आई पी एल का भ्रष्टाचार और सिद्धू का बयान ....
स्पॉट फिक्सिंग की वजह से आईपीएल को बंद करने की मांग के बीज बीजेपी सांसद और पूर्व क्रिकेटर ने इसका जोरदार तरीके से बचाव किया है। उन्होंने ट्वीट किया कि जब इतने घोटालों, विवादों और विश्वासघातों के बाद भी संसद पवित्र है तो आईपीएल को पाप लीग क्यों कहा जा रहा है।
एक स्थान पर बुरा हो रहा हो या हुआ हो तो , उसके आधार पर , किसी और स्थान पर कुछ बुरा हुआ है तो उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता . यह कुतर्क है . भ्रष्ट आचरण भ्रष्ट है चाहे उसे देवता ही क्यों न करें। आई पी एल में भ्रष्टाचार की ख़बरें आयीं और पुलिस ने सुबूतों के साथ उसे उजागर किया , बड़े खिलाड़ी पकडे गए , तो इसे नव जोत सिंह सिद्धू इस तर्क पर बचा रहे हैं कि , भ्रष्टाचार तो संसद में भी है . अगर आई पी एल ..पाप लीग है तो संसद पवित्र कैसे है . अक्सर नाटकीय अंदाज़ में नकली ठहाके ओढ़े टी वी पर दिखने वाला यह सांसद अक्सर ऐसे ही तर्क देता रहता है . दर असल यह क्रिकेट का अहंकार है , और अंध लोकप्रियता और बरसात की तरह बरसते काले धन का उन्माद है और कुछ नहीं . वह खेल ही क्या जिस में खेल भावना का लोप हो गया हो और केवल व्यापार बन गया है .
आई पी एल को प्रतिबंधित न करें पर उस में दोषी पाए जाने पर दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करें . किसी ज़माने में इसे जेंटल में गेम यानी भद्र लोक का खेल कहा जाता था . ब्रिटिश राज की यह विरासत दुनिया में सिर्फ गुलाम मुल्कों में खेली जाती थी .इस खेल में हमारा बड़ा नाम है और हमारे पास दुनिया के सबसे उत्तम खिलाड़ी भी हैं . इन पर हमें गर्व भी है . धीरे धीरे बाजारवाद ने खेल की लोकप्रियता को धन कमाने की मशीन बना दी . और यह सट्टेबाजी इसी मशीन का कमाल है .
नवजोत सिंह सिद्धू को दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करनी चाहिए थी . पर उनके एक बेतुके बयान ने उनके बौद्धिक स्तर का आभास करा दिया .
पुलिस को कड़ी से कड़ी कार्यवाही जो क़ानून में प्राविधित है करनी चाहिए और सरकार को आई पी एल के लिए कोई मदद नहीं देनी चाहिए . यह नए ज़मींदारों का आखेट है .
सिद्धू के इस बयान पर विवाद होने की आशंका है। सांसद होने के बावजूद उन्होंने संसद को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। बयान को सिद्धू के हित और भारतीय क्रिकेट की अंदरूनी राजनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है। वह इस लीग में कॉमेंटेटर हैं। लिहाजा, उनका लीग को समर्थन करना तो बनता है लेकिन इस पूरे विवाद में संसद पर टिप्पणी समझ से परे है।
जो बात संसद के लिए सिद्धू ने कही है , वही बात कभी किरण बेदी , अरविन्द केजरीवाल , और ओम पूरी ने भी कही थी . पूरी संसद पाजामे से बाहर हो गयी थी . सत्ता और विपक्ष का भेद मिट गया था . ओम पूरी ने तो माफी मांग ली कि उनकी जुबां फिसल गयी थी . पर किरण जी और अरविन्द डटे रहे , पता नहीं विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव का क्या हुआ . देखना है , माननीयों की बिरादरी के एक माननीय के बयान पर क्या आचरण और प्रति क्रिया संसद की होती है ....
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