चीन
का एक सम्राट एक बहुत बड़ा चित्रकार भी था. चित्रकला से उसे प्रेम था और हर वर्ष वह
दूसरे चित्रकारों को चित्रकला की
प्रदर्शनी लगाने के लिए निमंत्रण भी देता
रहता था, जब वह बहुत बूढा हो गया तो एक वार्षिक उत्सव पर उसने एक घोषणा की, कि
"अब मैं बहुत बूढा हो गया हूँ, इस
जगत की सर्वश्रेष्ठ चित्रकला देखना चाहता हूँ. मैं उस चित्रकार को अपने महल में
स्थान दूंगा और जो भी वह चाहता है, दूंगा.
"
कुछ
चित्रकार जो समझते थे कि वे ऐसी चित्रकारी कर सकते हैं, महल में रुक गये. किसी ने एक माह में
ही चित्रकला समाप्त कर ली और उसे दिखाने सम्राट के पास ले आया. चित्र बहुत अच्छे
बने थे , पर सम्राट को पसन्द नहीं आये।
धीरे
धीरे तीन वर्ष बीत गये, और केवल एक चित्रकार रह गया.जो तीन वर्षों से चित्रकारी कर रहा था. वह
चित्रकला, कैनवस, चित्रपट पर नहीं कर रहा था. बल्कि जो कमरा उसे रहने के लिये दिया गया
था , उसी की दीवार पर वह चित्र बना रहा था.
उस
ने एक खूबसूरत जंगल की पेंटिंग बनायी थी --- चांदनी रात, एक छोटी नदी, और एक पतली सी पगडंडी जो पेड़ों के इर्द
गिर्द से होते हुयी जंगल में कहीं खो जाती थी.
तीन
वर्षों के बाद वह सम्राट के पास आया. और बोला,… "अब आप आ सकते हैं. जो मैं कर सकता हूँ, मैंने कर दिया है. मुझे लगता है, यह इस जगत की पूर्णतम कला कृति है. हे
राजाधिराज मुझे इस के लिये कोई पुरस्कार नहीं चाहिए. यह तीन वर्ष जो मैंने जिए हैं, अत्यंत अनमोल थे. आप का इस कृति को
देखना ही पर्याप्त है. "
सम्राट
ने कहा, " सारे चित्रकार पुरस्कार के लिए
चित्रकारी कर रहे थे. और जब तुम बिना किसी प्रयोजनवश, बिना किसी पुरस्कार के लिए कलाकृति
बनाते हो तो वह पूर्ण नहीं हो सकती है. "
उस
चित्रकार ने कहा, " मैं किसी तरह के पुरस्कार में उत्सुक
नहीं हूँ. आप ने मुझे पहले ही पुरस्कृत कर दिया है. इन तीन वर्षों में मैंने इतना
सुन्दर जीवन व्यतीत किया है कि इस से अधिक आप मुझे कुछ भी नहीं दे सकते. बस अब आप
पेंटिंग देख लें, ताकि मैं अपने घर लौट सकूं. मेरे बच्चे, मेरी पत्नी शायद मेरी प्रतीक्षा कर रहे
हों.
सम्राट
उस के साथ गया. निश्चित ही चित्रकार ने श्रेष्ठ कार्य किया था. सम्राट इतना
प्रभावित हो गया कि उस ने चित्रकार से पूछा , यह
पगडंडी अंततः कहाँ पहुँचती है ?
उस चित्रकार
ने उत्तर दिया, " मैं इस पर कभी नहीं गया हूँ. लेकिन आप
मेरे साथ चलने में उत्सुक हैं तो हम चल कर जान सकते हैं की यह पगडंडी कहाँ पहुँचती है. "
तो
चित्रकार और सम्राट दोनों पगडंडी पर चल पड़े और पेड़ों के पीछे लुप्त हो गए. तब से
उनकी कोई खबर नहीं आयी....
इस
लघु कथा ने मुझे बहुत आनंदित किया. पूर्णता से कोई लौटता नहीं है, कोई वहाँ से वापस नहीं आता. वही पूर्ण
है. वही हमें आत्मसात कर लेता है. समेट
लेता है. जैसे सागर नदियों को.
ख़ूबसूरत कहानी।
ReplyDeleteएक पुरानी कहानी याद करा दी इस कहानी ने काफी पहले पढी थी। उसमे भी एक इंसान तस्वीर में गया और फिर कभी नहीं मिला। उस कहानी के रॉयटर का दावा था की ये सच है। सच या झूट जो भी था पर कहानी शानदार थी।
poornasya poornamadaya poornamewavashishyatey///////
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