Tuesday 15 February 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (18)



माना जाता है कि प्रभाकरण की मृत्यु के बाद बना कमांडर नेदियावन नॉर्वे में है। यह बात इसलिए नहीं कह रहा कि मैं इस देश में हूँ, बल्कि एक खाका बनाना चाह रहा हूँ कि लिट्टे का नेटवर्क कितना बृहत् था।

एम जी रामचंद्रन ने प्रभाकरण को खड़ा किया था, लेकिन उसका मानना था कि भारतीय एजेंसी ‘रॉ’ उसके साथ ‘डबल गेम’ खेल रही है। मेजर जनरल हरकिरत सिंह की पुस्तक में वर्णित है कि 1987 में प्रभाकरण जब दिल्ली लाया गया था, उसी वक्त गोली से उड़ाने की योजना थी।

करुणानिधि शुरू से ही लिट्टे के प्रति शंकित थे। वह एक दूसरे संगठन ‘तमिल ईलम लिबरल ऑर्गनाइज़ेशन’ (TELO) के समर्थक थे। इस TELO संगठन के पास भी आधुनिक हथियार थे, और काफ़ी विदेशी सहयोग था। यह भी मान्यता है कि ‘रॉ’ ने इसे प्रभाकरण के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सहायता दी थी। 

एमजीआर के वरदहस्त से लिट्टे ने एक-एक कर इस टेलो संगठन के कमांडरों को उड़ाना शुरू कर दिया। करुणानिधि ने 1986 में मदुरई के एक सम्मेलन में कहा, 

“यह कैसी लड़ाई है, जो दो तमिल भाईयों के बीच हो रही है? अगर ये आपस में ही लड़ते रहे तो अपने लक्ष्य तक कैसे पहुँचेंगे? मैं यह विनती करता हूँ कि लिट्टे यह लड़ाई बंद करे, और टेलो नेता सबारत्नम को बख्श दे।”

प्रभाकरण ने इस अपील को तवज्जो नहीं दी, और सबारत्नम को ढूँढ कर न सिर्फ़ मारा गया बल्कि उसके शरीर को बस-स्टैंड पर लटका कर प्रदर्शित किया गया। प्रभाकरण किसी गैंग-वार की तरह अन्य सभी तमिल गुरिल्ला गुटों को खत्म कर रहा था।

जब राजीव गांधी ने शांति-सेना भेजी, तो लिट्टे उस सेना को लक्ष्य बनाने लगी। इसके दूसरे पक्ष पर भी चर्चा होती है कि शांति सेना श्रीलंका सरकार से आदेश लेती थी, और तमिलों पर जुल्म करती थी। किसी भी तर्क से यह लिट्टे बनाम भारतीय सेना युद्ध था, और शांति की कोई भी संभावना खत्म हो गयी।

जब 1989 में वी. पी. सिंह की सरकार बनी, तो करुणानिधि सहयोगी थे। शांति सेना वापस बुला ली गयी। लिट्टे ने भारतीय सेना पर विजय के पताके फहराए।

अगले ही वर्ष भाजपा द्वारा समर्थन खींचने से वी. पी. सिंह की सरकार गिर गयी। राजीव गांधी के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। जनवरी, 1991 में उन्होंने संसद में कहा,

“करुणानिधि की पार्टी के लोग श्रीलंका में जाकर उग्रवादी संगठन लिट्टे से साँठ-गाँठ कर रहे हैं। यह देशद्रोह है।”

यह बात पूरी तरह ग़लत नहीं थी। लिट्टे को तमिलों का सहयोग सदा से था, मगर करुणानिधि तो आये ही दो वर्ष पूर्व थे। खैर, इसी आधार पर करुणानिधि सरकार बर्खास्त कर दी गयी। एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लग गया।

उसी वर्ष 21 मई, 1991 को श्रीपेरम्बूर में चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे ने राजीव गांधी को मानव-बम से उड़ा दिया। करुणानिधि और उनके दल पर पुन: इस हत्या की नैतिक ज़िम्मेदारी थोपी गयी। उस तमिलनाडु चुनाव में जयललिता जयराम विजयी हुई।

उसके बाद अगले बीस वर्ष तक दोनों ही दल बारी-बारी से जीत कर सत्ता में आते रहे। जब भी एक सत्ता में आता, तो दूसरे पर भ्रष्टाचार की तमाम धाराएँ लगाता। कभी करुणानिधि जयललिता और उनकी सहयोगी शशिकला पर अभियोग लगाते, तो कभी जयललिता बीच रात में करुणानिधि को घसीट कर ले जाने के आदेश देती। इन सबका सपाट निष्कर्ष यही था, कि दोनों ने जम कर भ्रष्टाचार किए। हालाँकि, उनके निजी या पारिवारिक भ्रष्टाचार के बावजूद तमिलनाडु अन्य कई राज्यों की अपेक्षा प्रगति-पथ पर ही रहा।

मैं अब उन योजनाओं की बात नहीं करुँगा, जो दोनों ने लाए, क्योंकि यह द्रविड़ इतिहास में ख़ास जोड़ता नहीं। दो टूक कहूँ तो 1996 में मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर दिया गया, और 2009 में श्रीलंका सेना द्वारा भीषण रक्तपात के बाद लिट्टे सरगना प्रभाकरण मारा गया। 

2016 के दिसंबर में जयललिता चल बसी। इत्तिफ़ाक़न उसी समय करुणानिधि की स्थिति गंभीर हुई, और उनके बोलने की क्षमता खत्म हो गयी। दो साल बाद वह भी चल बसे। कलइनार और अम्मा की मृत्यु के बाद तमिल राजनीति के फ़िल्मी किरदार भी खत्म हो गए। 

हालाँकि, 2018 में लगभग एक साथ दो शीर्ष तमिल अभिनेताओं ने राजनीति में आने की घोषणा की। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (17)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/17.html 
#vss

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