रिजुजु का जूता / विजय शंकर सिंह
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु के, 450 करोड़ के एक घोटाले में संलिप्त होने के समाचार अखबारों में छपे हैं । न्यूज़ चैनेल्स का मुझे पता नहीं कि उन्होंने कुछ दिखाया या नहीं । मैं उन्हें कम देखता हूँ तो, हो सकता हो, उन्होंने भी इसे दिखाया हो मर मैं नहीं देख पाया होऊँ । इंडियन एक्सप्रेस में जब यह खबर छपी तो, रिजुजु की प्रतिक्रिया आयी कि वे उस पत्रकार की जूतों से पिटाई करेंगे । आप को हैरानी हो तो हो, मुझे उनकी प्रतिक्रिया पर कोई भी हैरानी नहीं हुयी है । यही रिजुजु साहब है जिन्होंने कभी यह बयान दिया था, बार बार ऑथॉर्टी पर सवाल उठाना उचित नहीं है । ऑथॉर्टी शब्द जब भी सुनता हूँ तो रवीश कुमार का एक बेहद तीक्ष्ण प्राइम टाइम याद आ जाता है । जिसमे उन्होंने मूकाभिनय करने वाले दो प्रतिभाशाली अभिनेताओं से ऑथॉर्टी और ट्रॉल के माध्यम से प्रतीकों द्वारा सब कुछ कह दिया था । लेकिन अब थोडा देश बदल रहा है तो ऑथॉर्टी और ट्रॉल की भूमिका भी एक में ही समाहित होने लगी है । ऑथॉर्टी कब ट्रॉल बन जाय और ट्रॉल कब ऑथॉर्टी यह अब मुश्किल से ही कहा जा सकता है । रिजुजु का यह बयान निंदनीय है ।
सतीश वर्मा गुजरात कैडर के एक आईपीएस अधिकारी हैं और वह नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन NEEEPCO मुख्य सतर्कता अधिकारी है। पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग में सीवीओ आईपीएस अधिकारी होते हैं । यह डीआईजी से एडिशनल डीजी की रैंक तक के अफसर होते हैं , जो उस संस्थान के आकार पर निर्भर रहता है। सतीश वर्मा आईजी हैं । देश के सभी संस्थानों के सीवीओ , केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के अधीन होते हैं । सतर्कता सबंधी सभी जाँचे वे सीधे सीवीसी को भेजते हैं । सीवीसी उनके अध्ययन के बाद उन्हें जांच हेतु सीबीआई को भेजता है । सीबीआई, उस पर मुक़दमे कायम कर तफ्तीश करती है और जो भी परिणाम होता है वह अदालत को भेजा जाता है । भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कायम मुकदमों के सम्बन्ध में सीबीआई , सीवीसी के निर्देशन पर काम करती है । सतीश कुमार ने जो रिपोर्ट भेजी थी उसे जांच हेतु सीवीसी ने सीबीआई को दिया है । पर सीबीआई ने कभी स्टाफ न होने और कभी समयाभाव के कारण उसे लम्बित रखे रहा ।
सतीश कुमार ने NEEEPCO में 450 करोड़ का घोटाला पाये जाने पर अपनी रिपोर्ट दी थी । रिपोर्ट के अनुसार, अरुणांचल प्रदेश के केमेंग परियोजना जो नीपको द्वारा संचालित की जा रही है । सतीश वर्मा के अनुसार,
" Goboi Rijiju, one of the affected transporters and a ‘distant cousin’ of Mr. Rijiju, came to his office in Shillong on December 29, 2015, and offered to help him with his promotion if the officer cleared his payments that had been stuck for months."
सतीश कुमार ने इस मुलाक़ात का आडियो टेप भी अपने आरोपों के साथ CAT केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण , गौहाटी को दिया है ।
जब किरण रिजुजु से इस सम्बन्ध में हिन्दू अखबार के एक पत्रकार ने जानकारी करनी चाही तो मंत्री जी ने कहा,
“He (Goboi) is a distant cousin. Be it anyone, whether distant cousins or friends, will not tolerate if my name is used to get their works done. Anyway I will always ensure that my people don’t face hardship.”
सतीश वर्मा ने अपनी याचिका के साथ रिजुजु का वह सिफारिशी पत्र भी सलग्न किया है, जिसमे उन्होंने गोगोई को भुगतान करने के लिए लिखा था । यह पत्र 9 नवम्बर, 2015 को लिखा गया था । सतीश वर्मा ने 1100 पृष्ठों में दिए गए अपनी याचिका में सारी बातें विस्तार से कही है। यह याचिका अभी विचाराधीन है अतः इस सम्बन्ध में कुछ कहना उचित नहीं होगा ।
इस पूरे प्रकरण में तीन मुद्दे उभर कर सामने आते हैं ।
एक नीपको में 450 करोड़ के घपले में किरण रिजुजु की संलिप्तता,
दूसरे, सतीश वर्मा द्वारा यह अनियमितता उजागर करने पर उनकी प्रतारणा,
तीसरे, अखबारों में विशेष कर इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर छपने पर और पूछताछ करने पर उस पत्रकार को जूते से मारने की धमकी देना ।
पहली बात , जो संलिप्तता से सम्बंधित है, उस संबंध में 2015 के नवम्बर में रिपोर्ट दिए जाने और सीवीसी द्वारा इस मसले को सीबीआई को सौंपे जाने के बाद, भी कोई कार्यवाही अब तक न होने के बारे में केवल यह कहा जा सकता है कि, सीबीआई तोते की भूमिका से अभी उबर नहीं पा रही है । वह इस मसले को नज़र अंदाज़ कर रही हैं। घोटाले की जांच जब होगी तब होगी । फिलहाल तो वह ठन्डे बस्ते में है ।
दूसरी बात, सतीश कुमार के उत्पीड़न की है । सतीश कुमार पर आरोप है कि वह बिना सूचना दिए मुख्यालय से अनुपस्थित रहे । यह आरोप मुझे बचपन की पढ़ी हुयी , भेड़िये और मेमने की चिरंतन कथा को याद दिला देती है । सतीश कुमार ने अपने उत्पीड़न के खिलाफ CAT का दरवाज़ा खटखटाया है । CAT में क्या होता है CAT जाने । पर इतना सच है कि गोगोई ने सतीश कुमार के स्थानांतरण कराने और उनकी कुछ समस्याएं दूर करा देने का आश्वासन दिया था । यही गोगोई हैं जिनकी संलिप्तता 450 करोड़ के घोटाले में हैं । जहां स्कूटर और बाइक से पत्थर के बोल्डर ढोये गए थे । गोगोई , मंत्री जी के निकट भी हैं ।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात , मंत्री का आचरण है । घपलों की यह पहली खबर नहीं है । आज़ाद भारत के इतिहास में 1949 में हुए जीप घोटाले से ले कर अब तक के घोटाले की खबरों को अखबारों की साइट्स पर पढ़ें तो बहुत कुछ लिखा गया है । लोगों ने उनका खंडन किया, लोगों ने अदालतों में मानहानि के मुक़दमे किये, पर किसी ने भी यह शब्द और यह तेवर इस्तेमाल नहीं किये, जो इन मंत्री महोदय ने किया है । उन्हें शालीनता के साथ इन सभी आरोपों की जांच करानी चाहिए थी, और तब अखबार को जवाब देना चाहिए था । यह आरोप कोई सुनी सुनाई बात नहीं है । यह आरोप नीपको के सीवीओ की छानबीन के बाद उनकी रिपोर्ट से उजागर हुआ है । सीवीओ भी आईपीएस का एक वरिष्ठ अधिकारी है और वह अपनी रिपोर्ट के संभावित परिणाम से अपरिचित नहीं रहे होंगे । फिर इस रिपोर्ट के बाद , सतीश कुमार का उत्पीड़न भी किसी न किसी संदेह की ओर ही इशारा करता है । सरकार जुबां से भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ रही है । पर, सच तो यह है कि वह अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप के संबंध में जांच कराने को तैयार भी नहीं है ।
( विजय शंकर सिंह )
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