Wednesday, 29 March 2017

पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की एक कविता - सबसे खतरनाक / विजय शंकर सिंह

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना - बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना - बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना -बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना - बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्‍याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता

सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
आपके कानो तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है

सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमे सिर्फ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते है

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
( अवतार सिंह पाश )

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