मैंने अपनी पहली कड़ी में बताया था कि 3 जून 1947 को माउंटबेटन भारत विभाजन की योजना रखते हैं। 4 जून को महात्मा गांधी वायसराय से मिलते हैं। पहली मुलाकात में बापू के मौनव्रत था दूसरी मुलाकात में बापू माउंटबेटन से कहते हैं कि "ठीक है आपने कांग्रेस नेतृत्व के साथ बैठकर जो भी तय कर लिया है पर मेरा अनुरोध है कि आप जल्दवाजी न करें ।" माउंटबेटन कहते हैं कि "महात्मा जी मुझे कोई जल्दी नहीं है मुझे तो ब्रिटिश सरकार ने एक कलेण्डर दिया है, उसी कलेण्डर के अंदर मुझे अपना काम खत्म करना है।"
वाइसराय ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा '' महात्मा जी आपने ही तो कहा था कि फैसला हिंदुस्तानियों पर छोड़ दिया जाय, और इस योजना में यही तो किया गया है। जनता के वोट से चुनी हुई विधानसभाएं ही तो यह फैसला करेंगी कि वे भारत में रहना चाहती हैं या पाकिस्तान में। आपने ही तो कहा था कि हम लोग जल्दी से जल्दी भारत छोड़कर चले जाएं।"
"पर मैं भारत विभाजन कब चाहता था ?" गांधीजी ने धीमे स्वर में वाइसराय से पूछा।
वाइसराय ने कहा कि "महात्मा जी अगर कोई ऐसा चमत्कार हो जाये कि विधानसभाएं एकता के पक्ष में वोट दें तो आप जो चाहते हैं वह मिल जाए। लेकिन अगर वे सहमत न हों तो आप भी नहीं चाहेंगे कि हम हथियारों और फौज के बल पर विधानसभाओं के निर्णय को पलट दें।" तर्क देकर पैरवी कर अपने व्यक्तित्व का सारा माधुर्य और आकर्षण प्रयोग करके माउंटबेटन ने गांधी के सामने अपनी बात रखी।
78 साल के बूढ़े आदमी को 30 साल में पहली बार देश की अपनी उस जनता पर अपने प्रभाव का कुछ संशय होने लगा जो उनके एक इशारे पर चल पड़ती थी। बापू मन ही मन खुद से सवाल करने लगे कि क्या वास्तव में जनता इस हद तक साम्प्रदायिक हो चुकी है ?
कुछ देर बाद गांधीजी दलित बस्ती के एक मंच पर पालती मारकर बैठे हुए थे । उनके सामने बैठे लोग आज बापू की प्रार्थना सुनने नहीं बल्कि माउंटबेटन योजना पर बापू की ललकार सुनने आये थे। गांधीजी ने मंच से कहा ''विभाजन के लिए वाइसराय को दोष देने से कोई लाभ नहीं। आप सभी अपने अंदर झांकिए, अपने मन को टटोलिये तब आपको पता चलेगा कि जो कुछ हुआ है उसका कारण क्या है।''
कांग्रेस कार्यसमिति में 12 जून 1947 को गांधीजी की अनुपस्थिति में और कांग्रेस महासमिति ने 15 जून 1947 को माउन्टबेटन योजना का अनुमोदन कर दिया। माउंटबेटन योजना के आधार पर शुक्रवार 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पास कर दिया।
गांधीजी एकमात्र ऐसे भारतीय नेता थे जिन्होंने पहले ही भांप लिया था कि कितना बड़ा संकट आने वाला है। विभाजन की योजना की पुष्टि होते ही पश्चिमी पंजाब और कलकत्ता से तीव्र हिंसा की खबरे आने लगीं। पश्चिमी पंजाब में मारकाट रोकने के लिए वाइसराय लार्ड माउंटबेटन ने 55 हजार फौजियों का एक दस्ता भेजने का फैसला किया। उस सेना की टुकड़ी में चुन चुन कर ऐसे सैनिक रखे गए जो साम्प्रदायिक उन्माद से मुक्त थे। माउंटबेटन ने इस दल का नाम पंजाब सीमा सेना दल रखा और मेजर जनरल टी. डब्ल्यू. रीस को इस दल का कमांडर बनाया गया।
माउंटबेटन ने गांधीजी से कहा कि पश्चिमी मोर्चे पर मैं 50 हजार सैनिक भेज रहा हूँ लेकिन कलकत्ता में भी व्यापक दंगों की खबरें आ रही हैं। अतः मैं आपसे अनुरोध करता हूँ आप अपने व्यक्तित्व और अहिंसा के आदर्श के बल पर पूर्वी मोर्चे (कलकत्ता) को संभाल लीजिये और पश्चिमी मोर्चे पर मेरी 50 हजार फौज चप्पे चप्पे पर तैनात रहेगी जिसकी मोनीटरनिंग में स्वयं करूँगा।
माउंटबेटन की पुत्री पामेला माउंटबेटन अपनी पुस्तक ' India Remembered में लिखती हैं कि, ''नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद और मेरे पिता माउंटबेटन सचमुच यह विश्वास करते थे कि विभाजन के बाद हिंसा की लहर चढ़ने के बजाय उतरने लगेगी। जिन प्रशासन और गुप्तचरों के सहारे अंग्रेज सरकार 250 वर्षों से भारत पर शासन कर रहे थी, उनको भी विभाजन की विनाशलीला का अंदाजा नहीं था और वे इस बात को समझने में असमर्थ थे कि भारत के जनसाधारण का दिमाग किस सीमा तक साम्प्रदायिक हो चुका है। इतिहासकारों को मेरे पिता सहित इन नेताओं की भूल पर आज भी आश्चर्य होता है और विभाजन पर आलोचना की झड़ी मेरे पिता माउंटबेटन पर तब भी लगी थी और आज भी लगती है।''
पामेला माउंटबेटन लिखती हैं कि ''मेरे पिता माउंटबेटन सहित नेहरू व जिन्ना इस बात में विश्वास करते थे कि विभाजन के बाद हिंसा का ज्वार थम जाएगा। आने वाली स्वतंत्रता के जश्न में दोनों ने ही अपनी इच्छाओं को वास्तविकता समझ लिया था और मेरे पिता को भी जमीनी हकीकत का पता नहीं चल सका। जिस पुलिस और गुप्तचर सेवाओं के सहारे अंग्रेज 200 वर्षों से भारत पर अपना एकछत्र शासन कर रहे थे उन्हें भी धूल में दबी हुई साम्प्रदायिक आग का पता न चल सका। लेकिन जब सांप्रदायिकता का तूफान पंजाब में आया तो मेरे पिता द्वारा बनाया गया 50 हजार सेना का पंजाब सेवा दल उसी तरह भरभरा कर ढह गया जैसे भयानक समुद्री तूफान में तट पर बनी झोपड़ियां बह जाती हैं।''
पामेला अपनी किताब में लिखती हैं कि मेरे पिता माउंटबेटन ने आधी धोती पहनने वाले जिस महात्मा को वन मैन आर्मी के तौर पर पूर्वी मोर्चे (कलकत्ता) पर तैनात किया था। उस वन मैन कमांडर ने जलते हुए बंगाल को अपने अहिंसात्मक चमत्कारिक उपवास के जरिये एकदम शांत कर दिया। हिंसाग्रस्त कलकत्ता में इतनी शांति स्थापित हो गयी कि 15 अगस्त 1947 को 77 साल के महात्मा गांधी खुली सड़क पर खुली जीप में अपने एक हाथ को हिलाते हुए कलकत्ता के सुरेंद्रनाथ बनर्जी मार्ग पर लोगों के अभिवादन को स्वीकार कर रहे थे । लोग अपने घरों की छत से अहिंसा के पुजारी पर गुलाब जल व फूलों की वर्षा कर रहे थे। उस दिन मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि आज कलकत्ता की सड़कों पर ईसा मसीह खुली जीप में घूम रहे हैं।
(शेष तीसरी कड़ी में)
© अवधेश पांडे
10 जून 2021
महात्मा गांधी की माउंटबेटन से मुलाकात (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/08/1_20.html
#vss
No comments:
Post a Comment