Sunday, 25 December 2016

एक पूर्व आईएएस अधिकारी का नोटबन्दी के सन्दर्भ में पूर्वांचल से जुड़ा एक अनुभव / विजय शंकर सिंह

यह आलेख पूर्व आईएएस अधिकारी और मेरे सीनियर सूर्य प्रताप सिंह का है । यह उनका प्रथम दृष्टया भोगा हुआ अनुभव है जो मैं मित्र जसवंत सिंह सर जो स्वयं एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं , के टाइमलाइन से उठा रहा हूँ । एसपी सिंह सर पूर्वांचल के कुछ इलाको के दौरे पर थे और उन्होंने पूर्वाचल के ग्रामीण इलाक़ों का नोटबन्दी के बाद जो हाल देखा उसे उन्होंने यहां बयान कर दिया है । यह उनका अनुभव है और लम्बे समय तक प्रशासनिक सेवा में रहने के कारण उनकी दृष्टि हो सकता है वह देख पा रही हो जो किसी अन्य की नही देख पाये । यह तो, अनुभव अनुभव की बात हैं। पत्रकार, पुलिस अफसर और प्रशासनिक अफसर तथा अन्य जो किसी भी सेवा में नहीं रहे हैं की दृष्टि में अंतर हो सकता है । यह उनका अनुभव है । अगर किसी का विपरीत अनुभव हो तो वह अपना भी साझा कर सकता है । लोग एक भ्रम के शिकार हैं । उनका भ्रम यह है कि आरबीआई लगातार नोट छाप रहा है और महीने दो महीने में जब सब को मुद्रा मिलने लगेगी तो , चीज़ें फिर जस की तस हो जाएंगी । पर ऐसी बात नहीं है । मुद्रा संकुचन जिसे डिफ्लेशन कहते हैं अगर इस दिशा में अर्थ व्यवस्था चल गयी तो इस से सबसे बड़ा खतरा आर्थिक मंदी का हो सकता है । जब आर्थिक मंदी से कल कारखाने कम उत्पादन करने लगेगें तो उनके यहां उन मज़दूरों की छंटनी होने लगेगी जो दिहाड़ी पैसे ले कर काम कर रहे हैं । भारत में असंगठित क्षेत्र का आधार बहुत बड़ा है और अधिकतर वह क्षेत्र उचित प्रतिनिधित्व के अभाव और संगठित न होने के कारण उसकी आवाज़ भी बहुधा अनसुनी रहती है, अतः उसे भारी संख्या में बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है । यह भी एक विडंबना ही होगी कि जिन गरीबों को लाभ पहुंचाने के नाम पर यह साहसिक कदम उठाया गया है , वह उन्ही गरीबों का ही सबसे अधिक हानि करेगी । कृषि क्षेत्र देश का सर्वाधिक प्रसारित और बड़ा असंगठित क्षेत्र है । आगे क्या होता है, यह अभी नहीं कहा जा सकता है । इसका असल असर दो महीने में दिखने लगेगा ।
- vss.

उत्तर प्रदेश में 'नोटबंदी' से उतरने लगा है का खुमार !
मैं आजकल पूर्वांचल के दौरे पर हूँ। नोटबंदी के सामान्य लोगों पर पड़ रहे प्रभाव पर सच लिखूँगा और सच के सिवाय और कुछ नहीं लिखूँगा।
नोटबंदी से जनता का लगभग हर वर्ग प्रभावित है।  हर व्यवसाय को घाटा है, किसानो की फ़सल की बिक्री व भुगतान में बहुत दिक़्क़त आ रही है। छोटे तबके की रोज़गारी बुरी तरह प्रभावित हुई है।  बाज़ार से ख़रीदार ग़ायब हैं। अधिकांश छोटे धंधे कैश पर आधारित रहे हैं, वह सभी प्रभावित हैं।
नोटबंदी का जो उत्साह पहले ८-१० दिन तक था वह धीरे-२ कम हो रहा है। अमीरों के पास पकड़े जा रहे करोड़ों के नए नोटों से लाइन में खड़े लोग ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चूँकि नोटबंदी को राष्ट्र भक्ति से जोड़ दिया गया है और ग़रीबों को भविष्य के बड़े-२ सपने दिखाए गए हैं , से तदर्थ जोश के बशिभूत परेशान होने के बावजूद भी कुछ लोग अपनी परेशानी छुपा कर  बाहरी मन से प्रशंसा करने को इस लिए बाध्य हैं कि यदि उन्होंने अपनी परेशानी का इज़हार किया तो उनकी देश भक्ति चैलेंज हो जाएगी। अंदर से सभी परेशान हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ बोल नहीं पा रहे हैं।
यदि कैश की दिक़्क़त नहीं सुधरी, तो जैसे जैसे समय गुज़रेगा लोगों की निराशा(frustration) बढ़ना लाज़मी है।
घटता व्यवसाय व बढ़ती बेरोज़गारी निराशा को और बढ़ाएगी। कोई यह कहे कि नोटबंदी का उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, यह मूर्खता होगी। देखना होगा कि यह प्रभाव अनुकूल होगा या प्रतिकूल। भाजपा की लखनऊ में हुई सांसदों की बैठक व दिल्ली में हुई संगठन की बैठक में जो चर्चा हुई है, उससे भाजपा में घबराहट है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं को छोकर नीचे कोई कुछ बोल नहीं रहा है.... सन्नाटा है।
बॉर्डर पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक को लोग भूलते जा रहे हैं। नोटबंदी से यद्यपि आतंकवाद/ नक्सल पर फ़ौरी प्रभाव पड़ा है, इसे नकारा नहीं जा सकता फिर भी सर्जिकल स्ट्राइक का ख़ुमार नोटबंदी की अफ़रातफ़री से उतरता जा रहा है। अब लाइन में खड़ा आवाम अब सर्जिकल स्ट्राइक की बात नहीं कर रहा है।
लाइन में खड़े लोगों को आभास होने लगा है कि अमीर/ पूँजीपतियों/नेताओं/नौकरशाहों द्वारा अपने ढेरों पुराने नोट खपाए जा चुके है और नए नोट भी बड़ी मात्रा में उनके पास आ चुके हैं। बड़े लोग न तो लाइन में खड़े हुए और न ही उनके पास आज कैश की क़िल्लत है।
लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि जब दुनिया में कोई भी देश पूर्ण रूप से कैशलेस नहीं है, भारत को एक झटके में ऐसा कैसे सम्भव है?
भारत की आवाम ने नोटबंदी को अमीर/पूँजीपतियों पर चोट के रूप में देखा था.... वह ख़ुश था कि पहली बार अमीर पर सरकार का डंडा चला और अमीर का पैसा ग़रीब को मिल जाएगा परंतु क्या ऐसा वास्तव में हुआ या आगे होगा ..... ग़रीब ख़ाली सपने ही देख रहा है ?
मुझे नहीं लगता कि ऐसा हुआ  या होगा ....अमीर आज भी मौज में है और कल भी था ....और ग़रीब जो पहले से ही परेशान था वह और भी दिक़्क़त में आज खड़ा है। जो पकड़ धकड हो रही है वह तो ऊँट के मुँह में जीरे के ज़्यादा नहीं है।
लोग यह भी समझ रहे हैं कि काला धन कैश में मात्र ५-६% ही है और यह सारा कैश बैंक में वापिस आ गया। जैसा प्रचार किया जा रहा था, इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ कर किसी ने न तो नदी-नाले में बहाया और न ही जलाया।
नोटबंदी इस कवायत को अर्थशास्त्र की भाषा में मुद्रा-संकुचन (economic contraction/cash withdrawal) कहना ज़्यादा उचित होगा न कि कालेधन पर वास्तविक प्रहार। ८०-९०% कालाधन रियल इस्टेट/सोने/स्टॉक/हवाला में है। देखना होगा कि नोटबंदी के सन्नाटे को चीरते हुए सरकार का अगला क़दम कब आएगा?
चारों और नोटबंदी का सन्नाटा ( frustration) पसरा है, मेरे भाई ....लोग समझ नहीं पा रहे क्या कहें और क्या करें?
सर्जिकल-स्ट्राइक का ख़ुमार धीरे-२ उतरने लगा है .... यदि चुनाव से कोई और नया चोचला/ क़दम बाहर नहीं आया तो, उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है नोटबंदी !!!
भावनाओं,अंध-भक्ति या भेड़-चाल से बाहर निकल विवेकसंगत व तार्किक सोच से समझने की ज़रूरत है, मेरे भाई।
यह कहना कि नोटबंदी पर जो टिका-टिप्पणी कर रहा है वह पाकिस्तान समर्थक़ है या देश द्रोही है .....यह लोकतंत्र में कितना उचित है? आप ही निर्णय करें। याद करें कि इंदिरा गांधी के समय में नसबंदी का विरोध करने वालों को भी यही कहा जाता था। 
इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात,
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात।
जय हिंद जय भारत !!!
साभार-सूर्य प्रताप सिंह आईएएस, उत्तर

1 comment:

  1. A personal perception .may be viewed from other angles

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