दाग़ देहलवी उर्दू के महान शायर थे. इनका भी समय ग़ालिब से पहले का
है. इनकी यह ग़ज़ल पढ़ें...
(In Roman below)
मैं होश में था तो फिर उस पे मर
गया कैसे.
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे.
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे.
उस उस के दिल में लगावत ज़रूर थी
वरना,
वह मेरा हाँथ दबा कर गुज़र गया कैसे.
वह मेरा हाँथ दबा कर गुज़र गया कैसे.
ज़रूर उस के तवज्जो की रहबरी
होगी,
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे.
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे.
जिसे भुलाए कई साल हो गए कामिल,
मैं आज उस की गली से उतर गया कैसे.
मैं आज उस की गली से उतर गया कैसे.
मैं होश में था तो उस पे मर गया
कैसे.
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे.
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे.
-दाग़ देहलवी.
Main hosh mein thaa to phir us
pe mar gayaa kaise,
ye zahar mere lahoo mein utar gayaa kaise.
ye zahar mere lahoo mein utar gayaa kaise.
Kuchh us ke dil mein lagaawat
zaroor thee varnaa,
wah meraa haanth dabaa kar guzar gayaa kaise
wah meraa haanth dabaa kar guzar gayaa kaise
zaroor us ki tawajjo ki
rah'baree hogee,
nashe mein thaa to main, apne hee ghar gayaa kaise.
nashe mein thaa to main, apne hee ghar gayaa kaise.
Jise bhulaaye kai saal ho gaye
kaamil,
main aaj us kee galee se guzar gayaa kaise.
main aaj us kee galee se guzar gayaa kaise.
Main hosh mein thaa to us pe
mar gayaa kaise,
yah zahar mere lahoo mein utar gayaa kaise !!
yah zahar mere lahoo mein utar gayaa kaise !!
-Dagh Dehalvi.
कलीम चाँदपुरी जी की गज़ल हैं ना कि दाग जी की
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