Saturday 28 October 2017

असग़र वजाहत की एक कहानी - भगवान की आरामगाह / विजय शंकर सिंह

भगवान का कोई भी नाम हो सकता है, लेकिन उनका नाम भगवान है । तो भगवान जज के सामने खड़े हैं।
जज - तुम पर आरोप है कि तुम लोगों का भेजा खा गए हो ।
भगवान -  भेजा खाना कोई अपराध नहीं है।
जज - भेजा  खाना तो सबसे बड़ा अपराध है ।
भगवान -  क्यों? कैसे कैसे?
जज - मैं  तुम्हें बताता हूँ.....
भगवान-  मैं भगवान.... मैं भगवान हूं कुछ भी कर सकता हूं।
जज -  मैं जज हूँ, मैं सब कुछ नहीं कर सकता, लेकिन तुम्हें सज़ा दे सकता हूं क्योंकि तुम अपराधी हो।
भगवान-  मैं अपराधी नहीं  हूँ, भेजा खाना अपराध नहीं है
जज -  यह बहुत बड़ा अपराध है, तुमने करोड़ों लोगों का भेजा खाया है।उनकी बुद्धि हर ली है।उनका दिमाग़ खा गए हो।
भगवान-  तो उससे क्या होता है ।
जज - करोड़ों लोगों को तुमने अपना दास बना लिया है। दास बना कर तुम उनका जीवन खा गए हो। और जीवन को खाने से बड़ा अपराध क्या हो सकता है । मैं तुम्हें आजन्म कारावास की सज़ा देता हूं।
भगवान - नहीं नहीं यह मत करो। मतलब मैं जब तक जीवित हूं, अनंत काल तक मैं जेल में बंद रहूंगा ।
जज- हाँ तुम  इसी योग्य हो। तुम  जीवन भर एक ऐसी काल कोठरी में बंद रहोगे जिसमें  न कोई दरवाजा होगा, न कोई खिड़की, न कोई रौशनदान। उसके अंदर से हवा न बाहर आएगी और  न  बाहर की हवा अंदर जाएगी....
भगवान के कोठरी में  बन्द होते ही मेरी अक़ल,बुद्धि , दिमाग़ अपनी जगह  वापस आ गया।
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#vss

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