Tuesday, 26 August 2014

लव जिहाद शब्द सुर्ख़ियों में है. / विजय शंकर सिंह

लव जिहाद शब्द सुर्ख़ियों में है. एक राजनैतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बना रहा है. दूसरा दल इसकी तुलना प्रेम और मुहब्बत से कर रहा है. न तो यह प्रेम है, और न ही राजनीति. जिस तरह से इलाहाबाद उच्च न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय के कुछ फैसलों में इस पर आपत्ति की गयी कुछ को यह साम्प्रदायिक सद्भाव तोड़ने का षड्यंत्र भी लग सकता है. जाति व्यवस्था, और अस्पृश्यता हिन्दू धर्म की बुराइयां हैं. इन बुराइयों पर धर्म के भीतर भी आवाज़ खूब उठी है और समय के अनुसार यह बुराइयां कम भी हुयी है. लेकिन इनका समूल नाश नहीं हो पाया है. वैसे भी किसी बुराई का समूल नाश सम्भव भी नहीं है. हिन्दू धर्म की एक विडम्बना यह भी है कि यह एक नो एंट्री धर्म है. जो जन्मना हिन्दू है वही श्रेष्ठ हिन्दू है. जो परिवर्तित है उसे वह सम्मान नहीं है. धर्म, वर्ण और जाति की शुचिता का संस्कार इतना हावी है कि जहां अंतरजातीय विवाहों की कोई मान्यता नहीं है वहाँ अंतर्धार्मिक विवाहों की तो कल्पना भी कुछ सालों पहले तक मुश्किल थी.

जो कुछ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, केरल या देश में अन्यत्र हो रहा है, वह दर असल न लव है न जिहाद. यह एक छिछोरापन, धोखा, और एक षड्यंत्र है. इसके खिलाफ कार्यवाही ज़रूर होनी चाहिए. हिन्दू लडकी और मुस्लिम लड़के या मुस्लिम लडकी और हिन्दू लड़के के बीच प्रेम सम्बन्ध असामान्य नहीं है. लेकिन उस प्रेम में जब धर्म बदलने की बाध्यता आती है तो प्रेम का कहीं पता ही नहीं चलता और धर्म और धर्मान्धता हावी हो जाती है. इन घटनाओं से जो ज़हर फ़ैल रहा है, वह किसी दिन व्यापक विस्फोट का रूप ले सकता है.

सरकार या पुलिस इस पर कैसे रोक लगाए, इसे भी समझने की आवश्यकता है. जब परिवार अपने घर के लड़के लडकी के पनप रहे प्रेम संबधों को नहीं जान पाते हैं या जान कर भी आँख मूंदे रहते है, तक बीस सिपाहियों के भरोसे चलने वाला थाना कैसे इन सबकी जानकारी रख सकता है ? कोई पुलिस कर्मी किस अधिकार से किसी माता पिता से उसके बच्चों के इस तरह की गतिविधियों के बारे में जान सकता है ? पुलिस तक खबर तब पहुँचती है जब या तो दोनों भाग चुके होते हैं या धर्म परिवर्तन का उद्देश्य पूरा हो जाता है. जब यह चीज़ें उजागर होने लगती है तो इसी में कूद पड़ते हैं राजनीतिक दल. जिनका मकसद सिर्फ इसे एक मुद्दा बना कर इस आक्रोश और परस्थिति का दोहन करना. फिर शुरू हो जाता है पीपली लाइव, 'तीर्थ यात्रा' हिंसा, लाठी चार्ज, आदि आदि.

लेकिन यह इस समस्या का समाधान नहीं है. यह समस्या का विकृतीकरण है. परिवार और समाज के साथ साथ लड़कों और लड़कियों को भी इस कुचक्र को समझाना होगा. प्रेम शब्द ही बहुत लुभाता है. वह एक ऐसे काल्पनिक लोक का सृजन करता है, जहां सब कुछ अकल्पनीय रूप से सुन्दर लगने लगता है. यह एक स्वप्न सरीखा वातावरण है. इस कहकशां से भरे लोक से इन किशोर वय के युवाओं विशेषकर लड़कियों को समझाना पड़ेगा. उनसे, उनके माता पिता को दोस्ती करनी पड़ेगी. उन्हें डांटना और प्रताड़ित करने की बात न कह कर उनके आँखों में धुंध भरे जो ख्वाब उमड़ घुमड़ रहे हैं, उनकी हकीकत समझानी होगी. संस्कृत में एक सूक्ति है, प्राप्तेतु तो षोडशे वर्षे, पुत्रम मित्रवत आचरेत. सोलह वर्ष की उम्र होने पर पुत्र को मित्र समझना चाहिए. मित्र ही मित्र की ग्रंथि खोल और बाँध सकता है.

धर्म परिवर्तन की बात पर यह कहूँगा कि जो भी धार्मिक व्यक्ति धर्म परिवर्तन करा रहे हैं वह उस लडकी या लड़के के माता पिता को ज़रूर खबर दें. जिस से यह स्पष्ट हो सके कि यह प्रेम है या धर्म परिवर्तन का षड्यंत्र.. ऐसे धर्म परिवर्तन का कोई मकसद नहीं है. यह विशुद्ध रूप से धर्म की मार्केटिंग है और यह ज़हालत है. पुलिस को भी ऐसे तत्वों की निगरानी रखनी होगी क्यों कि इस प्रकार की एक भी घटना इलाके का अमन चैन खराब कर सकती है. हर धर्म में ज़िम्मेदार और समझदार लोग होते हैं. ऐसे उलझे मामलों में वे सहायता भी करते हैं. राजनीतिक लोग ऐसे मामलों की ताक में गिद्ध की तरह रहते ही हैं. वर मरे या कन्या उन्हें दक्षिणा से काम ! यही मनोवृत्ति उनकी होती है.

देशद्रोही ताक़तें सिर्फ सीमा पर ही सक्रिय नहीं हैं. वह हर तरह से देश के सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने में लगी रहती है. देश जब खोखला होगा तो बाहरी हमला सफल होगा. लेकिन देश ने आज़ादी के बाद हर बाहरी हमले पर गज़ब की एकजुटता का परिचय दिया है. हो सकता हो, प्रेम में षड्यंत्र भी उसी का एक उपकरण हो. ऐसे मामलों को किसी धर्म से ही जोड़ कर देखना न तो देश के लिए उचित है और न ही समाज के लिए. इस से सामाजिक समरसता के बजाय, आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी जो केवल उन्हे ही लाभ पहुंचाएगी जो देश का अहित चाहते हैं.
(विजय शंकर सिंह)

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