Sunday, 3 August 2014

इस्राइल फिलिस्तीन संघर्ष , एक ऐतिहासिक विवेचन.... 4 ...... विजय शंकर सिंह

इस्राइल फिलिस्तीनी संघर्ष का एक संक्षिप्त ऐतिहासिक विवेचन देने का प्रयास कर रहा हूँ. उसी क्रम में यह चौथी कड़ी है. अगर आप की रूचि इस क्षेत्र के इतिहास पर है तो आप इस लेख माला को ज़रूर पसंद करेंगे

फिलिस्तीन.. 
इस शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुयी और कैसे यह किसी क्षेत्र विशेष के लिए प्रयुक्त होने लगा इस पर लम्बे समय से वाद विवाद जारी है. विश्वास किया जाता है कि यह शब्द हिब्रू भाषा के शब्द peleshet से आया होगा. इस शब्द का अर्थ लुढ़कना यानी जहा जगह मिले वहाँ भटकना होता है. ज्यादा स्पष्ट कहें तो खानाबदोश इसे कह सकते हैं. उत्तर पूर्वी मिश्र के निवासियों के लिए भी यह शब्द प्रयुक्त होता था जो दर ब दर भटकते रहते थे. इस कारण उस इलाके का नाम फिलिस्तीन कहा गया. फिलिस्तीनी मूलतः न्रिवैगानिक दृष्टिकोण से ग्रीकों के ज्यादा निकट ठहरते हैं, अरबों के नहीं. जो आज का इस्राइल और गाजा का क्षेत्र है उसे अरब ने इस इलाके को 12 वीं सदी ईसापूर्व जीत कर अपना कब्ज़ा जमाया था.
पांचवी सदी ईसा पूर्व ग्रीक साहित्य में फिलिस्तीन शब्द का प्रयोग मिलता है. महान इतिहासकार हेरोडोटस ने दूसरी सदी के रोमन इतिहास का ज़िक्र करते हुए यह उल्लेख किया है कि उस समय रोमनों ने जेरूसलम में शिमोन बार कोखबा द्वारा किये गए विद्रोह को कुचल दिया था. और जेरूसलम और वह क्षेत्र जो जूडिया कहलाता था उस पर अपना अधिकार कर लिया . उन्होंने इसे नाम दिया पैलेस्टाइन जिसे हम फिलीस्तीन के रूप में जानते हैं. ऐसा रोमनों ने इस लिए किया कि वे इस भूमि से इस्राइल की पहचान मिटाना चाहते थे. यह विवाद ईसाई बनाम यहूदी की थी. रोमन साम्राज्य ईसाई था. और यह स्थान जूडिया, यहूदियों का था. जो बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार मूसा को उनके कबीले को रहने के लिए दिया गया था.

ओटोमन साम्राज्य जिसका काल 1517 से 1917 तक रहा है, के समय फिलिस्तीनसीरिया के दक्षिणी भाग को कहा जाता था. प्रथम विश्व युद्ध के 1918 में समाप्त होने के बाद जो इलाका ब्रिटिश मैंडेट था वही आज का इस्राइल और जॉर्डन कहलाया. 1948 में जब इस्राइल को एक स्वतंत्र राष्ट्र यू एन ओ द्वारा बनाया गया तो, अन्तराष्ट्रीय प्रेस ने इसे यहूदियों का देश प्रचारित कर दिया और पैलेस्टीन जिसमें अरब रहते थे उसे बहुत महत्व नहीं दिया. अरबी भाषा में पैलेस्टीन शब्द उच्चारण के दोष से फिलिस्तीन हो गया. इस तरह फिलिस्तीन शब्द आया. कुरआन में फिलिस्तीन शब्द का कोई उल्लेख नहीं है.

फिलिस्तीन के निवासी. 
फिलस्तीन के क्षेत्र में जिसमें अरब ईसाई, मुस्लिम, और ड्रुज़ के लोग निवास करते हैं. इस समय इनकी जन संख्या 70 लाख के आस पास होगी. यह इलाका इस्राइल, वेस्ट बैंक, और गाजा में बंटा हुआ है. 1967 के अरब इस्राईल युद्ध में इस्राइल ने और भी क्षेत्र कब्ज़े में कर लिए थे. जिसमें लगभग 15 लाख फिलिस्तीनी, इस्राइली नागरिक की हैसियत से रह रहे थे. जो पूरे इस्राइल की आबादी के 20 % थे. लगभग 21 लाख वेस्ट बैंक में जिसमें से 2 लाख जेरूसलम में हैं. 16 लाख फिलिस्तीनी गाजा पटटी क्षेत्र में निवास करते हैं. शेष बचे फिलिस्तीनी इस क्षेत्र के बाहर निवास करते हैं जो यहाँ से पलायित हो गए हैं.

सबसे अधिक फिलिस्तीनी जो फिलिस्तीन के बाहर हैं वे जॉर्डन में निवास करते हैं. उनकी संख्या लगभग 27 लाख है. इसमें से अभी भी बहुत से उन्ही शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं जो 1949 के दौरान यू एन ओ ने जॉर्डन में बनाए थे. इसके अतिरिक्त लेबनान और सीरिया में भी फिलिस्तीन आबादी है, लेकिन यहाँ भी अधिकतर शरणार्थी शिविरों में ही हैं. बहुत से फिलिस्तीनी रोज़गार के लिए अरब और खाड़ी ब्देशों में जा कर बस गए हैं और वही जीवन यापन कर रहे हैं . लेकिन किसी को भी अरब, लेबनान और सीरिया ने अपनी नागरिकता नहीं दी है. हाँ जॉर्डन ने ज़रूर कुछ को अपनी नागरिकता दी है. अरब भी यह पसंद नहीं करता कि फिलिस्तीन वहाँ आ कर रहें और बसे. उन्हें वह अपने से हेय समझता है. लेबनान में ऐसे फिलिस्तीनियों की दशा और भी खराब है. लेबनान में 1975 -1991 तक एक गृह युद्ध चला था. लेबनान के कुछ नेता इस भीषण और दीर्घ गृह युद्ध के लिए फिलिस्तीनियों को ही दोषी ठहराते हैं. वे अक्सर यह मांग यू एन ओ से करते रहते हैं कि इन्हें उनके देश के अलावा कहीं और बसाया जाय. ताकि लेबनान में स्थायी शान्ति रखी जा सके. लेबनान में ईसाई आबादी भी कम नहीं है. लेकिन वे अक्सर फिलिस्तीनियों का विशेषकर मुस्लिम फिलिस्तीनियों का विरोध इस लिए करते हैं कि उन्हें यह भय सताता है कि कहीं उनकी आबादी इन मुस्लिम फिलिस्तीनियों की आबादी के मूल लेबनानी मुद्लिमों की आबादी में मिल जाने से कहीं कम न हो जाए. सीरिया में जो फिलिस्तीनी थे उनको लेकर 2011 में ज़बरदस्त हिंसा हो चुकी है. वहाँ भी वह अवांछित ही समझे जाते हैं.

हालांकि इन देशों में जो फिलिस्तीनी समाज रह रहा है, वह अधिकतर शरणार्थी शिविरों में ही रहा है और है. पर इनमें से भी कुछ बहुत संपन्न हो गए हैं. शिक्षा का बहुत प्रसार इनमें हुआ है. प्रति व्यक्ति विश्वविद्यालय के स्नातक के अनुपात में फिलिस्तीन पूरे अरब विश्व में सबसे अधिक हैं. राजनीतिक जागरूकता भी इनमे सबसे अधिक है. लेकिन इस जागरूकता के कारण विभिन्न मत मतान्तरों में मतभेद भी हो गया है. इसी लिए अलग राज्य के स्वरुप की मांग पर ये आपस में ही एकमत नहीं हो पाते हैं. अरब देश भी इनके साथ भी पूरे मन से नहीं है. इसी युद्ध में यह प्रमाणित हो गया है कि सारे अरब देश एक मत हो कर फिलिस्तियों के साथ नहीं हैं.

इस्राइल के फिलिस्तीनी नागरिक. 
जैसा की पिछले ब्लोग्स में आ चूका है, 1948 में इस्राईल की स्थापना हुयी. उस समय जो क्षेत्र इस्राइल के पास था उसमें फिलिस्तीनियों की कुल आबादी 1,50,000 थी. इन्हें इस्राईली नागरिकता तो मिली लेकिन नागरिकों का अधिकार नहीं दिया गया. इनकी स्थिति द्वीतीय श्रेणी के नागरिकों के सामान थी. इस्राईल का कहना था कि वह मूलतः एक यहूदी राष्ट्र है. अतः वहाँ जो भी नागरिक अधिकार होंगे वे यहूदियों के ही होंगे. रहने के लिए फिलिस्तीनी यहाँ रह सकते हैं. 1966 तक ऐसे सभी फिलिस्तीनी जो इस्राईली नागरिक थे सैनिक नियंत्रण में रहते थे. उनका आवागमन, अभिव्यक्ति स्वातन्त्र्य, संगठन बनाने का अधिकार आदि सभी राज्य द्वारा नियंत्रित था. इसराइलियों का जो मज़दूर संगठन है उसका नाम है, हिस्तादृत Histadrut. लेकिन कोई अरब या फिलिस्तीनी 1965 तक इसका सदस्य नहीं बन सकता था. केवल यहूदी ही इसके सदस्य बन सकते थे. इनके कब्ज़े की 40 % ज़मीनें राज्य ने अधिग्रहीत कर उसमें जनहितकारी योजनायें चलाई. लेकिन इन योजनाओं का सारा लाभ यहूदी आबादी को ही मिला. अरबों को इन योजनायें जैसे शिक्षा, स्वास्थय, नगर प्रशासन, लोक निर्माण के कार्य, और अन्य आर्थिक विकास के कार्यों का लाभ अरबों को नहीं मिला, और अगर मिला भी तो बहुत कम.

ऐसी परिस्थितियों में अरब फिलिस्तीनियों के समक्ष अपनी संस्कृति, और राजनैतिक पहचान बचाए रखने के जद्दो जहद से जूझना पडा. इनके समक्ष दो संकट थे. एक तो ये इस्राईल के नागरिक और निवासी हो कर भी इस्राइल में असम्मानजनक स्थिति में जी रहे थे. दूसरे अरब जगत भी इन्हें इसलिए हेय की नज़र से देखता था, कि ये उनके शत्रु देश इस्राईल में रहते थे. यह स्थिति 1967 तक बनी रही. ऐसे भेदभाव की स्थिति में असंतोष और आक्रोश का उपजाना स्वाभाविक था. 30 मार्च 1976 को, सारे फिलिस्तीनियों ने जो इस्राईल के नागरिक थे ने अपनी ज़मीनों के बलात अधिग्रहण के विरोध में पूरे देश में हड़ताल कर दी. हड़ताल का दमन इस्राईली सेना ने किया. गोली चली और 6 फिलिस्तीनी मारे गए. इस दिन को पूरा फिलिस्तीनी समाज लैंड डे या भूमि दिवस के रूप में मनाता है. यह सारे फिलिस्तीनियों का राष्ट्रीय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. 
-vss.
क्रमशः
अगले ब्लॉग में अरब इस्राईल युद्ध 1967,


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