(चित्र: गोरकी मैंसन)
“जब मैंने मृत्यु का आदेश सुनाया, ज़ार ने पूछा- क्या?
मैंने उन्हें पुन: आदेश पढ़ कर सुनाया। बार-बार सुनाया कि उन्हें मारे जाने का आदेश है। वह अपने परिवार की ओर मुड़े, और कुछ बुदबुदाने लगे। हमने अपने-अपने पूर्व-निर्देशित लक्ष्य को गोली मारनी शुरू कर दी। निर्देश यह था कि गोली सीधे हृदय पर मारी जाए, किंतु उनके हिलने-डुलने की वजह से निशाने ग़लत लग रहे थे।
निकोलस को मैंने स्वयं सामने से गोली मारी, और वह तुरंत ढेर हो गए। अलेक्सांद्रा भी अपने हाथ में क्रॉस लेकर माथे से लगा ही रही थी, और मारी गयी। बच्चे चिल्लाते हुए इतने हिल रहे थे कि गार्ड उन्हें मार नहीं पा रहे थे। वे कहीं भी निशाना लगा रहे थे, और गोलियाँ दीवाल से टकरा कर उन्हें लग रही थी। अलेक्सी खून से लथ-पथ जमीन पर पड़ा था, लेकिन मरा नहीं था। मैंने उसके सर में दो गोली मार कर निपटा दिया।
हमें बाद में मालूम हुआ कि राजकुमारियों के अंत:-वस्त्र में छुपाए हीरे और गहने बुलेट-प्रूफ़ का काम कर रहे थे। जो काम सेकंडों में हो सकता था, उसमें बीस मिनट लग गए। अंत में बंदूक की संगीन (bayonet) उनकी छाती में भोंकनी पड़ी, मगर वह भी इन हीरों की वजह से कठिन हो रहा था।”
- युकोव्सकी का संस्मरण
वहाँ मौजूद मेदेवदेव के अनुसार जब गार्ड राजकुमारियों के शरीर से गहने लूटने लगे तो युकोव्सकी चिल्लाए,
“तुम्हें लाशों को लूटते हुए शर्म नहीं आती? अगर किसी ने गहने चुराए तो उसे मैं खुद ही गोली मार दूँगा।
हालाँकि युकोव्स्की ने ज़ार के जेब में मिली हीरे से जड़ी सिगरेट की डब्बी अपनी जेब में रख ली। लगभग आठ किलो हीरे तो सिर्फ़ जेबों और कमर से निकले। बाद में जब उन्हें जलाने के लिए नंगा किया गया तो राजकुमारियों के हर अंत:-वस्त्र में थैलियाँ सिल कर गहने रखे मिले।
ज़ार परिवार की लाशों को लपेट कर एक फिएट ट्रक में ले जाया गया। उन्हें एक निश्चित स्थान पर जला दिया गया, और लाशों को यूराल की खाली पड़ी खदानों में नीचे उतारने का प्रयास किया गया। बाद में मॉस्को की ओर एक स्थान पर ज़ार परिवार की अस्थियों को दफ़न कर दिया गया।
रोमानोव वंश के अंत के साथ ही ज़ारशाही के लौटने के सभी कयास खत्म हो गए। लेकिन, रूस का भविष्य तो अभी लिखा जाना बाकी था।
अगले महीने 30 अगस्त 1918 की सुबह दस बजे लेनिन की सीक्रेट सर्विस चीफ़ उरित्सकी की हत्या कर दी गयी। लेनिन को उनकी बहन मारिया ने समझाया, “आज आप कहीं बाहर न निकलें। क्रेमलिन में ही रहें”
लेनिन ने कहा, “मुझे शाम को एक फ़ैक्ट्री में भाषण देने जाना है”
शाम पाँच बजे वहाँ पहुँच कर उन्होंने मजदूरों को कहा,
“क्रांति इसलिए नहीं हुई थी कि ज़ारशाही खत्म हो। यह इसलिए हुई कि पूँजीपतियों का राज खत्म हो। ये तमाम बुर्जुआ जो उद्योग चलाते हैं, वह आपके श्रम से बड़ा मुनाफ़ा कमा कर आपके हाथ में आखिर क्या देते हैं? क्रांति तो अमरीका में भी हुई लेकिन वहाँ पूँजीवाद अपने सबसे विकृत रूप में है। वहाँ उद्योगपति राजा हैं, और मजदूर कीड़े-मकोड़े। हम आपके हाथों में शक्ति देना चाहते हैं। हमारे सामने दो ही विकल्प है। हम या तो जीतेंगे, या मरेंगे।”
इस भाषण के बाद लेनिन अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़े और कुछ मजदूरों से बात करने लगे। तभी तीन गोलियाँ चली, और लेनिन खून से लथपथ जमीन पर गिर पड़े।
वहाँ मौजूद एक मजदूर चिल्लाए, “लेनिन! यह क्या हो गया? किसने गोली चलाई? इन्हें अस्पताल ले चलो”
लेनिन ने कहा, “अस्पताल नहीं। घर। मेरे घर ले चलो”
गोली चलाने वाली महिला फैनी कैप्लन एक समाजवादी क्रांतिकारी थी, जो 1906 में एक ज़ारशाह अधिकारी को गोली मारने के अपराध में दस वर्ष साइबेरिया में सजा काट चुकी थी। वह इस यातना में दृष्टिबाधित हो चुकी थी, लेकिन निशाना अब भी पक्का था।
लेनिन के शरीर से गोलियाँ निकाली गयी, और वह कुछ समय के लिए मॉस्को से बीस किलोमीटर दूर गोरकी नामक स्थान पर प्रकृति के मध्य आराम करने चले गए। अपने प्रिय पेड़-पौधों के बीच।
यह विशाल महल कभी एक जमींदार की संपत्ति थी, जो अब सरकारी संपत्ति में तब्दील कर दी गयी थी। इस महल में जब घायल लेनिन पहुँचे तो उनके प्रिय खानसामे ने सूप और ताज़ा मछली के साथ स्वागत किया।
लेनिन ने मुस्कुरा कर कहा, “स्पिरिदोन! यह गोलियाँ नहीं, तुम्हारे हाथों का जादू मुझे यहाँ खींच लाता है। यही मुझे मरने नहीं देता। तुम्हारा यह कर्ज है मुझ पर।”
उसी मैंसन में लेनिन ने 1924 में अंतिम साँसें ली। वह कर्ज लेनिन ने कभी चुकाया हो या नहीं, एक सदी के बाद स्पिरिदोन पूतिन के पौत्र ( ब्लादिमीर पुतिन ) अवश्य रूस की गद्दी पर बैठे, और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कायम हैं।
(शृंखला समाप्त)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास - तीन (18)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/18_21.html
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