Wednesday 26 December 2018

फरमान - सड़कों और पार्कों में प्रार्थना और पूजा पाठ शादी व्याह के आयोजन बंद हों / विजय शंकर सिंह

आप सार्वजनिक पार्क में खेल सकते हैं, टहल सकते हैं, प्रेमालाप कर सकते हैं, घर या रेस्तरां से खाना ले जाकर दोस्तों के साथ खा पी सकते हैं, मस्ती कर सकते हैं, मूंगफली के छिलके से उसे गंदा कर सकते हैं, भंडारे कर के जूठी पत्तल, इधर उधर फेंक कर फैला सकते हैं, शादी विवाह और जनसभा में तंबू कनात गाड़ कर उसे जगह जगह खोद कर उसका स्वरूप बदल सकते हैं, पर वहां प्रार्थना नहीं कर सकते है। यह सरकार का हुक्म है। जहाँ आधे से अधिक देवस्थान, कब्ज़ा किये गए और अतिक्रमित सार्वजनिक स्थानों पर बने हैं वहाँ ऐसे फरमान हास्यास्पद हैं।

वैसे सार्वजनिक पार्कों में क्या किया जाना चाहिये और क्या नहीं किया जाना चाहिये इस पर एक विस्तृत दिशा निर्देश सरकार द्वारा जारी किया जाना चाहिये। सरकार का यह फैसला बुरा नहीं है और यह सभी प्रकार के धार्मिक आयोजनो पर रोक लगे। सरकार ने 23 कम्पनियों को यह फरमान नोटिस  जारी किया है कि वह अपने कर्मचारियों को सार्वजनिक पार्क में नमाज़ पढ़ने से रोके । पर कम्पनियां किस कानूनी अधिकार से अपने कर्मचारियों को कहीं पर नमाज़ पढ़ने से रोक सकती हैं यह तो सरकार ही बताएगी। पर क्या किसी कम्पनी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी व्यक्ति को संविधान के अंतर्गत प्राप्त उपासना की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से वंचित कर सके ? अगर पूजा पाठ करने की जगह भी कम्पनियां तय करने लगेगीं तो इसके दूरगामी परिणाम हैं। कम्पनियो को यह अधिकार ही नहीं है कि वे अपने कर्मचारियों को यह निर्देश या आदेश दें कि अमुक स्थान पर नमाज या पूजा करें या न करें।

सड़को पर, व्यस्ततम चौराहों पर भी देवस्थान बने हैं जिनमे से अधिकतर का उद्देश्य ही है ज़मीन का कब्ज़ा करके सार्वजनिक संपत्ति को हथियाना। इस सब अतिक्रमण कर के बनाये गए मंदिर दरगाहों को हटा कर इन्हें व्यवस्थित रूप से सरकार को बनाने की एक योजना बनानी चाहिये। सार्वजनिक स्थानों औए पार्कों में किसी भी प्रकार की धर्मिक गतिविधियों पर रोक हो जाय तो अच्छा ही है, इससे सड़कें, पार्क साफ सुथरे बनेंगे और लोग आराम से उन पार्कों की प्रदूषण मुक्त वातावरण का लाभ उठा सकेंगे। पर केवल नमाज़ पर ही पाबन्दी हो यह गलत है। ऐसी पाबन्दी सभी धार्मिक गतिविधियों पर होनी चाहिये। अगर एक ही धर्म की गतिविधि विशेष पर कोई पाबंदी होगी तो ऐसे आदेश को अदालत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। वैसे, जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2009 के आदेश में किसी भी धर्म की धार्मिक गतिविधियों के लिए सार्वजनिक स्थानों के अनाधिकृत इस्तेमाल पर स्पष्ट प्रतिबंध है और प्रशासन बस इसी आदेश को अक्षरश: लागू कर रहा है। उम्मीद है सरकार को यह यह भी पता होगा कि सुप्रीम कोर्ट का 2009 का आदेश केवल इस पार्क के लिए ही नहीं है।

अब जुमे की नमाज़ से जुड़ी  डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान की यह टिप्पणी पढ़ ले जो नमाज़ की धार्मिक स्थिति को और स्पष्ट करती है।
' क्योंकि नोएडा की सड़कों और पार्कों में पढ़ी जाने वाली नमाज़ में ख़ुतबा नहीं होता लिहाज़ा इसे नमाज़-ए-जुमा नहीं माना जा सकता.ऐसी हालत में इसे जोहर की नमाज़ माना जाएगा.इसलिए जो लोग जुमे की नमाज़ पढ़ना चाहते हैं वो जुमा मस्जिदों में जाकर ही नमाज़ पढ़ा करें.सड़क पर और पार्क में नमाज़ पढ़ ली और ये सोच लिया कि मेरी जुमे की नमाज़ हो गई तो ये ग़लत है.नमाज़ पढ़ना है तो वक़्त निकालें,कुछ घंटों की छुट्टी लें और जुमा मस्जिदों में जाएं,ख़ुतबा सुनें और नमाज़ पढ़ें.सड़क पर और पार्क में जुमे की नमाज़ को नमाज़-ए-जुमा नहीं तस्लीम किया जाएगा.ये ज़िद ना करें और फ़ालतू तर्क ना दें कि पूजा पार्क में हो रही है तो हम भी जुमे की नमाज़ पढ़ेंगे.सड़क पर और पार्क में नमाज़ पढ़ने से रोक यूपी सरकार तो मुसलमान को सही राह पर ला रही है.सही इस्लाम पर चलने की सीख दे रही है.शुक्रिया बाबा योगी.सुल्तान तुग़लक़ का भी हुक़्म था कि जुमे की नमाज़ के वक़्त मुसलमान जुमा मस्जिद में नज़र आएं.ना सड़क पर दिखें ना बाग़ में टहलते दिखें."

पहले नमाज़ और अब, ग्रेटर नोयडा के एक सार्वजनिक स्थल पर भी भागवत कथा के  आयोजन पर रोक लगा दी गयी है। यह घटना नोयडा के सेक्टर 58 के सार्वजनिक पार्क में जुमा की नमाज़ प्रतिबंधित करने के दूसरे दिन की है। वहां पहले भी भागवत कथा की आड़ में मूर्ति स्थापना की साज़िश की गयी थी, जिसे स्थानीय निवासियों ने ग्रेटर नोयडा के अधिकारियों से शिकायत की और वह अधिकारियों की सक्रियता से विफल हो गयी। यह घटना ग्रेटर नोयडा के सेक्टर 37 की है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में, सरकार द्वारा, सार्वजनिक पार्क में नमाज़ रोकने के लिये कम्पनियों को चिठी लिखने  का शिगूफा भी बस वही चिरपरिचित रणनीति कि बांटो लड़ाओ और राज पाओ राज करो के एजेंडे की एक बानगी भर है। यह ध्रुवीकरण की एक साजिश है। इसे समझिये और हर प्रकार के साम्प्रदायिक मुद्दे जो ध्रुवीकरण कर सकते हैं को नजरअंदाज करें। अभी उनके पिटारी में और भी ऐसे मुद्दे हैं जो आगे आएंगे । बस हमे इन सब मुद्दों से सतर्क रहना है और जीवन से जुड़े मुद्दे, रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि आदि पर ही उनसे सवाल पूछ कर उन्हें यह जताना है कि लोकतंत्र में  सरकारें दीन के लिये नहीं दुनिया के बेहतरी के लिये चुनी जाती हैं।

© विजय शंकर सिंह 

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