बसपा के सांसद शफिकुर्रह्मान और वन्दे मातरम
संसद के सत्रावसान के अवसर पर वन्दे मातरम के समवेत गान की परम्परा है . इस गीत को , संविधान में राष्ट्रीय गीत का स्थान प्राप्त है . पर परसों जब सत्रावसान हुआ तो बसपा के सांसद शफिकुर्रह्मान ने संसद में इस गीत के गान के समय , संसद से बहिर्गमन किया . यह बहिर्गमन उन्होंने क्यों किया , इस का तर्क वह यह देते हैं कि , उनका मजहब ख़ुदा के अलावा किसी की इबादत की इजाज़त नहीं देता . मैं उनकी इस बात से सहमत हूँ . अपने अपने धर्म पर आस्था रखना और उनपर अमल करना उचित है . पर वह एक सांसद हैं . सांसद के नाते उनका कुछ दायित्व भी है . और वह दायित्व उन्हें संविधान ने दिए हैं . सांसद की शपथ भी उन्होंने ली होगी . और वह उनका भी प्रतिनिधत्व कर रहे हैं जो उनके मजहब के नहीं हैं . उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि वह सिर्फ अपने मजहब वालों के वोट से नहीं जीते हैं .
वन्दे मातरम एक सामान्य गीत नहीं हैं . बंकिम चन्द्र चटर्जी का लिखा उपन्यास 'आनंद मठ' जिन्होंने पढ़ा है , उन्हें इस गीत का सन्दर्भ ज़रूर ज्ञात होगा . खुदी राम बोस का नाम आप नहीं भूले होंगे .अठारह साल का वह किशोर इस गीत की पंक्तियाँ दुहराते दुहराते फांसी पर झूल गया . बाद में यह गीत , भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रमुख प्रेरणा स्वर बन गया. आज़ादी के पहले कांग्रेस के अधिवेशन जब भी हुए , यह गान गाया जाता था आज़ादी की लड़ाई में मा सांसद के मजहब के लोग भी थे . उनका भी योगदान किसी से भी कम नहीं था . चाहे शहीद ए आज़म भगत सिंह का मार्ग हो , या कांग्रेस का अपना पोलिटिकल एजेंडा या सुभाष बाबू की आजाद हिन्द फौज हो , यह गीत कभी विवादित नहीं हुआ .और वह चाहे किसी भी धर्म का हो , उसने इसे गाया . यह गान हमारी अस्मिता बन गया था , हमारी आत्मा है . इसका अपमान , न केवल संसद का अपमान, और संविधान की अवहेलना है , वरन हमारे उन महान शहीदों का अपमान है जिन्होंने इस गीत से आज़ाद होने की प्रेरणा ग्रहण की .थी .
जिस संविधान सभा में यह गीत संविधान के अंतर्गत राष्ट्र गान ''जन गण मन '' के समकक्ष रखा गया था , उस संविधान सभा में , मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे विद्वान् इस्लामी धर्म शास्त्र के महान जानकार थे . उन्होंने इसे इस्लाम के विरुद्ध नहीं माना . शाफिकुर्रहमान भी इस बात को जानते हैं . पर वह इस का राजनैतिक लाभ उठाना चाहते हैं . और धर्म की भावना पर सवार हो कर लोगों की भावनाएं भड़काना सब से आसान होता है . क्यों कि लोगों की वास्तविक समस्याओं का हल ऐसे सांसदों के पास नहीं है और न ही ऐसा करने में दिलचस्पी है .बसपा अध्यक्ष को भी ऐसे सांसद से पूछताछ की जानी चाहिए .
मैं शफीकुर्रह्मान साहेब मा सांसद के इस कृत्य की निंदा करता हूँ . उन के खिलाफ लोक सभाध्यक्ष को कार्यवाही कर के संसद की सदस्यता से वंचित कर देना चाहिए . जिसे संविधान पर विश्वास नहीं है , उस को संसद का सदस्य होने और जनता का प्रतिनिधि होने का कोई अधिकार नहीं है ..
यह एक विडम्बना है की जिस वन्दे मातरम गीत के बारे में कहा जाता है कि यह इस्लाम के विपरीत है , वही वन्दे मातरम , 1906 के बंगाल प्रदेश कांग्रेस के अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रस अध्यक्ष श्री अब्दुल रशूद ने गाया था . और तभी से यह परम्परा पडी .
‘’ The song Vande Mataram became the
national song because of Muslim Abdul Rasul, who was presiding over the Bengal
Congress Provincial Conference session of 1906 in Barisal when hundreds were
struck down and grievously injured by the British police for singing Vande
Mataram. That brutality at Barisal popularized the song overnight; Surendranath
Banerjee, then the leader of The Congress joined in an unprecedented procession
of Hindus and Muslims singing national songs and crying Vande Mataram.''
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