Monday, 6 May 2013

देर लगा दी शायद हम ने ,





देर लगा दी शायद हम ने ,

देर लगा दी शायद हम ने ,
खुद से बाहर आने में ,
अपने को खो बैठा हूँ ,
खुद को खुद ही  पाने  में .

देखें अब इस सरकस में ,
कौन मदारी उतरेगा ,
कितने वादे लाया था ,
अब कितने वादे लाएगा .

देश कि फिक्र , चिन्ता लोगों की ,
बात करे , इनकी  , कौन यहाँ ,
अहल - - सियासत तो खोये हैं ,
बस , लूटने  और खाने में .

इतने आहत , इतने  हैरान ,
इतने बिखरे कभी थे ,
कितने खून बहाए हम ने ,
इस स्वराज को पाने में .

किस को कोसूं ? दोष किसे दूं ?
जाऊं कहाँ ? और बोलूँ क्या ?
अपनी धुन में लोग मगन है
बस भरमाने और भरम में .

एहसास खुलूस , मोहब्बत की ,
बस्ती में रह्ता  हूँ  मैं ,
उम्र गवां दी प्यारे हम ने ,
कैसे , ताने  बाने में ....
vss

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