यह एक किस्सा है । अवकाश प्राप्ति के बाद बहुत से किस्से उछल उछल कर वक़्त ए ज़रूरत याद आते रहते हैं , तो यह भी किस्सा उसी तरह हैं। इस किस्से को मैंने गढा नहीं है, बल्कि किसी से सुना है । जिस से सुना है वह अब दिवंगत है । पर वह भारतीय राजनीति का एक कद्दावर व्यक्तित्व था । तो अब किस्सा सुनिये ।
1977 के चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी सत्तारूढ़ हुयी । तब की जनता पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी , भारतीय जन संघ, स्वतंत्र पार्टी और कांग्रेस ( संगठन ) से मिल कर बनी थी । जेपी आंदोलन की उपज थी यह पार्टी । केंद्र में शुचिता और लोकतंत्र बचाने की शपथ, जेपी और आचार्य कृपलानी के समक्ष राज घाट स्थित गांधी समाधि पर लेकर , केंद्र में वयोवृद्ध मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बन चुके थे और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कौन होगा इस पर मंथन जारी था । लखनऊ में उत्तर प्रदेश विधान मंडल दल की बैठक हो रही थी । बैठक में चौधरी चरण सिंह और राजनारायण पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित थे । देर तक बहस चलती रही पर कुछ तय नहीं हो पा रहा था । जब नाम किसी पूर्व जनसंघी का चलता था तो समाजवादी विरोध कर देते थे और जब किसी ज्ञात समाजवादी का चलता था तो जनसंघी लोग विरोध कर देते थे । चौधरी साहब इस बहसा बहसी से ऊब गए थे । दिन भी गर्मियों के थे । वे विधान सभा भवन जहां यह मीटिंग चल रही थी से ऊब कर बाहर आ गए । वे इस पहेली को सुलझाने में लगे थे कि कैसे किसी एक सर्वसम्मत व्यक्ति की खोज की जाय । चौधरी साहब टहलते हुए बिधान सभा के लॉन में आ गए और चहल कदमी करने लगे । लॉन में कुछ छिटपुट लोग बैठे थे । तब सुरक्षा का उतना तामझाम और ब्रेकिंग न्यूज़ की बीमारी नहीं थी । चैन था जीवन में । कोई व्याकुल भारत नहीं होता था । अचानक एक व्यक्ति चौधरी साहब के सामने से गुज़रा और इस से चौधरी साहब का ध्यान भंग हुआ । गुज़रने वाले व्यक्ति ने झुक कर चौधरी साहब को प्रणाम किया । तब उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा ,
" क्या करते हो । "
" जी सांसद हूँ । "
" किस पार्टी से जीते हो ? "
" जनता पार्टी से "
" कितना पढ़े हो ? "
" एमए और वकालत पास हूँ ।"
" कुछ करते हो ? "
" जी मैं वकील हूँ । "
चौधरी साहब ने फिर पूछा
" यहां बाहर क्या कर रहे हो ? "
" थोडा काम था तो थोड़ी देर के लिए बाहर आ गया हूँ । अब जा रहा हूँ । "
यह कह कर वह सज्जन पुनः झुके और चौधरी साहब को प्रणाम किया और विधान सभा भवन के अंदर जाने को तत्पर हुए । तभी चौधरी साहब ने उनसे रुकने और अपने पीछे आने का संकेत किया और खुद ही सभा भवन के भीतर चले गए ।
" क्या करते हो । "
" जी सांसद हूँ । "
" किस पार्टी से जीते हो ? "
" जनता पार्टी से "
" कितना पढ़े हो ? "
" एमए और वकालत पास हूँ ।"
" कुछ करते हो ? "
" जी मैं वकील हूँ । "
चौधरी साहब ने फिर पूछा
" यहां बाहर क्या कर रहे हो ? "
" थोडा काम था तो थोड़ी देर के लिए बाहर आ गया हूँ । अब जा रहा हूँ । "
यह कह कर वह सज्जन पुनः झुके और चौधरी साहब को प्रणाम किया और विधान सभा भवन के अंदर जाने को तत्पर हुए । तभी चौधरी साहब ने उनसे रुकने और अपने पीछे आने का संकेत किया और खुद ही सभा भवन के भीतर चले गए ।
अंदर बहस जारी थी । राजनारायण जी किसी को डांट रहे थे । थोडा माहौल अनिश्चित सा था । तभी हॉल में आगे आगे चौधरी साहब और पीछे पीछे वे सज्जन आये और चौधरी साहब ने उन सज्जन को अपने बगल में खड़े होने का इशारा किया और सबको शांत रहने के लिए कहा । फिर चौधरी साहब ने , कहा,
" मैंने मुख्य मंत्री की तलाश कर ली है । जिसे ढूंढा है उसके नाम पर कोई विवाद नहीं होगा । वह पढ़ा लिखा है । मेरी तरह वह भी वकील है । "
फिर उन्होंने अपने साथ खड़े सज्जन की ओर इशारा किया और उनका परिचय दिया ,
" ये राम नरेश यादव हैं । एमए एलएलबी हैं । पेशे से वकील हैं । पिछड़ी जाति के हैं और यूपी के पिछड़े इलाके आजमगढ़ से लोक सभा में जीते हैं । इन्हें कम ही लोग जानते हैं । अतः विवाद की कोई गुंजाइश ही नहीं हैं । यही अब मुख्य मंत्री होंगे । "
हॉल में सन्नाटा छा गया । इस मौन को ही सहमति मानते हुए राजनारायण जी ने राम नरेश यादव के मुख्यमंत्री पद के लिए घोषणा कर दी । इस प्रकार वह प्रदेश के मुख्य मंत्री बन गए और ढाई साल इस पद पर रहे ।
" मैंने मुख्य मंत्री की तलाश कर ली है । जिसे ढूंढा है उसके नाम पर कोई विवाद नहीं होगा । वह पढ़ा लिखा है । मेरी तरह वह भी वकील है । "
फिर उन्होंने अपने साथ खड़े सज्जन की ओर इशारा किया और उनका परिचय दिया ,
" ये राम नरेश यादव हैं । एमए एलएलबी हैं । पेशे से वकील हैं । पिछड़ी जाति के हैं और यूपी के पिछड़े इलाके आजमगढ़ से लोक सभा में जीते हैं । इन्हें कम ही लोग जानते हैं । अतः विवाद की कोई गुंजाइश ही नहीं हैं । यही अब मुख्य मंत्री होंगे । "
हॉल में सन्नाटा छा गया । इस मौन को ही सहमति मानते हुए राजनारायण जी ने राम नरेश यादव के मुख्यमंत्री पद के लिए घोषणा कर दी । इस प्रकार वह प्रदेश के मुख्य मंत्री बन गए और ढाई साल इस पद पर रहे ।
यह कथा गल्प भी हो सकती है और इसका कुछ अंश सत्य भी हो सकता है । इस कथा को जैसा मैंने सुना वैसा ही यहाँ बयान कर दिया । अब जब हम सब तमाशा ए तलाश ए मुख्यमंत्री देखने में मशगूल हैं तो सोचा यह किस्सा भी आप को सुना दूँ ।
( विजय शंकर सिंह )
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