Monday 10 August 2020

सुशांत की आत्महत्या पर मीडिया और नेताओं की कयासबाजी / विजय शंकर सिंह

सुशांत सिंह राजपूत की दुःखद आत्महत्या के बाद जो राजनीतिक तमाशा चल रहा है वह एक मृतक के प्रति घोर असंवेदनशीलता का प्रदर्शन है और अपमानजनक भी है। अब जब इसकी जांच सरकार द्वारा सीबीआई को सौंपने के आदेश किये जा चुके हैं तो इस विंदु पर जब तक जांच हो नही जाती तब तक अनावश्यक कयासबाजी और बयान बाज़ी से नेताओ को और डिबेटबाज़ी से टीवी चैनलों को बचना चाहिए। 

यह भी खबर है कि, इस घटना की जांच, सीबीआई को सौंपने के विरोध में मुंबई पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है और यह कहा है कि बिना मुंबई पुलिस या महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध के केंद्र सरकार इस घटना की जांच कैसे सीबीआई को दे सकती है। यह एक कानूनी विंदु है और अदालत ही इसे हल करने में सक्षम है। सीबीआई को राज्यो के मुकदमे या तो राज्य सरकार की संस्तुति से जाते हैं या अदालत के आदेश से। यहां यह मुकदमा बिहार सरकार की संस्तुति पर सीबीआई को भेजा गया है। 

सीबीआई ने औपचारिक रूप से एफआईआर दर्ज कर मुकदमे की तफतीश शुरू भी कर दी है। यह मामला, मुंबई से बिहार तक इतना विवादित हो गया था, कि इसकी जांच सीबीआई से कराया जाना जरूरी भी हो गया था। अब सुशांत के पिता और उनके महिला मित्रों को लेकर जो राजनीतिक बयानबाजी और चैनलों द्वारा डिबेटबाज़ी हो रही है उससे जांच के सम्बंध में, जनता में न केवल भ्रम फैल रहा है बल्कि जांचकर्ताओं पर भी एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है। 

राजनीतिक दलों और मीडिया चैनलों को पुलिस की विवेचनाओ के संबंध में, रंनिंग कमेंट्री और स्वतः विवेचना करने के लोभ से बचना चाहिए। विवेचना में बहुत सी बातें ऐसी होती हैं, जो जब तक पुष्ट न हो जांय वह न तो सार्वजनिक की जाती हैं और कभी कभी तो, सरकार को भी नही बतायी जाती है। यदि कभी कोई महत्वपूर्ण खुलासा होता है तो, सीबीआई या पुलिस खुद ही प्रेस को बता देती है। अक्सर किसी भी महत्वपूर्ण मानले में बिना तथ्यों, सुबूतों और पूरी जांच के ही मीडिया और कुछ लोग एक समानांतर तफतीश करने लगते हैं, जो सर्वथा अनुचित है। 

यह कहना कि सुशांत एक बड़े कलाकार नहीं थे जिनकी मृत्यु को लेकर विवाद बनाया जाय और सीबीआई जांच हो। यह एक मूर्खतापूर्ण तर्क है। घटना की संदिग्धता और उसकी जटिलता के कारण कोई जांच की जाती है और जटिलता के आधार पर,  किसी बड़ी जांच एजेंसी को सौंपी भी जाती है। हर वह मृत्यु जो संदिग्ध हो और जिसमे प्रथम दृष्टया अनेक सवाल उठ रहे हों की जांच निश्चय ही होनी चाहिए। यह कोई आवश्यक नही कि सीबीआई ही सभी मामलों की जांच करे, अन्य एजंसियां भी कर सकती है। हर राज्य के पास अपने अपने क्राइम ब्रांच हैं जो जटिल और महत्वपूर्ण मामलों के लिए गठित हैं। 

पर जब घटना राजनीतिक रूप से तूल पकड़ने लगती है तो राज्य पुलिस अक्सर ऐसे मामलों की सीबीआई जांच के लिये सरकार को संस्तुति कर देती है। सुशांत मामले में यही हुआ है। अब जब सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है तो इस विषय पर हो रही,  अनावश्यक कयासबाजी बंद हो जानी चाहिये। 

( विजय शंकर सिंह )

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