Friday 31 May 2019

कानून - जीएसटी में गिरफ्तारी और जमानत / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 मई, 2019) को हाई कोर्ट को सलाह दी कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) या जीएसटी कानून का उल्लंघन करने वाले आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं दी जाए। इस दौरान कोर्ट ने ऐसे बकायदारों को जमानत नहीं देने के तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को भी बरकार रखा। अग्रिम जमानत, अभियुक्त को गिरफ्तारी के पूर्व, उक्त गिरफ्तारी से बचने का एक कानूनी उपचार है। यह दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी  ) की धारा 438 के अंतर्गत अभियुक्तों को राहत देती है। लेकिन जीएसटी के संबंध में अगर कोई गिरफ्तारी होती है तो अभियुक्त को 438 सीआरपीसी के अंतर्गत वैधानिक उपचार प्राप्त नहीं होगा। 

तेलंगाना हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने 18 अप्रैल को जीएसटी डिफॉल्टर्स की गिरफ्तारी के लिए केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) आयुक्त के अधिकार और शक्ति को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने सीजीएसटी अधिनियम, 2017 के उल्लंघन के आरोपियों के लिए किसी भी अंतरिम राहत को, जिसमे अग्रिम जमानत का प्राविधान था, को खारिज कर दिया। इसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में हुयी।  सुप्रीम कोर्ट ने 27, मई 2019 को तेलंगाना हाई कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी और तेलंगाना हाईकोर्ट का यह निर्णय कि अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती को बहाल रख दिया।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया था कि सीजीएसटी अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं हैं, और इसलिए उन्हें आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों जो पुलिस के अधिकारियों के लिये है, का पालन करने की आवश्यकता नहीं थी, जो गिरफ्तारी से पहले एफआईआर के पंजीकरण को अनिवार्य करता है। यहां गिरफ्तारी से पहले प्रथम सूचना दर्ज करने का कोई अनिवार्य कानूनी प्राविधान नहीं है। यह जानकारी, टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के आधार पर है।

दरअसल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेशों की एक सीरीज के खिलाफ अपील की थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीजीएसटी अधिनियम के उल्लंघनकर्ताओं को सीआरपीसी की धारा 438 के प्राविधान के आधार पर अभियुक्तों को अग्रिम जमानत दे दी थी । बॉम्बे हाईकोर्ट का यह मानना था कि सीजीएसटी अधिकारियों ने सीआरपीसी के तहत वारंट के रूप में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की थी। लेकिन तेलंगाना हाई कोर्ट का निर्णय बॉम्बे हाईकोर्ट से उलट था। सीजीएसटी एक्ट कोई पुलिस कानून नहीं है अतः इस अधिनियम के उल्लंघन करने वालों पर सीआरपीसी का प्राविधान लागू नहीं होगा।

बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दिये जाने के कई आदेशों को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। केंद्र सरकार की ओर से, सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखते हुये कहा कि, भारतीय संसद ने सीआरपीसी से सीजीएसटी अधिनियम को अलग कर दिया था और अपराधियों से निपटने के लिए एक अलग प्रक्रिया प्रदान की थी। मेहता ने आगे कहा कि हाई कोर्ट के आदेशों से ‘जीएसटी खुफिया महानिदेशालय के कामकाज में बाधा उत्पन्न हुई है।’ अतः इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आया है कि जीएसटी खुफिया महानिदेशालय की प्रक्रिया पुलिस की प्रक्रिया से अलग है और उस पर सीआरपीसी का प्राविधान लागू नहीं होता है।

इस मामले में दायर अपील को, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की एक अवकाश पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा,
‘चूंकि देश के विभिन्न हाई कोर्ट्स ने इस मामले में अलग-अलग विचार रखे हैं, हमारा विचार है कि इस कोर्ट द्वारा कानून में स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए।’
खबरों के मुताबिक इसके साथ ही पीठ ने हाई कोर्ट्स को इस तरह के मामलों में जमानत देने से पहले उस आदेश को ध्यान में रखने को कहा जिसमें उसने तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। दरअसल उस आदेश में तेलंगाना हाई कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के मामलों में किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी से बचने की छूट नहीं दी जा सकती है। पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ के सुपुर्द कर दिया। फिलहाल तेलंगाना हाईकोर्ट का निर्णय नजीर बन गया है।

© विजय शंकर सिंह

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