Wednesday, 10 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - तीन (7)

(चित्र : राजकुमारी इरीना और राजकुमार फेलिक्स युसुपोव)

ज़ार निकोलस से सहानुभूति भी हो सकती है। वह विश्व-युद्ध के इकलौते ऐसे राजा थे, जो स्वयं सीमा पर कमान लेकर लड़ रहे थे। वह भले एक काबिल कमांडर नहीं थे, किंतु समर्पित तो थे ही। रूस की कमजोरियों के बावजूद जर्मन सेना पेत्रोग्राद या मॉस्को तक नहीं पहुँच सकी। इस मायने में रूस को सुरक्षित रखने में ज़ार कामयाब हुए। 

ज़ार सिर्फ़ जर्मनी से नहीं लड़ रहे थे। उनकी दूसरी लड़ाई थी उन तमाम बोल्शेविकों और समाजवादियों से, जो उनकी ज़ारशाही खत्म करना चाहते थे। उनके लोग सेना में भी विद्रोह के वातावरण बना रहे थे। 

उनकी तीसरी लड़ाई थी अपने परिवार की समस्याओं से। तमाम आरोपों के बावजूद वह ज़ारीना अलेक्सांद्रा पर शक नहीं करते थे। यह बात संभवत: सत्य भी थी कि रासपूतिन और ज़ारीना में शारीरिक संबंध कभी बने ही नहीं। ज़ारीना एक धर्मनिष्ठ स्त्री थी, जो युवराज अलेक्सी के हीमोफीलिया के इलाज के लिए रासपूतिन पर भरोसा करती थी। यह बात 1916 में एक बार पुन: सिद्ध हुई, जब रासपूतिन ने युवराज का इलाज किया।

जब ज़ार अक्तूबर 2016 में अपनी माँ से मिलने कीव पहुँचे तो राजमाता ने समझाया, “अपनी पत्नी को उस सनकी संत के जाल से हटाओ। उसे साइबेरिया भेजो या मरवाओ। अन्यथा हमारा सदियों का राज खत्म हो जाएगा।”

ज़ारीना ने इसे सास-बहू समस्या बताते हुए निकोलस को लिखा, “राजमाता मुझे कभी पसंद नहीं करती थी। जिस दिन तुम्हारे पिता की मृत्यु हुई, उसी दिन हमारी सगाई हुई। वह मुझे अपशकुन मानती रही। उनकी समस्या रासपूतिन से नहीं, मुझसे है। वह ताने मारती रहती है कि रूस की महारानी होकर मुझे अब तक रूसी भाषा नहीं आयी। मैंने प्रयास तो किया ही है।”

ज़ार की चौथी लड़ाई थी ड्यूमा (संसद) से। युद्ध के दौरान उन्होंने पाँच बार प्रधानमंत्री बदले, और कई बार मंत्रिमंडल।  नेताओं में अधिकांश भ्रष्ट और यहूदी-विरोधी लोग थे। उनकी एक बेहतर योजना यह थी कि ज़ार को हटवा कर चुनावी लोकतंत्र की स्थापना की जाए। ऐसा अगर वह कर पाते तो शायद रूस के लिए अच्छा होता। 

1 नवंबर 2016 को रूस के उप-प्रधानमंत्री मिल्युकोव ने संसद में एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने रासपूतिन को सभी समस्याओं की जड़ बताया। दो हफ्ते बाद एक अन्य मंत्री पुरिश्केविच ने संसद में कहा, “अगर इस रासपूतिन का अंत नहीं किया गया, तो रूस खत्म हो जाएगा। ज़ार खत्म हो जाएँगे। यह संसद खत्म हो जाएगा।”

उस समय संसद में जहाँ तालियाँ बज रही थी, राजकुमार फेलिक्स युसुपोव सर से पाँव तक काँप रहे थे। वह पुरिश्केविच से मिलने पहुँचे और कहा, “सहमत हूँ। रासपूतिन की हत्या अब ज़रूरी है”

पुरिश्केविच ने कहा, “राजकुमार! हत्या नहीं, कानूनी सजा”

“उसमें बहुत वक्त लगेगा।”

“रासपूतिन को मारने की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं। आपको तो खबर ही होगी। कौन मारेगा उसे?”

“वही, जो आपके सामने खड़ा है”

“आप अगर मारेंगे तो आपका क्या हश्र होगा, राजकुमार?”

“मैंने पूरी योजना बना ली है। मेरी पत्नी और मेरी माँ इसमें सहयोग दे रही है। कुछ और लोग भी हैं। मैंने जहर और बंदूक, सभी इंतज़ाम कर लिए हैं।”

“कहाँ मारेंगे, और लाश का क्या करेंगे?”

“अभी इतनी बर्फ़ जमी है कि लाश नदी में बर्फ़ के छेद से गिरायी जा सकती है। मैंने पेत्रोग्राद के बाहर दो जगह देख रखे हैं।”

“आप रासपूतिन से मिलेंगे कैसे?”

“मैं एक मरीज बन कर मिलूँगा। रासपूतिन से मेरी बात हो चुकी है। उसने कहा है कि वह मेरा इलाज करेगा। उसकी रुचि मेरी पत्नी के साथ सोने में है।”

“आप ख़्वाह-म-ख़्वाह इतना बड़ा रिस्क उठा रहे हैं। रासपूतिन को सिर्फ़ साइबेरिया भेजने से काम हो सकता है।”

“मंत्री जी! आप इन बातों को नहीं समझेंगे। मैंने शामन तांत्रिकों को करीब से देखा है। वे साधारण मनुष्य नहीं होते। अगर कोई आदमी रूस के ज़ार परिवार को ही सम्मोहित कर चुका है, तो वह मुझसे या आपसे कहीं ऊपर की चीज है।”

“ठीक है। जब आपने इतनी योजना बना रखी है, तो तारीख भी सोच ही रखी होगी”

“ईश्वर ने चाहा तो 17 दिसंबर की सुबह एक नए रूस का जन्म होगा।”
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - तीन (6)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/6.html 
#vss 

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