Thursday, 21 August 2014

एक कविता , जब जब दर्द का बादल छाया, / विजय शंकर सिंह


जब जब दर्द का बादल छाया,
जब गम का साया लहराया ,
जब आंसूं पलकों तक आया ,
जब यह तनहा दिल घबराया ,
हम ने दिल को यह समझाया ,

दिल आखिर तू क्यों रोता है ,
दुनिया में यूँ ही होता है।

यह जो गहरे सन्नाटे हैं ,
वक़्त ने सब को ही बांटे है ,
थोड़ा गम है सब का किस्सा ,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा,
आँख तेरी बेकार ही नम है ,

हर पल एक नया मौसम है ,
क्यों तू ऐसे पल खोता है ,
दिल आखिर तू क्यों रोता है।

( विजय शंकर सिंह )



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