Saturday 31 December 2016

Ghalib.- Asadullaa khan tamaam huaa / असदउल्ला खां तमाम हुआ / विजय शंकर सिंह


                                                                    

 


ग़ालिब - 20.

'
असदुल्ला खाँ ' तमाम हुआ, 
ऐ दरेगा, वो रिन्द ए शाहिद'बाज़ !! 

असदुल्ला खाँ - ग़ालिब का असली नाम, 
शाहिद'बाज़ - सुन्दर स्त्रियों से प्रेम करने वाला. 

'Asadullaa khan ' tamaam huaa, 
Ai daregaa, wo, rind e shahid'baaz !! 
-Ghalib. 

असदुल्ला खाँ मर गया. इस मृत्यु पर बहुत अफसोस है. वह, सौंदर्य का आसक्त, सुन्दर स्त्रियों का शौकीन, और मद्यप था. 

ग़ालिब ने अपने मृत्यु की घोषणा इस प्रकार की. ग़ालिब खुद को मद्यपी और शराबी घोषित करते हुए सुन्दर स्त्रियों का प्रेमी भी कहते है. ग़ालिब का यह कथन उनके निंदकों पर व्यंग्य भी है. वह अपने निंदकों को यह कहते हैं कि जब उनकी मृत्यु होगी तो उनके निंदक इसी प्रकार की शब्दावली उनके बारे में कहेंगे. 

ग़ालिब शराब पीते थे और खूब पीते थे. एक बार उन्हें पेंशन मिली थी वे पूरी पेंशन की शराब खरीद लाये और जब उनकी इस हरकत पर उनकी पत्नी ने ऐतराज़ जताया और कहा कि " तुमने सारे पैसों की शराब खरीद ली, खाओगे क्या ? उन्होंने बड़े इतमीनान से कहा, कि खिलाने का वादा तो अल्लाह ने कर रखा है. उसकी मुझे फिक्र नहीं है. लेकिन पीने का उसका कोई वादा नहीं सो पीने का इंतज़ाम मैं कर आया हूँ ! " अब इस पर क्या कोई कह सकता है. 

उर्दू शायरी में साक़ी , मयखाना , रिन्द , और प्याला , कहने का अर्थ यह कि सारे प्रतीक मदिरा के इर्द गिर्द ही हैं। जब कि इस्लाम में शराब पीना हराम है। सभी शायरों ने इन्ही प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही है। इसी भाव पर आधारित मीर का यह शेर पढ़ें ,

लब ए मय गूँ पर जान देते हैं ,
हमें शौक़ इ शराब ने मारा !!
-
मीर 

माधुरी तर होंठों पर हम अपनी न्योछावर कर देते हैं , इस प्रकार माधुरी अर्थात शराब के शौक़ ने हमें समाप्त कर दिया 

ये दो उदाहरण देखें। रियाज़ खैराबादी का यह शेर पढ़ें। 

मर गए फिर भी त'अल्लुक़ है मयखाने से ,
मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने में !!
-
रियाज़ खैराबादी ,

यह जनाब भी अपने मरने की चर्चा शराब के माध्यम से करते हैं। '' हम मर गए हैं फिर भी मधुशाला से सम्बन्ध बना हुआ है। अब भी मेरे हिस्से की शराब जाती है 

अख्तर मीरासी का यह शेर भी पढ़ें।

पिला दे जितनी चाहे , अब तो मेहमाँ है कोई दम के ,
जरस का शोर गूंजा , कारवाँ तैयार है साक़ी !!
-
अख्तर मीरासी 

अंतिम यात्रा की तैयारी है। कुछ साँसे तेज़ है। लोग ले चलने की तैयारी में जुटे हैं। बस अब कुछ घूँट की उम्मीद है साक़ी से। साक़ी यहां ईश्वर का और मदिरा उसकी कृपा का प्रतीक है। 
( विजय शंकर सिंह )

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