राम भारतीय संस्कृति और मनीषा के ऐसे नायक हैं जिन्हें राजनीति ने सदेव छला है। महल और सत्ता की राजनीति ने उन्हें बनवास को बाध्य किया और फिर वन में पत्नी वियोग सहन करना पड़ा। अपने पुरुषार्थ और कूटनीतिक बल से राम ने सैन्य बल तैयार किया और रावण को पराजित और उसका वध कर के पत्नी को छुड़ाया और फिर सोचा कि बनवास की अवधि समाप्त हो गयी है अब वापस चला जाय। वे वापस आये और उनका राज्याभिषेक होता है। हालांकि राम तकनीकी रूप से सदैव अयोध्या के राजा रहे है, जब वे बनवास में थे तब भी। भरत ने राज्याभिषेक नहीं कराया था और वे राम के प्रतिनिधि के रूप मे भी राज्य का भार संभाले रहे।
राम अयोध्या आये तो, राजा भी बन गए, सिंहासनारूढ़ भी हुए पर राजनीति अभी शेष थी। एक लोकापवाद के चलते उन्हें सीता का परित्याग करना पड़ा। सीता को दूसरा वनवास मिला और यह उनके जीवन का अंतिम वनवास था। इसी बीच, शम्बूक की एक कथा आती है। ब्राह्मणों की आपत्ति पर राम को शम्बूक की हत्या करनी पड़ी। अंत मे अपने ही पुत्रो लव कुश के साथ उन्हें युद्ध करना पड़ता है। पर चैन अब भी नहीं मिला। अंत मे ऊब कर उन्हें सरयू में समा जाना पड़ा। उन्हें सामान्य और शांतिपूर्ण मृत्यु भी नसीब नहीं हुयी। उनका अंत एक अप्राकृतिक मृत्यु के द्वारा हुआ।
पर इन तमाम कथाओं उपकथाओं, और क्षेपक के बाद भी राम को भारतीय परंपरा में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में देखा जाता है। सीता की अग्निपरीक्षा, बालि सुग्रीव प्रकरण में बालि की हत्या, सीता परित्याग और शम्बूक की हत्या पर अक्सर सवाल उठते रहे है और इन उठते सवालों के उत्तर भी लोग अपनी अपनी तरह से देते रहे हैं। पर इन सवालों के उठाने के अधिकार की कहीं निंदा नहीं की गयी है। यह सारे सवाल और आलोचना इस बात का द्योतक है कि संसार मे कोई भी सत्ता और सत्ताधारी या व्यक्ति आलोचना से परे नहीं है। भारतीय दर्शन और चिंतन परंपरा में तो, ईश्वर के अस्तित्व पर भी सवाल उठाए जाते हैं और अस्ति तथा नास्ति की एक दीर्घ और विचारोत्तेजक परंपरा का समृद्ध इतिहास भी है।
राम आज भी राजनीति से मुक्त नहीं है। भला राजपुरुष कैसे राजनीति से मुक्त हो सकते हैं ! अयोध्या में मंदिर और मस्जिद के भूमि विवाद को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कर दिये जाने के बाद राम मंदिर के निर्माण में कोई बाधा रह भी नहीं गयी थी। अब ट्रस्ट को मंदिर बनाना है और वह अपनी योजना पर बढ़ भी रहा है। लेकिन राम पर या बेहतर कहें कि राममंदिर पर हुयी राजनीति ने देश के सामाजिक तानेबाने को बहुत ही नुकसान पहुंचाया। राम और कृष्ण कभी भी, किसी भी काल मे विवादित नहीं रहे हैं। लेकिन राममंदिर पर हुयी राजनीति ने उनके नाम और घोष को भी विवादित बना दिया।
अब इस मामले का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। राममंदिर बनना अब केवल समय की बात है। मंदिर कितना विशाल बनता है, कितना भव्य बनता है, कितने समय मे बनता है यह सब अब ट्रस्ट को देखना और करना है। भूमि विवाद के हल हो जाने के बाद अब कोई विवाद शेष नहीं रहा। अब लोगो की ऊर्जा और सरकार का ध्येय उन समस्याओं की ओर जाना चाहिए जो लम्बे समय से देश, समाज को ग्रसे हुए हैं। वे समस्याएं न तो राम ने अभी खत्म किया है और न मंदिर बन जाने से वे खत्म होने वाली हैं। उनके कारण अलग हैं और गम्भीर है तो उनका निदान भी गंभीरता से खोजना होगा। राम इन सबमे कितने सहायक होते हैं यह भविष्य ही बताएगा।
( विजय शंकर सिंह )
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