देर लगा दी शायद हम ने ,
देर लगा दी शायद हम ने ,
खुद से बाहर आने में ,
अपने को खो बैठा हूँ ,
खुद को खुद ही पाने
में .
देखें अब इस सरकस में ,
कौन मदारी उतरेगा ,
कितने वादे लाया था ,
अब कितने वादे लाएगा .
देश कि फिक्र , चिन्ता लोगों की ,
बात करे , इनकी
, कौन यहाँ ,
अहल -ए - सियासत तो खोये हैं ,
बस , लूटने
और खाने में .
इतने आहत , इतने
हैरान ,
इतने बिखरे कभी न थे ,
कितने खून बहाए हम ने ,
इस स्वराज को पाने में .
किस को कोसूं ? दोष किसे दूं ?
जाऊं कहाँ ? और बोलूँ क्या ?
अपनी धुन में लोग मगन है
बस भरमाने और भरम में .
एहसास खुलूस , मोहब्बत की ,
बस्ती में रह्ता
हूँ
मैं ,
उम्र गवां दी प्यारे हम ने ,
कैसे ,
ताने
बाने में ....
vss
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