Tuesday 19 May 2020

कोरोना षड्यंत्र सिद्धान्‍तकारों उर्फ कोविडियट्स के ''अनुसंधान'' के ''नये सीमांत'' - सत्य नारायण / विजय शंकर सिंह

कोरोना षड़यंत्र सिद्धान्‍तवादियों ने द्रविड़ प्राणायाम करने के सिलसिले को जारी रखते हुए एक बार फिर से नया शिगूफा छोड़ा है (https://www.facebook.com/lalkaar.mag/posts/3535813993113978)। 
इस बार उन्‍होंने यह सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश की है कि वे 'षड्यंत्रवादी' नहीं है! उन पर यह निराधार आरोप लगाया जा रहा है! कोरोना का डर वाकई एक बेबुनियाद डर है और यह सिर्फ पूंजीपतियों का षड्यंत्र है! अपने इस षडयंत्र सिद्धांत को साबित करने के लिए उन्होंने कुछ आंकड़े पेश किये हैं जिनके अनुसार पहले भी महामारियों के बारे में नील फर्गुसन समेत विश्व स्वास्थ संगठन के कई वैज्ञानिकों ने यह बताया था कि उन वायरल बीमारियों से लाखों-करोड़ों लोग मारे जायेंगे लेकिन उससे बहुत कम लोग, महज कुछ सौ लोग ही मारे गए! इसलिए यह उनका षडयंत्र था! और इसलिए कोरोना के बारे में भी ये पूंजीवादी वैज्ञानिक डर फैला रहे हैं और यह सरकारों और पूंजीपतियों के षड्यंत्र के अलावा कुछ और नहीं है! इनका यह भी कहना है की अंतर सिर्फ इतना है कि पहले की वायरल बीमारियों के बारे में वैज्ञानिकों के 'षडयंत्र' की वजह से लॉकडाउन नहीं किया गया था लेकिन इस बार कोरोना 'षडयंत्र' एक ऊँची मंज़िल पर पहुँच गया है और इस बार लॉकडाउन पूरी दुनिया में है। आइये इन तर्कों की पड़ताल करते हैं।

इन कोविडियट्स द्वारा पेश इन नये तथ्‍यों की सच्‍चाई पर हम बाद में आएंगे कि वैज्ञानिकों के स्‍वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू आदि के बारे में आकलन गलत थे या कमोबेश सही थे, लेकिन इस बात में कोई नयापन बिल्कुल नहीं है कि वैज्ञानिकों के कई अनुमान पहले भी गलत साबित हुए हैं, लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि वे षड्यंत्र के तहत ऐसे दावे कर रहे हैं? क्या इससे यह मतलब निकल सकता है कि कोरोना कोई वास्तविक खतरा है ही नहीं बल्कि पूंजीपतियों और सरकारों का षडयंत्र मात्र है? इस पर भी पर्याप्‍त बहस है कि जो आकलन पेश किये गये थे वे वाकई गलत थे या नहीं क्‍योंकि उनमें से अधिकांश उन स्थितियों में मृत्‍यु दर के आकलन थे, जिन स्थितियों में वायरल संक्रमण बिना किसी नियंत्रण के कितनी जानें ले सकता था।

वैज्ञानिकों के बीच इसे लेकर बहस जारी रह सकती है कि अतीत की किन बीमारियों के बारे में किये गये आकलन ओवरएस्‍टीमेशन थे और किन बीमारियों के बारे में किये गये आकलन अण्‍डरएस्टिमेशन थे। एक दावा यह भी है कि नील फर्गुसन ने अलग-अलग स्थितियों में (नियंत्रण के कदमों के साथ और नियंत्रण के कदमों के बिना) जो आकलन पेश किये थे, वे मोटा-मोटी सही थे। निम्‍न लिंक्‍स को देखें:
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/11786878
https://www.nature.com/…/2002/020107/full/news020107-7.html…
https://statmodeling.stat.columbia.edu/…/so-the-real-scand…/ 
(इस लिंक के कमेण्‍ट्स सेक्‍शन में विदुर कपूर व टॉम के कमेण्‍ट्स देखें जिन्‍होंने फर्गुसन के आकलनों के गलत होने के आरोपों का सन्‍दर्भों के साथ खण्‍डन किया है।)
https://www.reuters.com/…/uk-coronavirus-deaths-could-reach… 
(इस लिंक पर आप देख सकते हैं कि फर्गुसन ने नियंत्रण के कदमों के साथ कोरोना वायरस से होने वाली सम्‍भावित मौतों का क्‍या आकलन किया है; अब यदि कोई बिना नियंत्रण के कदमों के होने वाली मौतों के फर्गुसन के आकलन को लेकर बैठ जाए और पूछे कि 'उतने लोग कहां मरे जितने आपने बताए थे' तो फिर इस पर फर्गुसन माथा ही पीट सकता है!)

जहां तक बर्ड फ्लू का प्रश्‍न है तो उक्‍त आकलन तमाम वैज्ञानिकों द्वारा तब किये गये थे, जबकि बर्ड फ्लू इन्‍फेक्‍शन अभी मनुष्‍यों में आया ही नहीं था या बेहद छोटे पैमाने पर आया था, वह भी उन जगहों में जहां वे पोल्‍ट्री के प्रत्‍यक्ष सम्‍पर्क में थे। इन आकलनों का मूल आधार ही यही था कि यदि ये वायरस किसी ऐसे रूप में विकसित होता है जो कि मनुष्‍य से मनुष्‍य के बीच संक्रमण की बुनियाद तैयार करेगा, तब उस सूरत में यह कितनी मौतों का कारण बन सकता है। अब अगर आज कोई उन आकलनों को लेकर बैठ जाए और कहे कि इतनी मौतें नहीं हुईं इसलिए वैज्ञानिकों के पूर्वानुमान गलत थे और जैसा कि हमारे कोविडियट्स ने मांग की है, उन्‍हें दण्‍ड दिया जाना चाहिए, तो इस पर हंसा ही जा सकता है। वास्‍तव में, बर्ड फ्लू के किसी ऐेसे रूप में विकसित होने के पहले ही या तो पोल्‍ट्री को कल (cull) किया गया या वैक्‍सीनेट कर दिया गया, जिसके कारण वह सूरत ही नहीं पैदा हुई और बर्ड फ्लू एक पैण्‍डेमिक में तब्‍दील ही नहीं हुआ, जिस स्थिति के लिए वे आकलन किये गये थे। तो फिर उन आकलनों के लिए वैज्ञानिकों की गलती किस प्रकार निकाली जा सकती है? इस मसले को समझने के लिए निम्‍न लिंक्‍स पढ़ें:
https://news.un.org/…/154292-efforts-control-bird-flu-anima….
https://www.nature.com/news/2005/050912/full/050912-1.html

इसी प्रकार अन्‍य कई वैज्ञानिकों के ऐसे ही आकलनों के ऊपर आज दक्षिणपंथी पत्रकार व तथाकथित ''शोधकर्ता'' इसी प्रकार के गलत प्रश्‍न उठा रहे हैं, जिन पर अलग से लम्‍बी बात की जा सकती है। लेकिन अभी हम मानकर चलते हैं कि तमाम वैज्ञानिकों के आकलन गलत भी सिद्ध हो जाते हैं। विज्ञान हमेशा सम्‍भावनाओं की बात करता है। महामारियों के बारे में भी वैज्ञानिकों ने जो आकलन किये हैं वे अलग-अलग स्थितियों में मृत्‍यु व संक्रमण की सम्‍भावित रेंज की बात करते हैं, न कि कोई एक संख्‍या बताते हैं। ऊपर हमने फर्गुसन के उस पेपर का लिंक दिया है, जिस पर सवाल खड़े किये गये हैं। आप खुद पढ़ सकते हैं कि वह अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग रेंजेज़ की बात कर रहा है। वैज्ञानिक यही कर सकता है, जिसमें हमेशा ही कुछ आकलन सटीक न होने या गलत होने की सम्‍भावना भी हमेशा ही बनी रहती है। यह एक भविष्‍य का पूर्वानुमान है न कि घट चुकी घटना का बयान।

जहां तक स्‍वाइन फ्लू के बारे में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आकलन का प्रश्‍न है, तो वह मोटा-मोटी सही ही था। उनका आकलन था कि लाखों जानें जाएंगी, और यह सही ही निकला क्‍योंकि 2012 में पैण्‍डेमिक के खत्‍म होने के बाद विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन पर खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाले और स्‍वयं विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन इस नतीजे पर पहुंचे कि स्‍वाइन फ्लू से मौतों की वास्‍तविक संख्‍या थी 2,84,500। निम्‍न लिंक्‍स देखें:
https://www.thelancet.com/…/PIIS1473-3099(12)70121…/fulltext
https://www.cdc.gov/…/spotlig…/pandemic-global-estimates.htm
https://www.cidrap.umn.edu/…/cdc-estimate-global-h1n1-pande…
फिर भी, कौन से आकलन सही थे और कौन से सही नहीं थे, इस बहस को हम वैज्ञानिकों के लिए छोड़ देते हैं और समकालीन प्रश्‍न, यानी इस प्रश्‍न पर आते हैं कि क्‍या कोरोना महामारी कोई गम्‍भीर महामारी नहीं है? क्‍या उसके बारे में बेज़ा अफवाहें फैलाकर पूंजीपति वर्ग और उसके वैज्ञानिक डर पैदा कर रहे हैं जबकि वह ऐसी कोई गम्‍भीर महामारी है ही नहीं? यदि हां, तो क्‍या लॉकडाउन से पूंजीपति वर्ग को फायदा हुआ है? अगर हुआ है तो कैसे? अगर नहीं तो किसे फायदा हुआ है? आइये इन प्रश्‍नों के उत्‍तर पर बात करते हैं।

पहली बात: कोरोना से अब तक सिर्फ 5 महीनों के भीतर 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और यह सिलसिला अभी जारी है और यह आंकड़ा तब है जबकि अधिकांश देशों में पर्याप्त टेस्टिंग ही नहीं हो रही है और वास्तविक संक्रमित लोगों और मरने वालों की संख्या का पता करना संभव ही नहीं है। लेकिन जो रिपोर्टेड संख्‍या है उसी को फिलहाल मान लेते हैं। क्या तीन लाख से ज्‍यादा लोगों की मौत और वह भी पांच महीनों के भीतर, कोरोना की भयंकरता को साबित करने के लिए काफी नहीं है? क्या इसे अभी भी पूंजीपतियों और सरकारों का षडयंत्र मात्र कह कर इसके खतरे को महज़ हौवा कहा जा सकता है? लेकिन क्या करें! हमारे कोरोना षडयंत्र सिद्धन्‍तवादियों ने एक बार जो कमिटमेंट कर दिया फिर वो खुद की भी नहीं सुनते तो वे सच्चाई की कैसे सुनेंगे!
अगर यह पूंजीपतियों का षड्यंत्र है, तो यह साबित करना पड़ेगा कि पूंजीपति वर्ग को कोरोना महामारी और लॉकडाउन से फायदा हुआ है। लेकिन हम देख रहे हैं कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से विश्‍व पूंजीवादी अर्थव्‍यवस्‍था अपने गम्‍भीरतम आधुनिक संकट की ओर बढ़ रही है। यहां पर आप इस विषय में माइकल रॉबर्ट्स का सारगर्भित लेख पढ़ सकते हैं: https://thenextrecession.wordpress.com/…/profitability-inv…/ 

अगर कोविडियट षड्यंत्र सिद्धान्‍तवादियों की मानें तो पूंजीपति वर्ग ने स्‍वयं अपने पांव में गोली मार ली है! स्‍पष्‍ट है कि एक वर्ग के तौर पर पूंजीपति वर्ग को लॉकडाउन से कोई फायदा नहीं हुआ है। उल्‍टे वह इसके कारण अपने सबसे गम्‍भीर संकट के सामने खड़ा है। उसे भी पता है कि इससे निपटने के लिए उसे श्रमशक्ति के शोषण की दर को बढ़ाने के लिए जो कदम उठाने पड़ेंगे, वे श्रम और पूंजी के अन्‍तरविरोध को खतरनाक हदों तक तीखा बनाएंगे। वे इस जोखिम के बावजूद इसकी तैयारी भी कर रहे हैं क्‍योंकि उनके पास और कोई विकल्‍प भी नहीं है। कोविडियट्स की मानें तो शायद पूंजीपतियों और सरकारों ने मिलकर खुद के मुनाफे पर जबरदस्त चोट करने के लिए ऐसा षडयंत्र किया होगा की ताकि हमारे कोरोना षडयंत्र सिद्धान्‍तवादियों को एक नया षड्यंत्र सिद्धान्‍त प्रतिपादन करने का सुनहरा मौका मिले! आखिर क्या वजह है की ट्रम्प और बोल्‍सोनारो जैसे जनविरोधी धुर दक्षिणपंथी शासक भी कोरोना को सिर्फ अफवाह बता रहे है और जल्दी से जल्दी धंधा शुरू करने की वकालत कर रहे हैं? अन्‍य देशों के हुक्‍मरान भी अब ''वायरस के साथ जीने'' की हिदायत जनता को दे रहे हैं, क्‍योंकि उन्‍हें मुनाफे की मशीनरी अब किसी भी कीमत पर चालू करनी है।

फिर सवाल यह उठता है आखिर यह ''षडयंत्र'' कर कौन रहा है? फिर तो जवाब यही मिल सकता है की यह षडयंत्र कहीं नील फर्गुसन जैसे वैज्ञानिक ही तो नहीं कर रहे हैं! हमारे कोरोना षडयंत्र सिद्धान्‍तवादियों के तर्क से तो यही नतीजा निकल सकता है! और दूसरी सम्‍भावना यह है कि हमारे कोविडियट षड्यंत्र सिद्धान्‍तकारों का ऊपरी माला खाली है! कौन-सी सम्‍भावना अधिक उपयुक्‍त है, यह आप खुद ही तय कर लें।

( सत्य नारायण )
Satya Narayan
#vss

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