Wednesday 1 May 2019

इतिहास - 30 अप्रैल, आज ही के दिन हिटलर ने आत्महत्या की थी / विजय शंकर सिंह

जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं में गिना जाता है। वह अपने समय मे बेहद लोकप्रिय था। उसकी यह लोकप्रियता भय, आतंक, उसके श्रेष्ठतावाद के मोह या यहूदियों के प्रति नस्लीय घृणा से लोगों में उपजी थी या सबका मिला जुला रूप था, इस पर बहस और विवाद हो सकता है, पर एक समय वह बेहद लोकप्रिय था। लोकप्रियता के इस दंभ ने उसे निंदा और आलोचना के एक ऐसे ककून में ढंक दिया कि उसे दूर तक दिखता ही नहीं था।

प्रथम विश्व युध्द में जर्मनी हारा था। हार अपमानजनक होती है। उसने इसी अपमान को अपना मूल एजेंडा बनाया और युद्धों में हुयी हार का तो बदला युद्धों में ही संभव है, यह उसकी धारणा थी। स्वाभिमान और आत्मसम्मान जैसे शब्दों और भावों के बीच उसने अंध राष्ट्रवाद और नस्लीय श्रेष्ठतावाद का की जो थियरी दी, उससे पूरा जर्मनी उन्मादित हो गया। फिर तो यहूदियों का नस्ली नरसंहार, विस्तारवाद, युद्ध का उन्माद और निरंकुश सैन्यवाद ने जर्मनी के लिये दुनिया मे जो विकट स्थिति खड़ी की उसमे तो युद्ध होना ही था। 1939 में यह युद्ध शुरू हुआ और 1945 में जर्मनी की बरबादी के साथ समाप्त हुआ।

हिटलर के सामने दो ही विकल्प थे। या तो वह आत्महत्या कर ले या वह मित्र देशों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दे। उसने आत्महत्या का रास्ता चुना। 25 अप्रैल 1945 से ही उसके आत्महत्या की भूमिका बनने लगी। इसी दिन उसने अपने निजी सुरक्षा गार्ड हींज़ लिंगे को बुला कर कहा,
"जैसे ही मैं अपनेआप को गोली मारूँ तो तुम मेरे मृत शरीर को चांसलरी के बगीचे में ले जा कर उसमें आग लगा देना. मेरी मौत के बाद कोई मुझे देखे नहीं और न ही पहचान पाए. इसके बाद तुम मेरे कमरे में वापस जाना और मेरी वर्दी, कागज़ और हर चीज़ जिसे मैंने इस्तेमाल किया है,जमा करना और बाहर आकर उसमें आग लगा देना. सिर्फ़ अंटन ग्राफ़ के बनाए गए फ़्रेडरिक महान के तैल चित्र को तुम्हें नहीं छूना है जिसे मेरा ड्राइवर मेरी मौत के बाद सुरक्षित बर्लिन से बाहर ले जाएगा."

युद्धकाल चल ही रहा था। उसने अपनी सुरक्षा और युद्धकाल में अपनी गतिविधियों का संचालन करने के लिये ज़मीन के नीचे 50 फुट का बंकर बनवाया था। अपने जीवन के आख़िरी दिनों में हिटलर ज़मीन से 50 फ़िट नीचे बनाए इसी बंकर में ही काम करते और सोते रहता था। वह बाहर केेेवल अपनी चहेती कुतिया ब्लांडी को कसरत कराने के लिए, कभी कभी चांसलरी के बगीचे में ले जाता, जहाँ चारों तरफ़ बमों से ध्वस्त टूटी हुई इमारतों के मलबे पड़े रहते थे। हिटलर सुबह पाँच या छह बजे सोने जाता था और दोपहर के आसपास सो कर उठता था। हिटलर की निजी सचिव त्राउदी जुंगा, अंतिम क्षणों तक उस बंकर में हिटलर के साथ थीं।

हिटलर ने ब्रिटिश न्यूज एजेंसी बीबीसी को रूस पर हमले के बाद उसने एक साक्षात्कार भी दिया था। उसने कहा था,
"आख़िरी दस दिन वास्तव में हमारे लिए एक बुरे सपने की तरह थे. हम बंकर में छिपे बैठे थे और रूसी हमारे नज़दीक चले आ रहे थे. हम उनकी गोलीबारी, बमों और गोलों की आवाज़ साफ़ सुन सकते थे."
रूस पर हमला करना हिटलर की रणनीतिक भूल थी। अगर उसने रूस पर हमला नहीं किया होता तो यह युद्ध इतना व्यापक नहीं हुआ होता। रूस पर हमले के बाद ही रूस भी मित्र देशों में शामिल हो गया। यह भी विडंबना है कि फ्रांस का नेपोलियन रूस पर हमला करने के बाद ही बरबादी की ओर बढ़ा और यही गलती हिटलर को ले डूबी। नेपोलियन और हिटलर दोनों को रूस की सेनाओं से अधिक उसकी ठंड से जूझना पड़ा।

अब फे ( Fay ) की लिखी किताब, द ओरिजिन ऑफ वर्ल्ड वार्स का यह अंश पढें। यह बात उसके एक मंत्री स्पियर ने बाद में पत्रकारों को बताया और यह बात न्यूरेम्बर्ग ट्रायल में भी कही गयी।
" हिटलर बंकर में बैठ कर इंतज़ार कर रहा था कि कोई आ कर उसे बचायेगा, लेकिन एक बात उसने शुरू से ही साफ़ कर दी थी कि अगर लड़ाई में उनकी जीत नहीं होती है तो वो बर्लिन कभी नही छोड़ेंगा और अपने ही हाथों से अपनी जान लेगा इसलिए हमे पहले से ही पता था कि क्या होने वाला है."

"जब 22 अप्रैल, 1945 को हिटलर ने हम सबसे कहा कि अगर आप चाहें तो बर्लिन से बाहर जा सकते हैं, तो उनकी प्रेमिका इवा ब्राउन सबसे पहले बोलीं, 'आपको पता है मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी... मैं यहीं रहूंगी.' अनायास और अपने आप मेरे मुंह से भी यही बात निकली थी."

"अपने जीवन के अंतिम हफ़्तों में हिटलर की हालत ऐसी हो गई थी कि उन पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता था. उनका पूरा शरीर हिलने लगा था और उनके कंधे झुक गए थे. उनके कपड़े गंदे थे और सबसे बड़ी बात ये थी कि उनका मेरे प्रति रुख़ बहुत ठंडा था. मैं उनसे विदा लेने आया था. उन्हें पता था कि हम आख़िरी बार मिल रहे थे, लेकिन मुझे नहीं याद पड़ता कि उन्होंने मुझसे कोई ऐसी चीज़ कही हो जो दिल को छू लेने वाली हो."

हिटलर की उस समय की हालत का वर्णन 'द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर' लिखने वाले रॉबर्ट पेन ने भी किया है। पेन लिखते हैं, "हिटलर का चेहरा सूज गया था और उसमें असंख्य झुर्रियाँ पड़ गई थीं. उनकी आंखों में जीवन जाता रहा था. कभी कभी उनका दायां हाथ बुरी तरह से कांपने लगता था और उस कंपकपाहट को रोकने के लिए वो उसे अपने बाएं हाथ से पकड़ते थे."

"जिस तरह से वह अपने कंधों के बीच अपने सिर को झुकाता था, उससे किसी बूढ़े गिद्ध का आभास मिलता था. उसके पूरे व्यक्तित्व में सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात थी, उसकी किसी शराबी की तरह लड़खड़ाती चाल। यह शायद एक बम विस्फोट में उनके कान की एक बारीक झिल्ली को हुए नुकसान की वजह से हुआ था।. वह थोड़ी दूर चलता और रुक कर किसी मेज़ को कोना पकड़ लेता। छह महीनों के अंदर वह दस साल के बूढ़े जैसा हो गया था। "

इसी बंकर में हिटलर ने अपने अंतिम दिनों में ही हिटलर ने  इवा ब्राउन से शादी कर लिया था। ईवा उसकीं प्रेमिका थी। रॉबर्ट पेन की पुस्तक, 'द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर' के अनुसार,
," इस बात पर कि शादी कराएगा कौन ? चर्च तक जाया नहीं जा सकता था। गोपनीयता के कारण किसी पादरी को लाया नहीं जा सकता है। समस्या जटिल थी। "
तब गोएबल्स को तलब किया गया।
" गोएबेल्स को ख़्याल आया कि किन्हीं वाल्टर वैगनर ने उनकी शादी करवाई थी। दिक्कत यह थी कि वाल्टर वेगनर को ढूंढ़ा कैसे जाए ? उनके आख़िरी पते पर एक सैनिक को भेजा गया. शाम को बड़ी मुश्किल से उन्हें हिटलर के बंकर में लाया गया. लेकिन वो अपने साथ शादी का सर्टिफ़िकेट लाना भूल गए."
"उसे लेने वो दोबारा अपने घर गए. रूसियों की भयानक गोलाबारी के बीच मलबे से अटी पड़ी सड़कों से होते हुए वैगनर वापस हिटलर के बंकर में पहुंचे. उस समय शादी की दावत शुरू होने वाली थी और हिटलर और इवा ब्राउन बहुत बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहे थे. हिटलर ने गोएबेल्स और ब्राउन ने बोरमन को अपना गवाह बनाया."

रॉबर्ट पेन आगे लिखते हैं,
"शादी के सर्टिफ़िकेट पर हिटलर का हस्ताक्षर एक मरे हुए कीड़े की तरह दीख रहा था। इवा ब्राउन ने पहले शादी से पहले वाला उनका नाम ब्राउन लिखना चाहा. उन्होंने 'बी ' लिख भी दिया. लेकिन फिर उन्होंने उसे काटा और फिर साफ़ साफ़ इवा हिटलर ब्राउन लिखा। गोएबेल्स ने मकड़ी के जाले से मिलता जुलता हस्ताक्षर किया लेकिन उसके पहले वह डाक्टर लगाना नहीं भूला। सर्टिफ़िकेट पर तारीख लिखी थी 29 अप्रैल जो कि ग़लत थी, क्योंकि शादी होते होते रात के बारह बज कर 25 मिनट हो चुके थे. कायदे से उस पर 30 अप्रैल लिखा जाना चाहिए था."

शादी के बाद के भोज में बोरमन, गोएबेल्स,
और उसकी पत्नी, जनरल बर्गडॉर्फ़, हिटलर की दो निजी सचिव और उनका शाकाहारी रसोइया भी शामिल हुआ। इवा हिटलर के स्वास्थ्य के लिए सबने जाम उठाए। इवा ने काफ़ी शैंपेन पी ली। हिटलर ने भी शैंपेन का एक घूंट लिया और पुराने दिनों के बारे में बातें करने लगे जब वो गोएबेल्स की शादी में शामिल हुए थे। फिर अचानक हिटलर का मूड बिगड़ गया और वह बोला,
"सब ख़त्म हो गया. मुझे हर एक ने धोखा दिया."

अपने जीवन के आखिरी दिन हिटलर ने कुछ घंटों की नींद ली और तरोताज़ा उठा। अक्सर यह देखा गया है कि मौत की सज़ा पाए कैदी अपनी मौत से पहले की रात चैन की नींद सोते हैं।  नहाने और दाढ़ी

बनाने और अपनी मूंछो को व्यवस्थित करने के बाद हिटलर अपने जनरलों से मिला। उसने कहा कि अंत नज़दीक है. सोवियत सैनिक किसी भी क्षण उनके बंकर में घुस सकते हैं।
रॉबर्ट पेन आगे लिखते हैं,
"हिटलर ने प्रोफ़ेसर हासे को बुला कर पूछा कि साइनाइड के कैप्सूलों पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं ? हिटलर ने ही सलाह दी कि उनका परीक्षण उनकी प्रिय कुतिया ब्लांडी पर किया जाए। परीक्षण के बाद हासे ने हिटलर को रिपोर्ट दी, 'परीक्षण सफल रहा'. ब्लांडी को मरने में कुछ सेकेंड से ज़्यादा नहीं लगे."

"हिटलर की ख़ुद इस दृश्य को देखने की हिम्मत नहीं हुई. मरने के बाद ब्लांडी और उसके छह पिल्लों को एक बक्से में रख कर चांसलरी के बगीचे में लाया गया. पिल्ले अभी तक अपनी माँ के स्तनों से चिपके हुए थे. तभी ओटे ग्वेंशे ने उन्हें एक एक कर गोली मारी और उस बक्से को बगीचे में ही दफ़ना दिया गया."

ढाई बजे हिटलर अपना आखिरी भोजन करने के लिए बैठा। ओटो ग्वेंशे को आदेश मिला कि वो 200 लीटर पेट्रोल का इंतज़ाम करे औऱ उसे जेरी केनों में भर कर बंकर के बाहरी दरवाज़े तक पहुंचाए.

हिटलर के एक और जीवनीकार के अनुसार,
"ग्वेंशे ने जब हिटलर के शोफ़र एरिक कैंपका को इस बारे में ( पेट्रोल के बारे में ) फ़ोन किया तो कैंपका हंसने लगा। उसको पता था कि चाँसलरी में पेट्रोल की कितनी किल्लत है. वह बोला,
' किसी को 200 लीटर पैट्रोल की क्यों ज़रूरत हो सकती है?'
लेकिन ग्वेंशे ने आदेश के लहजे में कहा कि ये हंसने का समय नहीं है.. कैंपका ने बहुत मुश्किल से 180 लीटर पैट्रोल का इंतेज़ाम किया."

भोजन के बाद हिटलर आख़िरी बार अपने साथियों से मिलने आया। उसने बिना उनके चेहरों को देखे उनसे हाथ मिलायेे उसकी पत्नी इवा ब्राउन भी उसके साथ थी। उसने गहरे नीले रंग की पोशाक और ब्राउन रंग के इटालियन जूते पहन रखे थे।. उसकी कलाई पर हीरों से जड़ी प्लेटिनम की घड़ी बँधी हुई थी।. फिर वो दोनों कमरे के अंदर चले गए। तभी एकदम से शोर सुनाई दिया। गोएबेल्स की पत्नी शोर सुनकर दरवाजे तक चिल्लाते हुए आई कि हिटलर को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। अगर उन्हें उससे बात करने दी जाए तो वो उन्हें ऐसा न करने के लिए मना सकती हैं।

गरहार्ड बोल्ट की किताब 'इन द शेल्टर विद हिटलर' का यह अंश पढें।
"हिटलर का अंगरक्षक ग्वेंशे छह फ़ीट दो इंच लंबा था और बिल्कुल गोरिल्ला जैसा लगता था। माग्दा, गोएबल्स की पत्नी, अपनी बात पर इतना ज़ोर दे रही थीं कि ग्वेंशे ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का फ़ैसला किया. दरवाज़ा अंदर से लॉक नहीं था. ग्वेंशे ने हिटलर से पूछा कि क्या आप माग्दा से मिलना पसंद करेंगे? इवा का कोई पता नहीं था. शायद वो बाथरूम में थी क्योंकि अंदर से पानी चलने की आवाज़ आ रही थी. हिटलर मुड़ा और बोला, 'मैं किसी से नहीं मिलना चाहता.' इसके बाद उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया."
दरवाज़े के ठीक बाहर खड़े हेंज़ लिंगे को पता ही नहीं चला कि हिटलर ने कब अपने आप को गोली मारी. उनको इसका पहला आभास तब हुआ, जब उनकी नाक में बारूद की हल्की सी महक गई.

रोकस मिस्च हिटलर के बंकर में टेलिफ़ोन ऑपरेटर था। कुछ सालों पहले उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा था,
"अचानक मैंने सुना कि कोई हिटलर के अटेंडेंट से चिल्ला कर कह कहा था, 'लिंगे! लिंगे! शायद हिटलर नहीं रहे.' शायद उन्होंने गोली की आवाज़ सुनी, लेकिन मुझे तो कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी. उसी समय हिटलर के निजी सचिव बोरमन ने सब को चुप होने के लिए कहा."
आगे रोक्स मिस्च कहता है,
"हर कोई फुसफुसा कर बात कर रहा था. तभी बोरमन ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का हुक्म दिया. मैंने देखा हिटलर का सिर मेज़ पर लुढ़का हुआ था. इवा ब्राउन सोफ़े पर लेटी हुई थीं और उनके घुटने सीने तक मुड़े हुए थे. उन्होंने गाढ़े नीले रंग की की पोशाक पहनी हुई थी जिस पर सफ़ेद रंग की फ़्रिल लगी हुई थी.मरते मरते शायद उन्होंने अपना हाथ फैलाया था, जिसकी वजह से वहाँ रखा फूलों का गुलदस्ता गिर गया था. मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल सकता."

इसके बाद लिंगे ने हिटलर के शव को कंबल में लपेट दिया और वो उसे ले कर इमरजेंसी दरवाज़े से ऊपर चांसलरी के बगीचे में लाए. बोरमन ने इवा ब्राउन के शव को अपने हाथों में उठाया.
रोकस मिस्च याद करते हैं,
"जब वो हिटलर के शव को मेरे पास से ले कर गुज़रे तो उनके पैर नीचे लटक रहे थे. किसी ने मुझसे चिल्ला कर कहा, 'जल्दी ऊपर आओ. वो लोग बॉस को जला रहे हैं. लेकिन मैं ऊपर नहीं गया.''

हिटलर के जीवनीकार इयान करशाँ इस पर जो  लिखते हैं, उसे पढिये,
"इस दृश्य को हिटलर के अंतिम दिनों के सभी साथी बंकर के दरवाज़े से देख रहे थे। जैसे ही उनके शवों में आग लगाई गई, सभी ने हाथ ऊँचे कर 'हेल हिटलर' कहा और वापस बंकर में लौट गए. उस समय तेज़ हवा चल रही थी."

"जब लपटें कम हुई तो उनपर और पेट्रोल डाला गया. ढाई घंटे तक लपटें उठती रहीं। रात 11 बजे ग्वेंशे ने एसएस जवानों को उन जले हुए शवों को दफ़नाने के लिए भेजा। कुछ दिनों बाद जब सोवियत जाँचकर्ताओं ने हिटलर और उनकी पत्नी के अवशेषों को बाहर निकाला तो सब कुछ समाप्त हो गया था। वहाँ एक डेंटल ब्रिज ज़रूर मिला। 1938 से हिटलर के दंत चिकित्सक के लिए काम करने वाले एक शख़्स ने पुष्टि की कि वो डेंटल ब्रिज हिटलर के ही थे."

हिटलर यूरोपीय इतिहास का एक विचित्र चरित्र रहा है। अपने समय मे वह बेहद लोकप्रिय भी रहा है और जब वह मरा तो जर्मनी का सबसे अभिशप्त पात्र भी बना। एक पेंटर के रूप में अपनी आजीविका प्रारंभ करने वाला हिटलर जर्मनी का सबसे चहेता और प्यारा नेता एक समय बन गया था। पर नस्लीय घृणा, अंधराष्ट्रवाद, और उन्मादित श्रेष्ठतावाद ने उसे अपने समय का सबसे कुख्यात नायक बना दिया। मीन कम्फ, मेरा संघर्ष नाम से चर्चित उसकी आत्मकथा ने उसके जीवन का एक पक्ष कि कैसे वह जर्मनी के शिखर पर पहुंचता है यह तो बताता है पर उसके नेतृत्व, अपने ही नागरिकों के एक भाग से अतिशय घृणा और  घृणित हिंसक मनोवृत्ति ने जर्मनी को क्या दिया यह जब आप 1945 के बाद जर्मनी का इतिहास पढ़ेंगे तो खुद ही जान पाएंगे।

लोकप्रिय नेतृत्व अक्सर दुधारी तलवार की तरह होता है। लोकप्रियता का आवेग और आवेश मन को ऐसी स्थिति में पहुंचा देता है कि नेतृत्व की आलोचना का साहस ही कहीं न कहीं खो जाता है। नेतृत्व सक्षम हो, समर्थ हो और लोकप्रिय भी हो तो देश और समाज का भला होता है। पर नेतृत्व लोकप्रिय तो हो पर अन्य गुणों और सोच का अभाव है तो ऐसा नेतृत्व समाज और देश दोनों को हानि पहुंचाता है। हिटलर के साथ भी यही हुआ। लोग दीवाने थे उसके। पर जब वह मरा तो उसकी दशा आप पढ़ ही चुके हैं और जर्मनी की हालत 1945 के बाद का यूरोपीय इतिहास पढ़ कर समझा जा सकता है।

© विजय शंकर सिंह

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