Thursday, 30 March 2017

असग़र वजाहत की एक कहानी - लकड़ी के अब्दुल शकूर की हंसी / विजय शंकर सिंह

(प्रस्तावना - हम तुम्हें मार रहे हैं लेकिन तुम हंस रहे हो।  देखो कितनी सच्ची, प्यारी और अनोखी हंसी है। ऐसी हंसी तो शायद तुम पहले कभी नहीं हंसे। या हंसे  होगे पर भूल गए। ये यह अच्छा है  कि तुम्हारी याददाश्त कमजोर है तुम  उन सबको भूल जाते हो जिन्होंने तुम्हें  हंसाया था ।
तुम दिल खोल कर हंस रहे हो।  अब देखो तुम बदल रहे हो। तुम्हारे आंसू नहीं हैं ये तो ओस की बूंदें हैं जो आकाश से तुम्हारे ऊपर टपक रही हैं। देखो तुम्हारा अल्लाह भी तुमसे ख़ुश है क्योंकि तुम  खुश हो। देखो तुम ज़िंदा हो। देखो तुम बोल सकते हो।आगे बढ़ रहे हो।तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां तुम पर गर्व करेंगीं कि तुम कभी नहीं रोये। सिर्फ हंसते रहे, सिर्फ हंसते हो। हंसते रहो, हमारी यही कामना है।)

1.
अब्दुल शकूर वल्द अब्दुल वहीद वल्द करीम वल्द रहीम वल्द रमना वल्द चमना के अंदर एक बड़ी खूबी पैदा हो गई है। वैसे तो अब्दुल शकूर बढ़ई का काम करता है। उसकी सात पुश्तों से यही काम होता आया है।

आजकल अब्दुल शकूर बहुत खुश है। क्योंकि  उसके अंदर एक  खास ख़ूबी पैदा हो गई है। जो और किसी में नहीं है। मतलब यह कि अब्दुल शकूर जब पीटा जाता है तब वह हंसता है। खुश होता है। इस बात पर उसके घर वाले भी हसंते हैं ।तालियां बजाते हैं और पीटने वाला तो फूला  नहीं समता।

2.

-अब्दुल शकूर तुम्हें मार खाने में मज़ा आता है ?
- जी हां मुझे मार खाने में मज़ा आता है
- कितना मजा आता है
- यह तो नहीं बता सकता है। लेकिन समझ लीजिए बेहिसाब मज़ा आता है
-  कोई भी मारता है तो तुम्हें मज़ा आता है?
-  नहीं
-  फिर कौन मारता है जब तुम्हें मज़ा जाता है?
-  जब आप मारते हैं तो मुझे मज़ा आता है

3
- अब्दुल शकूर मैं मीडिया के सामने तुमसे एक सवाल पूछ रहा हूं
- जी पूछिए
- अब्दुल शकूर मैं जब तुम्हें मारता हूं तो तुम्हें चोट बिल्कुल नहीं लगती?
- नहीं मेरे को नहीं लगती
- तुम्हें बिल्कुल दर्द नहीं होता?
-  नहीं मुझे कोई दर्द नहीं आता
-  तुम्हारी तो खाल तक उधड़ जाती है तुम्हें बिल्कुल तकलीफ नहीं होती?
- जी नहीं मुझे बिल्कुल तकलीफ नहीं होती
-  क्यों अब्दुल शकूर?
-  इसलिए कि आप मुझे लकड़ी का जो समझते हैं

4
-अब्दुल शकूर मैं तुम्हें क्यों मरता हूं?
- इसलिए कि मैं देश से प्रेम नहीं करता
- यह तुम्हें कैसे पता चला कि तुम देश से प्रेम नहीं करते
- सर यह तो मुझे पता ही नहीं चलता है अगर.....
- अगर क्या?  बताओ बताओ ?
- अगर.....
- फिर तुम रुक गए...बताओ?
- अगर आपने न बताया होता तो....

5
- मेरा एक बहुत बड़ा दुश्मन है। उसके पास बहुत ताकत है। वह मुझे बर्बाद कर देना चाहता है। मैं उसका सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं ।वह कभी छुपा हुआ वार करता है कभी सामने से हमला करता है। तुम जानते हो अब्दुल शकूर  वह कौन है ?
-हाँ मैं जानता हूं कौन है
-  बताओ वह कौन है?
-  मैं हूं मैं....

6

- अब्दुल शकूर क्या तुम सपने देखते हो?
- हां जी मैं सपने देखता हूं
-क्या सपना देखते हो?
- मैं सपना देखता हूं कि एक हरी घास का मैदान है और उस मैदान में एक घोड़ा घास चर रहा है
- वह घोड़ा कौन है
- वह  मैं हूं
-  फिर  क्या होता है ?
- हरी घास चर ही रहा हूं तभी मेरे मुंह में लगाम डाल दी जाती है और मैं घास भी नहीं चर पाता
- तब?
- तब मेरी पीठ पर कोई  बैठ जाता है
- तुम्हारी पीठ पर कौन बैठ जाता है?
-  मेरी पीठ पर आप ही बैठ जाते हैं और मुझे कोड़ा मारते हैं। मैं तेजी से भागता हूं।
- फिर?
- सामने से कोइ चला आ रहा है
- कौन चला आ रहा है?
- मैं ही चला आ रहा हूँ
- फिर ?
- और मैं अपने को रौंदता हुआ निकल जाता हूं

7

- तुम पढ़ क्यों नहीं पाए अब्दुल शकूर तमाम स्कूल कॉलेज खुले हुए हैं?
- हां गलती मेरी ही है
- तुम अपना इलाज क्यों नहीं करा पाए अब्दुल शकूर तमाम अस्पताल खुले हुए हैं?
- हां गलती मेरी ही है
-  तुम नौकरी क्यों नहीं पा पाये अब्दुल शकूर तमाम दफ्तर खुले हुए हैं ?
- हां गलती मेरी है
-  तुम कितनी गलतियां करोगे अब्दुल शकूर?
-  लकड़ी का आदमी ग़लती नही करेगा तो क्या करेगा साहब....

8

- अब्दुल शकूर तुम्हारे घर की दीवार गिर गई
- कोई बात नहीं गिर जाने दो
- अब्दुल शकूर तुम्हारे घर की छत गिर गई
-  गिर जाने दो कोई बात नहीं
-  अब्दुल शकूर तुम्हारे बीवी-बच्चे नीचे दब गये है
-  दब जाने दो कोई बात नहीं
-  तुम्हारी दुकान में आग लग गई है। तुम्हारे सारे औज़ार जल गए।  तुम्हारे पास खाने को कुछ नहीं है
- कुछ भी हो जाये, हो जाए
- क्यों अब्दुल शकूर?
- अच्छे दिन आएंगे
- ये तुमसे किसने कहा
- मुझे यकीन है
- कैसे
- आपने ही बताया है..

9

- अब्दुल शकूर तुमने खाना खाया?
- खा लिया
- लेकिन तुम्हारे घर में तो कुछ था नहीं
- तुमने पानी पिया?
- जी पी लिया
-  लेकिन तुम्हारे घर में पानी तो था नहीं।
- पर पी लिया
-  तुमने कपड़े पहने ?
- जी पहने
- लेकिन तुम तो नंगे हो।
- तुमने इलाज कराया?
- करा लिया
-  लेकिन तुम तो बीमार दिखाई दे रहे होअब्दुल शकूर
- आप भी कमाल करते हैं.... मैं बहुत खुश हूँ... लकड़ी का आदमी हूँ न....

10

(अब्दुल शकूर का जैसा अंत हुआ वैसा काश हम सब का हो।आमीन )

अब्दुल शकूर मस्जिद में नमाज पढ़ने गया। वह नमाज पढ़ने खड़ा होने ही वाला था कि मस्जिद की एक भारी मीनार टूट कर उसके ऊपर गिरी और अब्दुल शकूर उसके  नीचे कुचल कर मर गया।
मरने के बाद उसका पोस्टमार्टम किया गया है। रिपोर्ट यह आई कि मरने से पहले वह हंस रहा था।

No comments:

Post a Comment