Sunday 29 October 2017

वृंदावन और बरसाना नये तीर्थ नहीं हैं / विजय शंकर सिंह

सरकार ने एक फरमान जारी किया है कि, बरसाना और वृंदावन तीर्थ स्थल माने जाएंगे । यह घोषणा न केवल हास्यास्पद है बल्कि यह सरकार की अज्ञानता को प्रदर्शित कर रही है । दर असल सरकार इस ग्रन्थि से पीड़ित है कि उसके आने के पूर्व देश मे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जिसे सनातन धर्म या हिन्दू धर्म का हित हुआ हो । खुद को एकमात्र धर्म का रक्षक प्रदर्शित करने की यह कसरत अक्सर सरकार से ऐसे फैसले कराती है जिस से वह खुद को असहज परिस्थितियों में पाने लगती है । इसी फैसले को लें । यह फैसला मथुरा वृंदावन को ले कर है । मथुरा सात पवित्र पुरियों नगर में पौराणिक काल से ही मानी जाती रही है । यह सात पवित्र नदियों में से एक यमुना के किनारे स्थित है । यह सनातन अवतारों में से एक, पूर्णावतार कृष्ण की जन्म स्थली रही है । हज़ारों साल से ब्रज चौरासी की यात्राएं चलती रही है । ये नगर या कोई भी सनातन धर्म से जुड़ा तीर्थ या स्थान किसी सत्ता के राज्याश्रय की अपेक्षा नहीं करता है ।

वृंदावन और बरसाना तो प्राचीनकाल से ही तीर्थ रहे हैं। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में अन्यत्र वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है।

वृंदावन के स्थान विशेष पर विवाद भी है। कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है। श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था। गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे। सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु | कुछ लोग नन्दगाँव और बरसाना से थोड़ी दूर स्थित आदि वृंदावन को मूल वृंदावन मानते है। 

15वीं शती में चैतन्य महाप्रभु ने अपनी ब्रजयात्रा के समय वृन्दावन तथा कृष्ण कथा से संबंधित अन्य स्थानों को अपने अंतर्ज्ञान द्वारा पहचाना था। रासस्थली, वंशीवट से युक्त वृन्दावन सघन वनों में लुप्त हो गया था। कुछ वर्षों के पश्चात शाण्डिल्य एवं भागुरी ऋषि आदि की सहायता से श्री वज्रनाभ महाराज ने कहीं श्रीमन्दिर, कहीं सरोवर, कहीं कुण्ड आदि की स्थापनाकर लीला-स्थलियों का प्रकाश किया। किन्तु लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों के बाद ये सारी लीला-स्थलियाँ पुन: लुप्त हो गईं, महाप्रभु चैतन्य ने तथा श्री रूप-सनातन आदि अपने परिकारों के द्वारा लुप्त श्रीवृन्दावन और ब्रजमंडल की लीला-स्थलियों को पुन: प्रकाशित किया। श्री चैतन्य महाप्रभु के पश्चात उन्हीं की विशेष आज्ञा से श्री लोकनाथ और श्री भूगर्भ गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी, श्री गोपालभट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथदास गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी आदि गौड़ीय वैष्णवाचार्यों ने विभिन्न शास्त्रों की सहायता से, अपने अथक परिश्रम द्वारा ब्रज की लीला-स्थलियों को प्रकाशित किया है । वर्तमान वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर राजा मानसिंह का बनवाया हुआ है। यह मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में बना था। मूलत: यह मंदिर सात मंजिलों का था। ऊपर के दो खंड औरंगज़ेब ने तुड़वा दिए थे। कहा जाता है कि इस मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर जलने वाले दीप मथुरा से दिखाई पड़ते थे। 

वृंदावन में निधिवन, बिहारी जी का मंदिर आदि तो बहुत ही पुराने हैं । अब तो इस्कॉन, रंग जी का मंदिर, पागल बाबा का मंदिर आदि अनेक मंदिरों सहित बहुत से आश्रम और धर्मशालाएं खुल गयी है । वहाँ आमिष भोजन तो पहले से ही वर्जित है । वहां अगर आमिष भोजन खाने वाला जाता भी है वह निरामिष भोजन ही ग्रहण करता है । वृंदावन महान संगीत साधक स्वामी हरिदास की भी कर्मभूमि है। उनके सम्मान में हर साल यहां स्वामी हरिदास संगीत सम्मेलन का आयोजन होता है । एक सप्ताह तक चलने वाले इस पर्व में गायन वादन और नृत्य की विधा के अनेक महान कलाकार निःशुल्क आते हैं । मैंने खुद कथक के उस्ताद बिरजू महाराज, बाँसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, सरोद के उस्ताद अमज़द अली खान, नृत्य के यामिनी कृष्णमूर्ती को सुना और देखा है ।

इसी प्रकार बरसाना जो राधा जिसे श्री जी भी कहते है का गांव है । यह भी तीर्थ है । गांव के पश्चिम में ही एक बड़े से टीले पर जयपुर राज का बनवाया हुआ श्री जी का मंदिर है । वृंदावन की अपेक्षा यहां यात्री कम आते हैं । इसका एक कारण है यह मथुरा से दूर है। वृंदावन तो एनएच 2 पर है और अधिक प्रसिद्ध हैं । अब बरसाना में कई धर्मशालाएं खुल गयी हैं । ब्रज क्षेत्र के लोग अधिकतर  निरामिष भोजन ही ग्रहण करते हैं । इसका कारण यहाँ वैष्णव परंपरा का प्रभाव है । यहां की लठामार होली तो जगत प्रसिध्द है । इसका जीवंत प्रसारण दूरदर्शन पर प्रारम्भ से ही होता रहा है ।

मथुरा के आसपास के तीर्थो में इनके अतिरिक्त गोवर्धन, जहां हर पूर्णिमा को गिरिराज जी की परिक्रमा होती है , बलदेव जो होली के अवसर पर दाऊ जी का हुरंगा के लिये प्रसिद्ध है, गोकुल जो जहां कृष्ण के बालपन के दिन गुजरे थे आदि ब्रज चौरासी की परिक्रमा क्षेत्र में आते हैं । यह सब तीर्थ हैं । मथुरा तो कृष्ण की जन्मभूमि है ही।

सरकार ने इन तीर्थों को पुनः तीर्थ घोषित किया है , जब कि ये सभी तीर्थ पहले से ही वैष्णव परम्परा में मान्य तीर्थ है । सरकार का पर्यटन विभाग भी इनको पहले से ही तीर्थ मान रहा है । लेकिन इन देशी तीर्थो के ऊपर सरकार का नहुत ध्यान नहीं है । वृंदावन तो नगर पालिका है पर और तीनों तीर्थ टाउन एरिया है । यह एक दुःखद स्थिति है कि सरकार के पर्यटन विभाग उन्हीं स्थानों की देखभाल पर अधिक ध्यान डेता है जहां विदेशी पर्यटक अधिक आते हैं  । सरकार का ध्यान इन तीर्थों को साफ सुथरा, अपराध से मुक्त करने और जनापेक्षित शासन व्यवस्था देने की ओर भी होना चाहिये । 

© विजय शंकर सिंह 

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