Monday 6 May 2013

देश में चीनी घुसपैठ...





देश में चीनी घुसपैठ.....

आज देश में चीनी घुसपैठ को लेकर लोग सरकार से नाराज हैं, लेकिन देखा जाए तो चीन अपनी कोशिश में नाकाम रहा है और अब तो उसकी खीज बढ़ती जा रही है। क्योंकि हमने पहली बार चीन को यह समझाया है कि भारत से उलझने में उसका सैनिक और आर्थिक दोनों दृष्टि से नुकसान है। इसी तरह की लम्बी घुसपैठ 1986 में अरुणाचल में भी हुई थी। 1986 में अरुणाचल प्रदेश के समदुरोंग छू घाटी में चीनी सैनिकों ने अपनी चौकी स्थापित कर ली थी जो भारतीय सेना की ओर से जवाबी चुनौती दिए जाने के बाद हटा ली गई थी। यानी चीन को पता था कि बहुत दिन तक नहीं हटे तो भारतीय सेना कौन सा कदम उठा सकती है।

प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध इसलिए हुए क्योंकि जर्मनी, जापान और इटली को फ्रांस और ब्रिटेन की तरह उपनिवेश चाहिए थे जहां वह अपने देश में बने माल को खपा सके। आर्थिक रूप से देखा जाए तो आज भारत, चीन के लिए एक ऐसा बाजार है जहां उसका अरबों डॉलर का मॉल बिकता है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि भारत में बहिष्कार हुआ तो चीनी मॉल कहा खपेगा। महात्मा गांधी को भी ब्रिटेन ने तब महत्व देना शुरू किया जब विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और मनचेस्टर की कपड़ा मिले बंद होने लगी। चीन ने जब देखा कि भारत सैनिक कार्रवाई की धमकी भी दे सकता है (जैसी धमकी उसने 1986 में दी थी) और व्यापार भी चौपट हो सकता है तो वह पीछे हटने को मजबूर हो गया।

चीन काफी समय से पूर्वी लद्दाख के इलाके में पिछले कुछ वर्षों में भारत की ओर से बनाई गई कुछ नई ढांचागत सुविधाओं और अग्रिम चौकियों को हटाने की मांग कर रहा था। गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख के न्योमा और फुकचे में एक हवाई पट्टी बनाने के बाद भारतीय वायुसेना ने दौलत बेग ओल्डी में भी एक हवाई पट्टी बनाई है, जहां से एएन.32 जैसे परिवहन विमान उतारे जा सकते हैं। इसके अलावा भारतीय सेना ने इस इलाके में कई अग्रिम सैन्य चौकियां भी बनाई हैं जो भारतीय इलाके में है लेकिन चीन को यह पसंद नहीं आ रहा था। चीन ने सोचा कि भारत में अपनी जनता के बीच बदनाम होती सरकार पर दबाव बनाने का यह अच्छा मौका है और इस बहाने वो अपनी सारी शर्तें मनवा लेगा। लेकिन शुरुआत की चार फ्लैग मीटिंगों में चीनी सैन्य अधिकारियों को यह साफ पचा चल गया कि भारत सरकार इस मामले में अपने सैन्य अधिकारियों की सलाह पर ही चलेगी तो उसके सारे मंसूबे धरे रह गए। चीन के कदम पीछे खींचने की घटना का हमारे यहां भले ही कोई चर्चा न हो लेकिन चीन में इस घटना को लेकर राजनीति जरुर होगी और इस कदम की चीन में उसी प्रकार समीक्षा होगी जैसे कारगिल जंग की पाकिस्तान में होती है कि आखिर ऐसा करके क्या मिला ?

चीन ने यह कदम भारत की चीन सीमा पर पिछले कुछ वर्षों में की गई तैयारियों को रोकने के लिए उठाया था। वियतनाम में तेल खोज के लिए जब दक्षिण चीन सागर में भारत की कंपनी ओएनजीसी ने काम शुरू किया तो चीन ने भारत को धमकाने की कोशिश की लेकिन भारत के पलटकर जवाब देने से वह तिलमिला गया था। ध्यान देने वाली बात यह है कि चीन का कुछ द्वीपों को लेकर इसी तरह का विवाद जापान के साथ भी चल रहा है। सच पूछिए तो चीन अब अपनी ही चाल में फंस गया है, अब न तो वो पीछे हट सकता है और न हीं आगे बढ़ सकता है, क्योंकि अगर पीछे हटा तो विश्व प्लेटफॉर्म पर उसकी खिल्ली उड़ेगी और अगर आगे बढ़ा, तो बहिष्कार मिलेगा।


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