्ययन के लिये इंस्टीट्यूट ऑफ द स्टडी ऑफ हिस्ट्री, लाइफ एंड कल्चर ऑफ द ब्लैक पीपुलकी स्थापना की थी। एक ख्यातिलब्ध लेखिका होने के कारण वे स्वाभाविक रूप से, नव ब्लैक स्टडीज मूवमेंट की अग्रिम पंक्ति में थीं। इसी काऱण इस संस्थान ने, बीसवीं सदी के अफ्रीकन अनेरिकन इतिहास और संस्कृति के अध्येताओं में उनका नाम अमर कर दिया है । अपने जीवनकाल में ही उन्होंने न केवल डब्ल्यू ई.बी.डू. बोरिस, लैंग्स्टन हग्स, और रिचर्ड राइट जैसे लेखकों से प्रेरनहुयी बल्कि, उन्होंने जेम्स बाल्डविन, टोनी मॉरिसन और माया अंगलेउ जैसे लेखकों को प्रेरित भी किया। 


7 जुलाई 1915 को अलबामा के बर्मिंगटम में जन्मी वाकर ने पांच वर्ष से कुछ न कुछ लिखना शुरू कर दिया था। 1925 में जब उनका परिवार न्यू ओर्लिन्स में आ गया तो, लैंग्स्टन हग्स से मिलने के बाद उनके लेखन में नियमितता और समृद्धि आयी और उन्होंने, वाकर को आगे और पढ़ने के दक्षिण को छोड़ कर जाने के लिये प्रेरित किया। 1935 में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, जहां से वाकर के पिता ने भी पढ़ाई की थी,  से स्नातक की डिग्री लेने के बाद वे, फेडरल राइटर्स प्रोजेक्ट में काम करने के लिये शिकागों आ गयीं। यहीं पर इनका संबंध, साहित्यकार रिचर्ड राइट से हो गया और वे, साउथसाइड राइटर्स ग्रुप से जुड़ गयी। 


1937 में वाकर ने अपनी प्रसिद्ध कविता, फ़ॉर माय पीपुल लिखी और उस कविता के लिये उन्हें येल विश्वविद्यालय का यंगर पोएट्स अवार्ड मिला, और यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह पहली ब्लैक महिला थीं। 1949 में वाकर, अपने पति फरनिस्ट अलेक्जेंडर और तीन बच्चों के साथ मिसिसिपी आ गयीं। यहां उन्होंने जैक्सन स्टेट यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग में पढ़ाना शुरू किया। जैक्सन स्टेट यूनिवर्सिटी में ही इन्होंने अपने डॉक्टरेट का शोध प्रबंध जो नव दासता यानी नियो स्लेव नैरेटिव पर था, को पूरा किया। यह शोध उनकी नानी एलविरा वेयर के संस्मरणों और ब्लैक दासता पर आधारित था। 1966 में यह शोध प्रबंध पहली बार प्रकाशित हुआ और बेहद लोकप्रिय हुआ। 


जैक्सन स्टेट यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फ़ॉर द स्टडी ऑफ द हिस्ट्री, लाइफ एंड कल्चर के निदेशक के रूप में उन्होंने, कई आयोजन किये उसमे से कुछ सेमिनार अपनी तरह से अनोखे और अलग थे। जैसे 1971 में उन्होंने नेशनल इवैल्युएटिव कॉन्फ्रेंस ऑन ब्लैक स्टडीज और 1973 में फिलीस व्हीटली पोएट्री फेस्टिवल के नाम लिए जा सकते हैं। 


तीस साल के अध्यापन के बाद डॉ वाकर प्रोफेसर एमेरिटस बन गयी और उन्होंने अपना समस्त साहित्यिक और प्रशासनिक लेखन इस संस्थान को दान दे दिया, जो बाद में डॉ वाकर के ही नाम से विख्यात हुआ। जैक्सन स्टेट यूनिवर्सिटी में संग्रहित, द मार्गरेट वाकर पेपर्स, दुनियाभर में अकेले एक ऐसा संस्थान हैं जहां किसी एक ब्लैक लेखिका द्वारा लिखा गया समस्त साहित्य, एक ही स्थान पर संग्रहित है। द वाकर सेंटर में चालीस महत्वपूर्ण पांडुलिपियां, जैसे अमेरिकी शिक्षा मंत्रालय के दस्तावेज, मौखिक इतिहास से जुड़े दस्तावेज और विभिन्न महत्वपूर्ण लोगो के 2000 इंटरव्यू संग्रहित हैं। 


( विजय शंकर सिंह )


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