अभी कुछ दिनों पहले फेसबुक पर अजय राय के द्वारा एक ए के 47 असाल्ट राइफल खरीदे
जाने को लेकर हैरानी जताई जा रही है. यह भी किसी ने पोस्ट किया कि यह हथियार
शहाबुद्दीन जो सीवान का अपराधी और माफिया है तथा इस समय जेल में है से खरीदी थी.
अजय राय वाराणसी से इस चुनाव में कांग्रेस
के प्रत्याशी हैं. इनकी पृष्ठिभूमि क्या है, इसे वाराणसी में सभी लोग जानते हैं. पहले
यह अपराधी गुटों के आपसी लड़ाई में शामिल थे. जब राजनीति में आये तो भाजपा से विधायक रहे. वहाँ कुछ स्वार्थ
टकराया होगा तो कांग्रेस में आ गए. पिछला चुनाव कांग्रेस से ही लड़ा था. इनके खिलाफ, मुरली मनोहर जोशी और मुख्तार अंसारी थे. मुख्तार से इनकी
माफियायी प्रतिद्वंद्विता थी. जब लगा कि वह चुनाव जीत जाएगा तो इसने भाजपा का
समर्थन गुपचुप रूप से कर दिया. और मुरली मनोहर जोशी चुनाव जीत गये इस बार यह फिर चुनाव में है. इनकी हिस्ट्री शीट
भी है, और आपराधिक इतिहास भी.
अपराधी गिरोहों और माफियाओं की एक अलग मानसिकता होती है. इनके अपने अपने गुट होते हैं, अपने अधिकार क्षेत्र होते हैं, और अपने अपने स्वार्थ से ये राजनैतिक दल चुनते हैं, और अपनी अपनी बिरादरी में ये हीरो की तरह क्षवि बना के रखते हैं. चाहे, हरि शंकर तिवारी हों, वीरेंद्र शाही रहे हों, शहाबुद्दीन हों, मुख्तार अंसारी हों, ब्रिजेश सिंह हों या अजय राय. या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ड़ी पी यादव. सभी ने जिनके नाम मैने उपर गिनाये हैं अपनी सुविधानुसार राज्नीतिक निष्ठा बदलते रहे हैँ। इनके लिए दल का सिद्धांत , इतिहास या पृष्ठभूमि मायने नहीं रखती है। स्टेशन पर खड़े बे टिकट यात्री कि तरह जिस भी ट्रेंन मैं सुविधापूर्वक सीट मिल जाती है , लद लेते हैँ।
अपराधी गिरोहों और माफियाओं की एक अलग मानसिकता होती है. इनके अपने अपने गुट होते हैं, अपने अधिकार क्षेत्र होते हैं, और अपने अपने स्वार्थ से ये राजनैतिक दल चुनते हैं, और अपनी अपनी बिरादरी में ये हीरो की तरह क्षवि बना के रखते हैं. चाहे, हरि शंकर तिवारी हों, वीरेंद्र शाही रहे हों, शहाबुद्दीन हों, मुख्तार अंसारी हों, ब्रिजेश सिंह हों या अजय राय. या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ड़ी पी यादव. सभी ने जिनके नाम मैने उपर गिनाये हैं अपनी सुविधानुसार राज्नीतिक निष्ठा बदलते रहे हैँ। इनके लिए दल का सिद्धांत , इतिहास या पृष्ठभूमि मायने नहीं रखती है। स्टेशन पर खड़े बे टिकट यात्री कि तरह जिस भी ट्रेंन मैं सुविधापूर्वक सीट मिल जाती है , लद लेते हैँ।
कभी
व्यक्तिगत रूप से इनसे मिलने का मौक़ा मिले तो ज़रा परखियेगा, निजी बात चीत और आवभगत में ये आप को बेहद
शरीफ और आप की मदद को तत्पर दिखेंगे. आप इस मुगालते में रहिएगा कि यह तो कहीं से
गुंडा लगता ही नहीं. मैं यह बात अनुभव से कह रहा हूँ. जो माफिया राजनीति में आ गए
हैं वे तो मिलते ही रहते हैं. जो नहीं आ पाए हैं या आने की जुगत में हैं वे थोड़ा
हिचकिचाते हैं. आप इस पर बिलकुल न हैरान हों कि यह एक दूसरे के जानी दुश्मन है.
सबके अपने अपने क्षेत्र और स्वार्थ होते है. स्वार्थ टकराते हैं तभी दुश्मनी होती
है. और हत्याएं भी.
जातिगत समीकरणों की बात की जाय तो सभी अपनी अपनी बिरादरी में रोबिन हुड या बागी की क्षवि बना कर रखते हैं. आपस में सीधे ये, बहुत कम भिड़ते हैं, अक्सर इसे अवॉयड करते हैं. लेकिन इनके चेले और लगुवे भगुवे जो इनके पैसे पर पलते हैं और अधिकतर इन्ही के बिरादरी के होते हैं, इनके इशारे पर एक दूसरे को मारते मरते रहते है. पूर्वांचल में जब तिवारी और शाही की प्रतिद्वंद्विता चलती थी तब जातिगत आधार, पर पूरा पूर्वांचल बंट गया था. यहाँ तक कि पुलिस और प्रशासन भी. अब एक तो मारा गया, दूसरा अभी भी राजनीति में है और बूढा हो गया है. तो अब स्थिति थोड़ी ठीक है. लेकिन जातिवादी वैमनस्य का जो ज़हर पूर्वी उत्तर प्रदेश में घुल चुका है वह अभी भी विद्यमान है.
माफिया देश को बदलने या देश प्रेम के जज्बे से राजनीति में नहीं आता है. वह इसे एक एक पनाहगाह समझ कर आता है. अपराध की दुनिया की कालिख पोंछने के लिए आता है. इसके द्वारा समाज में कुछ सम्मान पाने आता है. और सब के पास एक ही एक ही रटे रटाये तर्क होते हैं, कि मुक़दमे जो हम पर लगाएं गए हैं वह राजनीतिक द्वेष से हैं. हम सब भी इनके चकाचौंध में आ जाते हैं. कुछ इनके भय से, कुछ इनकी जाति से, कुछ धर्म से, कुछ इनके ऐश्वर्य से प्रभावित हो कर इनके साथ हो लेते हैं. कुछ बड़े नेता, जो अपराधी नहीं हैं, वह भी इनके खिलाफ चाहते हुए भी बोल नहीं पाते. इन्हें पहचानिए, ये न आप की बिरादरी का, न आप के समाज का कुछ भला करने आये है. ये उन अपराधियों से अधिक खतरनाक हैं. जिनके चेहरे पर शराफत का मुखौटा नहीं है. चुनाव एक अवसर होता है ऐसे लोगों को नकारने के लिए. राजनीतिक व्यक्ति या समाज सेवा से जुडी कोई शक्शियत या जिसे आप यह समझ सकें कि वजह देश और समाज का कुछ भला कर सकता है तो उसे चुने.
माफिया देश को बदलने या देश प्रेम के जज्बे से राजनीति में नहीं आता है. वह इसे एक एक पनाहगाह समझ कर आता है. अपराध की दुनिया की कालिख पोंछने के लिए आता है. इसके द्वारा समाज में कुछ सम्मान पाने आता है. और सब के पास एक ही एक ही रटे रटाये तर्क होते हैं, कि मुक़दमे जो हम पर लगाएं गए हैं वह राजनीतिक द्वेष से हैं. हम सब भी इनके चकाचौंध में आ जाते हैं. कुछ इनके भय से, कुछ इनकी जाति से, कुछ धर्म से, कुछ इनके ऐश्वर्य से प्रभावित हो कर इनके साथ हो लेते हैं. कुछ बड़े नेता, जो अपराधी नहीं हैं, वह भी इनके खिलाफ चाहते हुए भी बोल नहीं पाते. इन्हें पहचानिए, ये न आप की बिरादरी का, न आप के समाज का कुछ भला करने आये है. ये उन अपराधियों से अधिक खतरनाक हैं. जिनके चेहरे पर शराफत का मुखौटा नहीं है. चुनाव एक अवसर होता है ऐसे लोगों को नकारने के लिए. राजनीतिक व्यक्ति या समाज सेवा से जुडी कोई शक्शियत या जिसे आप यह समझ सकें कि वजह देश और समाज का कुछ भला कर सकता है तो उसे चुने.
यह भी एक कटु सत्य है कि किसी भी दल को अपराधियों और माफियाओं से परहेज नहीं है. सबके तर्क भी एक ही हैं. कि अदालत ने इन्हें दोषी नहीं ठहराया, और अभी बड़ी अदालतों का फैसला आना बाकी है. आदि आदि . इसी कारण से चुनाव आयोग के बहुत दबाव देने के बावजूद भी, संसद ने जन प्रतिन्धित्व अधिनियम में संशोधन नहीं किया. भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिस की सक्रियता से इन तत्वों पर कुछ अंकुश लगा है. लालू यादव और रशीद मसूद के जेल जाने से कुछ तो अन्धेरा छंटा है. लेकिन शमां तो हमें आप को जलानी है.
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि राजनैतिक और समाज सेवा से जुड़े लोग स्वार्थी नहीं होते. स्वार्थी तो, सभी होंगे. स्वार्थ की चिंता और भावनाएं मानवीय प्रवित्ति है. पर इनकी आपराधिक मानसिकता तो नहीं होती. माफिया और अपराधी गिरोह के सरगना व्यक्तिगत रूप से कायर होते हैं. लेकिन वे जिनके बल पर अपना साम्राज्य फैलाते हैं, वे साहसी होते हैं. इनका तंत्र , इनका संगठन और शासन सत्ता में पैठ बनाने का हुनर बहुत सधा हुआ होता है. इसी पैठ को बनाए रखने के लिए, ये जातिवाद , धर्म वाद, और क्षेत्रवाद का ज़हर फैलाते है. और जब तक दो गिरोहों के आपराधिक स्वार्थ नहीं टकराते, ये कभी भिड़ते भी नहीं है. इनको राज्नीति में और चुनाव में जितना नकार सकते हैं, नकार दीजिये.
-vss
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