Monday, 18 August 2014

एक नज़्म आवाज़ ए आदम / साहिर लुधियानवी

साहिर लुधियानवी , एक प्रसिद्द शायर और फ़िल्मी गीतकार रहे हैं। उनका असली नाम अब्दुल हयात रहा है। साहिर  उनका उपनाम है। उन्हें  1964 और 1977 में फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उसी साल उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया। 8 मार्च 1921 को लुधियाना में जन्मे साहिर का निधन 25 अक्टूबर 1980 को मुंबई में हुआ था। 

उनकी यह प्रसिद्ध नज़्म पढ़ें 
 (In Roman Below)


दबेगी कब तलक, आवाज़  आदम , हम भी देखेंगे ,
रुकेंगे कब तलक , जज़बात  बेरहम , हम भी देखेंगे .
चलो यूँ ही सही ये ज़ोर  परहम , हम भी देखेंगे ,

दर  ज़िन्दाँ से देखेंगे , या उरूज़  दार से देखें ,
तुम्हे रुस्वा सर  बाज़ार  आलम , हम भी देखेंगे ,
ज़रा दम लो , 'आल  शौकत   जाम हम भी देखेंगे .

 ज़ोम  कुव्वत  फौलाद  आहन देख लो तुम भी ,
 फैज़  जज़बा  ईमान  मोहकम हम भी देखेंगे .
जबीं  काज कुलही , ख़ाक पर ख़म हम भी देखेंगे .

मुक़ाफ़ात  अमल तारीख  इंसान की रवायत है .
करोगे कब तलक नावक फ़राहम हम भी देखेंगे .
कहाँ तक है तुम्हारे ज़ुल्म में दम , हम भी देखेंगे ,

ये हंगामा  विदा  शब् है ,  ज़ुल्मत के फ़रज़न्दों
सहर के दोश पर गुलनार  परचम हम भी देखेंगे ,
तुम्हें भी देखना होगा ये आलम , हम भी देखेंगे !!



आवाज़ ए आदम = इंसान की आवाज़ 
जज़्बात ए बरहम = उन्मादपूर्ण भावनाएं
जौर ए पैहन = लगातार हो रहे अत्याचार
दर ए ज़िन्दाँ = कारागार का दरवाज़ा 
उरूज़ ए दार = फांसी का तख्ता या सूली
रुसवा = अपमान
'आल ए शौक़त ए जम = जम यहां एक आतताई शासक का प्रतीक है  
ब ज़ोम ए क़ुव्वत ए फौलाद ए आहन = लोहे की ताक़त लिए
ब फैज़ ए जज़्बा ए ईमान ए मोहकम = दृढ इच्छा शक्ति और सच्ची निष्ठा के आशीर्वाद से युक्त
जबीं ए कज कुलाही = शाहों के ललाट 
मुक़ाफ़ात ए अमल = कर्म फल 
नावक = तीर 
फ़राहम = एकत्र 

Aawaaz-e-aadam
-- Sahir Ludhiyanavi

Dabegee kab talak aawaaz-e-aadam, ham bhi dekhenge
rukenge kab talak jazbaat-e-barham, ham bhi dekheiNge
Chalo yuuN hi sahii ye jaur-e-paiham, ham bhi dekhenge


Dar-e-zindaaN se dekhen yaa urooj-e-daar se dekhen,
Tumhen ruswaa sar-e-baazaar-e-aalam ham bhi dekheinge
zaraa dam lo ma'aal-e-shaukat-e-jam ham bhi dekhenge

Ba-zom-e-quwwat-e-faulaad-o-aahan dekh lo tum bhii
ba-faiz-e-jazbaa-e-iimaan-e-mohkam ham bhi dekhenge
Jabeen-e-kaaj-kulaahii Khaak par Kham, ham bhi dekhenge


Mukaafaat-e-amal taareekh-e-insaan kee rawaayat hai
karoge kab talak naawak faraaham ham bhi dekheinge
kahaaN tak hai tumhaare zulm meiN dam ham bhi dekheinge

Ye hangaam-e-widaa-e-shab hai aie zulmat ke farzando
sahar ke dosh par gulnaar parcham ham bhi dekhenge
tumheiN bhi dekhnaa hogaa ye aalam ham bhi dekheinge




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