Sunday, 7 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - तीन (4)



रासपूतिन मदिरा के शौकीन थे, और ज़ारीना अफ़ीम की। यहाँ भारतीय पाठकों के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि ‘मदिरा’ एक पुर्तगाली वाइन है, जो वहाँ के मदिरा द्वीप पर बनायी जाती है। इसे ख़ास कर डच ईस्ट इंडिया कंपनी के लोग भारत यात्रा के समय गैलन भर-भर कर खरीदते थे। संभव है यह नाम उन्होंने भारत से ही उठाया हो। यह ‘मदिरा’ अमरीकी स्वतंत्रता संग्राम के कर्णधारों जॉर्ज वाशिंगटन और थॉमस जेफरसन का भी प्रिय पेय था। रासपूतिन तो पूरा गैलन मदिरा गटक जाया करते। 

जब ज़ार निकोलस फ्रंट पर गए, रासपूतिन फुल-टाइम प्रशासन का कार्य देखने लगे और ज़ारीना को गाइड करने लगे। पहले उन्होंने गृह-मंत्री बदल दिया, उसके बाद तो जो मंत्री पसंद नहीं आता, उसे बदल देते। उनका पेत्रोग्राद में स्थित अपार्टमेंट सत्ता का केंद्र बन गया, जहाँ सुबह से लाइन लगी होती। किसी को सजा कम करवानी होती तो किसी के पास फ्रंट पर न भेजे जाने की अर्ज़ी होती। 

रासपूतिन भी उनका हर तरह से शोषण करते। रिपोर्ट कहते हैं कि वह मदद करने के एवज में दो हज़ार रूबल रिश्वत से लेकर महिलाओं का बलात्कार भी किया करते। जब रूसी सेना बुरी तरह सीमा पर पराजित हो रही थी, लाखों मर रहे थे, रासपूतिन हर शाम शराब में धुत्त पार्टियाँ कर रहे होते। कुलीन वर्ग तो यह साक्षात देख ही रही थी, सर्वहारा को भी इस भोग-विलासिता की खबर थी।

एक रूसी फौजी का संस्मरण है कि सीमा पर यही बात चलती रहती कि ज़ार यहाँ बैठे हैं और उनकी पत्नी साइबेरिया के पागल संत के साथ रंगरेलियाँ मना रही है। जर्मन इसके और भी मजे लेने लगे। उन्होंने रूसी सीमा पर सैकड़ों कार्टून पोस्टर गिरा दिए, जिसमें जर्मनी के कैसर विलियम बंदूक की नाल नाप रहे थे और ज़ार निकोलस रासपूतिन का लिंग।

रासपूतिन की जीवनी में एक पार्टी का ज़िक्र है कि रासपूतिन ने एक किताब लिखी, जिसके विमोचन के लिए तमाम शहरी कुलीन वर्ग के लोग आए। शराब पर शराब चले। 

रासपूतिन ने एक प्रेम कविता सुनाई, जिस पर एक ने कहा, “वाह वाह! क्नूट हैम्सन (मशहूर कवि) इस कविता के सामने कुछ नहीं”

दूसरे चापलूस ने कहा, “अरे! रविंद्रनाथ टैगोर!”

रासपूतिन भले ही अपनी लंबी दाढ़ी के कारण टैगोर की उपमा पा गए हों, किंतु चरित्र में तो दूर-दूर तक कोई साम्य नहीं।

इससे अधिक बदनाम मॉस्को की वह पार्टी रही, जिसमें रासपूतिन ने शराब के नशे में महिलाओं से ज़बर्दस्ती करते हुए जोर-जोर से कहा, “ज़ारीना मुझसे प्रेम करती है। तुम भी करो!”

फिर क्या था! खबर आग की तरह फैल गयी, रासपूतिन-ज़ारीना के अश्लील पोस्टर जगह-जगह लग गए। इस आग में घी डाल दिया, रासपूतिन के एक पुराने साथी रहे इलियादोर ने, जो उनके कट्टर-विरोधी बन गए थे। उन्होंने इससे पहले रासपूतिन की वे चिट्ठियाँ लीक की थी, जो ज़ारीना ने लिखी थी। उन्होंने ही रासपूतिन पर जानलेवा हमला का षडयंत्र भी रचा था। अब इलियादोर ने रासपूतिन पर किताब ही लिख दी! 

इलियादोर ने उसमें लिखा- ‘ज़ारीना और रासपूतिन के अंतरंग संबंध लंबे समय से हैं। युवराज अलेक्सी रासपूतिन के पुत्र हैं। यहाँ तक कि रासपूतिन बड़ी राजकुमारी के साथ भी सो चुके हैं’

ताज्जुब यह है कि भिन्न-भिन्न स्रोतों से गुजर कर भी ऐसे कोई तथ्य नहीं मिलते कि यह लेनिन या उनके बोल्शेविक मित्रों की साजिश हो। लेनिन तो देश में ही नहीं थे। न ही किसी समाजवादी नेता की, क्योंकि अधिकांश साइबेरिया भेज दिए गए थे। ये सभी खबरें और अफ़वाह इसके ठीक उलट कुलीन वर्ग के शाही लोग, ड्यूमा (संसद) के सदस्य और कुछ कट्टर दक्षिणपंथी गुट फैला रहे थे। उनकी मंशा थी कि ज़ार निकोलस को हटवा कर उनके चचेरे भाई निकोलासा को गद्दी पर बिठा दिया जाए।

1915 के अंत तक बीस लाख रूसी सैनिक मारे जा चुके थे। ऑस्ट्रिया और तुर्की में छिट-पुट जीत के अतिरिक्त रूस बुरी तरह हार ही रहा था। जर्मनी ने रूस साम्राज्य के महत्वपूर्ण अंग पोलैंड पर कब्जा कर लिया था। रूस बाहर और अंदर, दोनों तरफ से विस्फोटित होने वाला था। तीन सौ साल का रोमानोव शासन अब खत्म होने वाला था। 

रूस के पूर्व गृहमंत्री ख्वोस्तोव ने अपने कमरे में एक मदिरा की बोतल खोली, उसमें एक रसायन डाला, और एक कटोरी में रख कर अपनी बिल्ली को पिलाया। बिल्ली वहीं मर गयी। 

उन्होंने अपने साथ बैठे पूर्व मंत्रियों की तरफ देख कहा, “रासपूतिन! तू अब खत्म!”
(क्रमशः)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - तीन (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/3.html
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