Friday 21 February 2020

पहले भय की राजनीति और षडयंत्र से मुक्त होइये / विजय शंकर सिंह

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की एक सभा मे जो सीएए और एनआरसी के विरोध में हो रही थी में अमूल्या नाम की एक 19 वर्षीय लड़की ने पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा दिया। यह नारा अप्रत्याशित था। क्योंकि यह सभा एक भारतीय कानून की संवैधानिकता के मुद्दे पर हो रही थी। तुरंत उस लड़की के हांथ से माइक ले लिया गया और बाद में पुलिस ने उसे वहां से हटा लिया और धारा 124A आईपीसी के अंतर्गत एक मुक़दमा दर्ज कर के उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया यह खबर कल से लगातार सुर्खियों में बनी हुयी है और इस घटना पर अच्छा खासा बवाल मचा हुआ है। 

पाकिस्तान इस समय देश के अंदर एक सबसे संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। अब इस घटना  के संदर्भ में कुछ उन तथ्यों को देखें, जो पहले घट चुके हैं। 
● एक मजबूत और खुशहाल पाकिस्तान में ही भारत का भला है।
( अटल बिहारी वाजपेयी ,1998 के लाहौर भाषण का अंश।पाकिस्तान )
● हमारा भाई है, सरकार को सम्बन्धो में और सुधार करना चाहिए। 
(15 सितंबर,मोहन भागवत आरएसएस चीफ) 
● जब यमुना के किनारे श्रीश्री रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग का एक आयोजन किया था तो, उस आयोजन में भी पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाया गया था और उस आयोजन में सरकार के कई मंत्री भी उस समय उपस्थित थे। तब भी यही सरकार थी और रविशंकर जी सरकार के तब भी निकट थे और अब भी निकट हैं। 

पाकिस्तान आज भी लिखा पढ़ी में भारत का मोस्ट फेवर्ड नेशन है। हमारे कई उद्योगपतियों के वहां आज भी बिजनेस इंटरेस्ट हैं और यह उद्योगपति सरकार के निकट हैं। पाकिस्तान से हमारे चार युद्ध हो चुके हैं। हमने सबमे विजय पायी है। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध मे हमने उस आधार को ही भग्न कर दिया है जिस आधार पर पाकिस्तान बना था। वह घटना विश्व के सैन्य इतिहास में एक स्थान रखती है। आज वही द्विराष्ट्रवाद यानी धर्म ही राष्ट्र है का आधार पुनः 2014 से तैयार किया जा रहा है। पाकिस्तान का विरोध आप करें या न करें, उसका मुर्दाबाद आप कहें या न कहें यह आप की मर्ज़ी है। लेकिन पाकिस्तान जिंदाबाद कहने से अगर समाज मे मतभेद उपजता है, भाईचारा खतरे में पड़ता है तो ज़रूर इस अनावश्यक और जानबूझकर कर भड़काने वाली बात और नारे पर क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए और सरकार ने समय समय पर ऐसी घटनाओं पर कार्यवाहियां की भी है, और सरकार ने समय समय पर ऐसी घटनाओं पर कार्यवाहियां की भी है। लेकिन यह भी सरकार और उन लोगों को समझाना होगा कि इस प्रकार की नारेबाजी से देशद्रोह का मामला क्यों और कैसे बनता है। केवल घृणावाद से उपजा भय ही है या यह सचमुच में देश के विरुद्ध है। इतना भय क्यों है, इसकी भी पड़ताल की जानी चाहिये। वैसे इस मामले में अभी तक पुलिस ने  कार्यवाही की है, और अब, कानून आगे क्या करता है यह अलग विषय है। 

लेकिन, पाकिस्तान की अवधारणा, ( Idea of Pakistan ) जो सचमुच में घातक है, और इतनी घातक है कि वह कोरोना वायरस की तरह पूरे देश को छिन्नभिन्न कर देने की क्षमता रखती है का मुर्दाबाद ज़रूर करें। और न सिर्फ मुर्दाबाद कहें बल्कि उसे पनपने भी न दें। यह विचार है द्विराष्ट्रवाद का। टू नेशन थियरी का। यह विचार अब आप को अधिक अपने आसपास दिख रहा होगा। द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत है, धर्म ही राष्ट्र है और यह सिद्धांत, 1937 में उपजा और 1947 में इस महान भूभाग को बांट गया और एक ऐसा ज़ख्म दे गया जो आज तक भरा नहीं जा सका।आइडिया ऑफ पाकिस्तान पाकिस्तान के विचार को मुर्दाबाद कहिये और आइडिया ऑफ इंडिया, भारत के विचार को जिंदाबाद कहिये और उसे अक्षुण रखिये। 

जिस दिन पाकिस्तान और हिंदू मुसलमान के मुद्दे पर कोई हेट स्पीच नहीं आती है तो सबसे अधिक गोदी मीडिया, सांप्रदायिक एजेंडा फैलाने और हिंदुओं को डरा कर रखने वाले लोग असहज हो जाते हैं। आखिर वे बहस किस मुद्दे पर करें। ट्वीट और स्टेटस क्या अपडेट करें। कैसे खुद को सही साबित करें। ऐसा नहीं है कि मुद्दों का अकाल है। मुद्दे तो बहुत हैं। आर्थिक खबरों तो रोज ही आ रही हैं। सरकार की इन खबरों पर किंकर्तव्यविमूढ़ता भी साफ दिख रही है। पर दिक्कत यह है कि, जब भी आर्थिक खबरों की बात होगी तो सरकार बहस के केंद्र में होगी। सरकार की उपलब्धियां और खामियां विवाद के विषय बनेंगे। सवाल इन्हीं पर पूछे जाएंगे और तब, पिछले छह साल से हिंदू मुसलमान, पाकिस्तान, सर्जिकल स्ट्राइक, की बात करते करते प्रोग्राम्ड हॉ चुके भाजपा और सरकार के प्रवक्ता असहज होने लगेगे। अब भला गोदी मीडिया सरकार और सरकारी दल के प्रवक्ताओं को असहज होते कैसे देख सकता है !

यह भयोत्पादन और भयादोहन का सिलसिला 2014 से और ज़ोरों से चल रहा है। जहां वैदिक काल से अब तक सभी महान ऋषियों, मुनियों और संतो ने  इस महान धर्म के लोगों को निडर होकर अपनी बात कहने की पूरी त्वरा से अपेक्षा की,  वहां यह मूढ़मति सोच के लोग हमें और आप को डरा कर रखना चाहते हैं। आप का यही डर इनकी पूंजी है। इस डर की राजनीति केवल कट्टर हिंदुत्व के ही लोग नही करते है, बल्कि 'इस्लाम खतरे में है' कह कर उन कट्टर और जाहिल मुस्लिमों में भी ऐसे लोग कम नहीं है जो अपने समाज को बहुसंख्यकवाद से डरा कर सदैव रखना चाहते हैं। यह डर कट्टर धर्मावलंबियों को और धर्म के ठेकेदारों को अपने अपने धर्मों पर शिकंजा कसने के लिये आधार देता है। धर्म का जो बाहरी और दिखावे वाला स्वरूप है वह मूलतः भय के कारण ही है। 
1937 में जब द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के नाम पर वीडी सावरकर ने हिंदू महासभा में धर्म और राष्ट्र का एक पर्यायवाची स्वरूप प्रस्तुत किया तो उसे मुस्लिम लीग ने तुरन्त लपक लिया। एमए जिन्ना मुस्लिम ध्रुवीय राजनीति के लिये बेक़रार थे ही। लेकिन एक क़रार भी चाहिए, बेक़रार होने के लिये। वह करार हिंदू महासभा ने उपलब्ध करा दिया। उस समय भी यही डर मुस्लिम लीग के नेताओ ने अपनी जनता के मन मे बिठाया कि संख्या में कम होने के कारण आज़ाद भारत मे वे नज़रअंदाज़ किये जाते रहेंगे और उनकी स्थिति दोयम दर्जे की रहेगी। लेकिन यह भय सब मुस्लिमों में नहीं बैठा। मौलाना आज़ाद, हसरत मोहानी, बादशाह खान बहुत से ऐसे नेता थे तो इस थियरी के खिलाफ थे। यही भय आगे चलकर पाकिस्तान की अवधारणा का आधार बनता है।  इस भय को आरएसएस और हिंदू महासभा के नेताओ ने हवा भी दी। जिन्ना और सावरकर तो हमसफ़र बने रहे पर हिंदू और मुस्लिम के बीच अविश्वास की खाई बढ़ती रही। यह अविश्वास उस तथ्य को भी नजरअंदाज कर गया कि भारत मे बहुसंख्यक मुस्लिम समाज के लोग धर्मान्तरित है और उनके स्थानीय रीतिरिवाज लगभग एक जैसे ही हैं। 

आज फिर उसी मोड़ पर इतिहास को ले जाया जा रहा है। वह मोड़ है 1937 के आसपास का। कहते हैं कि उस समय साम्प्रदायिक उन्माद, अविश्वास और मतभेद इतने गहरे थे रेलवे स्टेशन पर पानी का भी धर्म था। हिंदू पानी और मुस्लिम पानी के घड़े और पानी पिलाने वाले अलग अलग थे। यह सब धर्म के नष्ट हो जाने का भय, जाति से बहिष्कृत हो जाने का भय और समाज मे अलगथलग पड़ जाने का भय था। भयभीत होकर संसार मे किस समाज ने उन्नति की है ? शायद किसी ने भी नहीं। आज फिर यही  भय हेट स्पीच के द्वारा फैलाया जा रहा है। इसी भय से हिंदू भी ग्रसित हो रहे हैं और मुस्लिम भी। 

याद कीजिए भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा का बयान ' घर मे घुस कर बलात्कार करेंगे तुम्हारे। ' और इसे कुछ मूर्ख सच भी मान ले रहे हैं। घर मे घुस कर बलात्कार करेंगे और कोई इतना क्लीव है कि वह इसका सबल प्रतिरोध भी नहीं करेगा। यह तो दुनिया की सबसे प्रबुद्ध और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध पूरी की पूरी एक संस्कृति को ही डरा कर क्लीव बना देना है। यह तो अपनी ही सरकार के निकम्मेपन को भी दर्शाना है कि जब सब  घर में घुसकर बलात्कार करेंगे, तो यह  सरकार भी कुछ नहीं कर पायेगी।  क्या सरकार तब खामोश बनी रहेगी ? क्या इस बयान में सरकार की अक्षमता नहीं प्रदर्शित हो रही है ? 

सबसे पहले इस भय से मुक्त होइये। यह भय आप की सारी भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति को रोक देगा। यह भय दोनों ही कट्टरपंथियों द्वारा एक प्रायोजित षडयंत्र हैं जिसका एक ही उद्देश्य है अलग अलग बाड़े में भेड़ों को बांधे रखना। इन स्वयंभू गड़ेरियों से बचें और इस भेड़तन्त्र के विरुद्ध खड़े हों। यह सारा तमाशा, अपनी अक्षमता और शासन न करने की कला को छुपाने के लिये और जनता को निरंतर भय के एक काल्पनिक चक्र में फंसा कर रखने के लिये हैं। और अंत मे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गए अद्भुत उपन्यास, बाणभट्ट की आत्मकथा का यह कालजयी वाक्य पढ़े,
" सत्‍य के लिए किसी से भी नहीं डरना, गुरू से भी नहीं, लोक से भी नहीं .. मंत्र से भी नहीं। "

© विजय शंकर सिंह 

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