श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिर्मठ-बदरिकाश्रम व शारदामठ- द्वारका अनंत श्री विभूषित महास्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा निर्गत विज्ञप्ति
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१. मंदिर निर्माण का मार्ग पक्षकारों, अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों ने प्रशस्त किया न की सरकार ने - कुछ दिनों पूर्व भारत सरकार के गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा था कि उनकी सरकार ने श्री राम मंदिर निर्माणकार्य का मार्ग प्रशस्त किया, जो कि उचित नहीं प्रतीत होता। श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का कार्य तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय भारत के दिए गए निर्णयों ने प्रशस्त किया है। यह सर्वविदित तथ्य है कि ९ नवंबर २०१९ के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के द्वारा मंदिर निर्माण हेतु भूमि भगवान श्रीराम को प्राप्त हुई। हमारे गृह मंत्री महोदय के उस वक्तव्य से सामान्यतया लोग यही निष्कर्ष निकलेंगे कि न्यायमूर्ति गणों ने उनकी सरकार से प्रभावित होकर निर्णय किया। यदि यह उनका प्रछन्न आशय है तो इसे न्यायपालिका की अवमानना ही कहा जा सकता है। कुछ विपक्षी कहते हैं कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश को बाद में राज्यसभा सदस्य बनाया गया जिससे वह निर्णय संदेह के घेरे में आता है। ऐसे लोगों से मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या एक ही जज ने निर्णय दे दिया था? क्या शेष चार जज स्वतंत्र न्याय करने की क्षमता नहीं रखते थे? ऐसे अनर्गल प्रलाप देश के लिए घातक हैं। देश के सबसे महत्वपूर्ण निर्णय को जिस प्रकार से हमारी उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय ने दिया उसकी हमें भूरि- भूरि प्रशंसा करनी चाहिए। सरकार और विपक्षी मिथ्या वादन बंद करें।
२. जो व्यक्ति सरकार में बैठे हैं उनकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उनकी भगिनी संस्था विश्व हिंदू परिषद् के सदस्यों ने अयोध्या में एक और नई मस्जिद के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया-
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित सुप्रीम कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कलीफुल्ला (सेवा निवृत्त) , धर्म गुरु श्री श्री रविशंकर, वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू की मध्यस्थता समिति के प्रयासों के फलस्वरूप सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड हम कुछ हिंदु पक्षकार धर्माचार्यों में विश्वास करते हुए विवादास्पद भूमि को हम लोगों को दे देने के निमित्त १५ क्टूबर २०१९ को एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया था। उस समझौते का मूल आशय यह था कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड बिना किसी भूमि को लिए श्री राम जन्मभूमि कि विवादास्पद भूमि हम हिंदू धर्माचार्यों को सौंप रहा है। न्यायालय से उनकी यह अपेक्षा होगी की वह भारत सरकार को यह निर्देश दें कि अयोध्या में जो कुछ पुरानी जीर्ण-शीर्ण मस्जिदें हैं उनकी मरम्मत करवा दें और पूजा स्थल अधिनियम का भविष्य में अनुपालन सुनिश्चित करें। समझौते में यह भी था कि पुरातत्व विभाग ने जिन मस्जिदों में नमाज पढ़ना निषिद्ध कर रखा है उसके लिए तीन सदस्यीय एक समिति बना दी जाए जिसमें एक अवकाश प्राप्त हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति हों, भारतीय पुरातत्व विभाग के एक निदेशक स्तर के वरिष्ठ अधिकारी हों और एक विशेषज्ञ विद्वान हो, इस समिति के सदस्य जिन मस्जिदों को नमाज पढ़ने योग्य बतावे उनमें मुसलमानों को नमाज पढ़ने दिया जाए। इस समझौते पर हिंदुओं की ओर से मेरी संस्था अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के उपाध्यक्ष स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, अयोध्या के महंत श्री धर्मदास जी , निर्मोही अखाड़ा अनी के श्री महंत दिनेन्द्रदास जी , हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी श्री चक्रपाणि जी आदि ने हिंदू पक्ष की ओर से इस समझौते र् हस्ताक्षर किए थे। परंतु संघ परिवार के लोगों ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया जिसके कारण सुप्रीमकोर्ट को निर्णय देना पड़ा। सुप्रीमकोर्ट के निर्णय में इन संघ परिवार के सदस्यों के द्वारा १९४९ में विवादास्पद ढांचे के अंदर मूर्ति रखने तथा १९९२ में उसको धराशाई करने को गैर कानूनी अपकृत्य करार देते हुए कड़े शब्दों में घोर निंदा की गई है। इनके अपकृत्यों से होने वाली मुसलमानों की आहत भावना पर मरहम लगाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश कि सरकार्ओं को निर्देश दिया कि मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए ५ एकड़ भूमि अयोध्या में ही दी जाए। सरकार ने बिना पुनरीक्षण याचिका या शोधनी याचिका दायर किए ही ५ एकड़ भूमि अयोध्या में नई मस्जिद बनाने के लिए सौंप दिया है। अब आप ही निर्णय करें सरकार ने मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया या अयोध्या में एक और नई मस्जिद निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया?
३ . भवन निर्माण भाद्रपद मास में निषिद्ध है, इस महीने में मंदिर निर्माण आरंभ करना न केवल शास्त्र विरुद्ध कार्य है, बल्कि न्यायालय द्वारा दी गई विधि व्यवस्था के भी विरुद्ध है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के श्री रामजन्मभूमि मामले में दिए गए निर्णय में कहा है कि मंदिर निर्माण में ज्योतिषशास्त्र, समरांगण- सूत्रधार, मरीचि-संहिता आदि धर्मशास्त्र पालनीय है - अपने निर्णय के पैराग्राफ १७२२ में हाईकोर्ट ने लिखा है कि ‘श्री पी एन मिश्र द्वारा निर्दिष्ट पूजा से संबंधित दृष्टिकोण जिनको विस्तार पूर्वक हमने पैराग्राफ १६९४ (ए -जे)में उद्धृत किया है और जो कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार हैं उनके विरुद्ध मस्जिद समर्थक पक्षकारों के अधिवक्ता गण कुछ भी नहीं प्रस्तुत कर सके इसलिए हमलोगों के समक्ष उनकी सत्यता पर संदेह करने का कोई आधार नहीं है। अगले पैराग्राफों १७२३-१७२४ में उन शास्त्रीय प्रमाणों के आलोक में कोर्ट ने कहा है कि - ‘शास्त्रकारों ने मंदिर निर्माण से संबंधित सोपानों, मूर्तियों के पवित्रीकरण तथा अभिषेक से संबंधित प्रक्रियाओं को विस्तार पूर्वक बताया है। भवन निर्माण से संबंधित विधि-विधानों के अतिरिक्त वह निर्माण जो कि देव गृह होगा उसके लिए अत्यधिक पवित्रता सुनिश्चित करने हेतु कहा है। जो मंदिर का निर्माण करना चाहता है उसको ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर उचित समय का चुनाव करना पड़ता है। मंदिर स्थल का चुनाव करने के पश्चात् उसको हल से जोत कर उसमें बीज बोना पड़ता है और जैसे ही बीज अंकुरित होते हैं उस फसल को गायों के द्वारा चरवाना होता है। उसके पश्चात् महत्वपूर्ण धार्मिक समारोह जैसे कि “ वास्तु जाग”, “ वास्तु पुरुष”, “ वास्तु देवता” की पूजा आदि किए जाते हैं। पैराग्राफ १७२६ में कोर्ट ने कहा है कि हिंदू पूजा पद्धति में मंदिर केवल विग्रह का स्थान ही नहीं है अपितु वह स्वयं में “ पूजनीय स्थान” है। पैराग्राफ १७३१ में न्यायालय ने ने कहा है कि “ समरांगण सूत्रधार’ मंदिर स्थापत्य शिल्प का उत्कृष्ट ग्रंथ है।“मरीचि संहिता” भी मंदिर निर्माण से संबंधित आचार्य संहिता का प्राविधान करती है।
४ . असहमति का अधिकार मौलिक अधिकार इससे वंचित करना दुर्भाग्यपूर्ण -
अभी कुछ दिनों पूर्व ही कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि, देश में प्रत्येक व्यक्ति को ‘असहमति’ व्यक्त करने का अधिकार है। परंतु जब मैंने २५०० वर्ष से भी अधिक प्राचीन भगवान शंकराचार्य के द्वारा स्थापित ४ आम्नाय मठों में से दो मठों का आचार्य एवं हिंदुओं के शीर्ष धर्म गुरुओं में से एक होने के नाते “ श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास” के द्वारा भाद्रपद द्वितीया, ५ अगस्त २०२० के मुहूर्त को ज्योतिष शास्त्र और मान्य लोक परंपरा के आधार पर बताया कि श्री राममंदिर निर्माण हेतु ‘शुभ’ नहीं है, तो संघ के सदस्यों से निर्मित इस सरकार द्वारा प्रायोजित ट्रस्ट के पदाधिकारियों और उनके अनुयायियों के द्वारा प्रेरित ‘सोशल मीडिया’, ‘ इलेक्ट्रॉनिकमीडिया’ और ‘प्रिंट मीडिया’ के माध्यम से मेरे ऊपर अप-शब्दों और गाली -गलौज की झड़ी लगा दी गई। क्या अब वर्तमान सरकार के शासनकाल में मेरे जैसे धर्मगुरुओं को सरकार के यंत्र न्यास के द्वारा बताए गए “अशुभ” मुहूर्त के विरुद्ध “असहमति” व्यक्त करने का अधिकार नहीं है ? हमने अपने जीवन काल में देखा है कि - जर्मनी के तानाशाह हिटलर, रूस के तानाशाह स्टालिन, इटली के तानाशाह मुसोलिनी, भारत कि शासिका इंदिरगांधी ने अपने नागरिकों से ‘ असहमति’ का अधिकार छीन लिया था जिसका परिणाम बहुत ही भयंकर हुआ।
५ . स्वयं को ही शास्त्र से ऊपर भगवान मानकर धर्म गुरुओं का अपमान करने का दुष्परिणाम हमें पूर्वकाल के इतिहास से प्राप्त होता है, उससे सबको सीख लेनी चाहिए-
भगवान आदि शंकराचार्य के काल में बद्रीनाथ क्षेत्र का एक राजा वासुदेव था। था तो वह बड़े ही धर्मिष्ठ राजा पूर्ण वर्मा का पुत्र परंतु राजमद में वासुदेव नाम होने के कारण वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। एक दिन अपने महल में ही उसने भिक्षा हेतु पधारे भगवान आदि शंकराचार्य की बांह पर तलवार का प्रहार कर दिया । बाद में रानी के समझाने पर उसने आदि शंकराचार्य जी से क्षमा और दंड दोनों की प्रार्थना की। शंकराचार्य जी ने उसे क्षमा देते हुए राजधानी जोशीमठ छोड़कर चले जाने के लिए कहा और दंड के रूप में यह शाप दिया कि कुछ पीढ़ियों के बाद उसके राजवंश का अंत हो जाएगा। वह राजा अपनी राजधानी जोशीमठ से कार्तिकेयपुर (कत्यूरी) ले गया परंतु उसके कुकृत्य के परिणाम स्वरूप राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में उसके राजवंश का अंत हो गया। ऐसा “हिमालयन “गजेटीयर्स ”, पंडित बद्रीदत्त पांडे लिखित “कुमाऊं का इतिहास” एवं हमारी ज्योतिष पीठ की परंपरा में प्रचलित इतिहास से ज्ञात होता है। कभी पेशवा के एक दुष्ट सेनापति ने टीपू सुल्तान पर किए गए आक्रमण काल में हमारे शृंगेरी मठ को जला दिया था, नानाफड़नवीश उसके इस कृती से दुखी होकर पेशवा से उसे दंडित करने को कहा । पेशवा ने शंकराचार्य जी को एक मठ और कुछ धन देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया। परंतु उनके सेनापति का यह पाप पेशवाशही को ले डूबा।गढ़वाल नरेश प्रदयुम्न शाह ने ज्योतिर्मठ के तत्कालीन शंकराचार्य के मठ को दखल कर भाग दिया था उसका दुसपरिणाम यह हुआ कि, भूकंप में १८०३ में उनकी राजधानी नष्ट हो गई और वे स्वयं १८०४ ईसवी में गोरखों से लड़ते हुए मारे गए। उन सभी का नामोनिशान समाप्त हो गया पर हम शंकराचार्य तो अब भी अपनी गद्दियों पर विराजमानहैं।
६ . संघ परिवार के लोग यह प्रचार करते हैं कि मैंने राम जन्मभूमि के लिए कुछ नहीं किया। वास्तविकता यह है कि श्री रंजन्मभूमि – बदरिमस्जिद विवाद मुकद्दमें में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में बहस करने हेतु मैंने अपनी संस्था अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से अग्रणी अधिवक्ता श्री परमेश्वर नाथ मिश्र जिन्हें पी एन मिश्र के नाम से भी जाना जाता है तथा सुश्री रंजना अग्निहोत्री को बहस में उनकी सहायता हेतु नियुक्त किया। श्री पी यन मिश्र ने भगवान श्री राम के पक्ष में २४ दिन तक कोर्ट के बैठने से कोर्ट के उठने तक बहस किया। अपनी बहस के दौरान उन्होंने २०७ फैसलों की नजीर पेश की तथा लगभग डेढ़ सौ ग्रंथों का प्रमाण प्रस्तुत किया, जिसके फलस्वरूप उच्च न्यायालय ने विवादास्पद ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे की भूमि को श्री राम जन्मभूमि घोषित कर दिया। संघ परिवार के सदस्यों द्वारा पैरवी वाले वाद में पैरवी कमजोर रही उनके सभी अधिवक्ताओं ने मिलकर 10 दिन से भी कम बहस किया जिसके फलस्वरूप उनके द्वारा लड़े जा रहे वाद में भूमि तीन हिस्से में बांट दी गई। यदि उनका वह वाद संख्या ५ वर्ष १९८९ नहीं रहा होतासंपूर्ण भूमि भगवान श्री राम की हो जाती क्योंकि मुसलमानों का वाद संख्या ४ वर्ष १९८९ तो हमारे अधिवक्ता श्री मिश्र जी की बहस पर लिमिटेशन से बाधित करार कर खारिज ही कर दिया गया था।
७। राम जन्मभूमि को मेरे अधिवक्ता ने सिद्ध किया :
निर्मोही अखाड़ा के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सुशील जैन, श्री त्रिलोकी नाथ पांडे (संघी) के वरिष्ठ अधिवक्ता द्वय श्री के परासरण तथा श्री सी एस वैद्यनाथन की बहस समाप्त होने के बाद जब मेरे अधिवक्ता श्री पी एन मिश्र बहस करने के लिए खड़े हुए तब माननीय न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ ने उनसे प्रश्न किया कि अब मात्र एक विवाद है कि जो विवादास्पद भूमि है वही श्री राम की जन्मभूमि है? इसे आप सिद्ध करें । हमारे अधिवक्ता ने कोर्ट में तमाम फैसलों की नजीर देकर यह बताया कि गजेटीयर्स, हिंदू एवं मुस्लिम धर्म शास्त्रों की पुस्तकें, प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ, शोध ग्रंथ, तथा वैज्ञानिक उत्खनन रिपोर्ट आदि ग्राह्य साक्ष्य हैं, और उनके आधार पर मामले का निर्धारण करना चाहिए। ४ दिन लगातार बहस करते हुए २६ ग्रंथों एवं हैन्स बक्कर के शोध ग्रंथ, एडवर्ड द्वारा १९०२ मे लगाए गए तीर्थ- चिह्नस्तंभों तथा स्कंद पुराण में दिए गए विवरण एवं तीर्थ- चिह्नस्तंभों को प्रमाणित करने वाली मेरे शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा की गई यात्रा से संबंधित साक्ष्य को प्रस्तुत कर असंदिग्ध रूप से सिद्ध कर दिया कि विवादास्पद भूमि श्री राम जन्म भूमि है। यही मुकदमे का निर्णायक मोड़ था और इसी पर अंतिम निर्णय हुआ।
८. हमारे अधिवक्ता ने प्रमाण सहित सिद्ध किया कि किसी दैवी मूर्ति के न रहने से धर्मदाय का प्रयोजन नहीं नष्ट होता। यदि किसी देवता के लिए कोई मंदिर बनाया गया है अथवा भूमि दी गई है तो मंदिर या मूर्ति के नष्ट होने पर भी यदि वहां पर पूजा उपासना लगातार हो रही है और भक्त महसूस करते हैं कि उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है तो वह धर्म स्थल बना रहता है, क्योंकि हिंदू मूर्ति की पूजा नहीं करते वल्कि उसके अंदर मंत्र शक्ति से भगवान को प्रविष्ट करा कर भगवान की पूजा करते हैं। इसलिए मूर्ति के नष्ट हो जाने पर भी अदृश्यरूप में दैवी शक्ति वहां उपस्थित रहती है और वह स्थल देवस्थल बना रहता है। इसको उच्च और उच्चतम न्यायालय दोनों ने ही स्वीकार किया और अपने फैसलों का आधार बनाया।
९. हमारे अधिवक्ता ने प्रमाण सहित सिद्ध किया कि हमारी पूजा निरंतर होती रही - बाबर के पूर्व, बाबर के पश्चात् उसके पौत्र जहांगीर, उसके वंशज औरंगजेब एवं मोहम्मद शाह रंगीला के समय में भी हिंदू लगातार पूजा करते रहे। उन्होंने यह भी बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के १८२८ के गजेटीयर में भी केवल हिंदुओं के पूजा करने की बात कही गई है। ब्रिटिश काल के १८५८ व १८७७-७८ के गजेटियर्स से भी यह पता चलता है कि मुसलमानों के द्वारा बाधा पहुंचाए जाने के बावजूद हिंदू वहां पूजा करते रहे। स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भी हिंदू वहां पूजा करते रहे। उनके इस तर्क को इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों का आधार बनाया।
१०. हमारे अधिवक्ता ने प्रमाण सहित सिद्ध किया कि बाबर ने मस्जिद नहीं बनाई थी परंतु न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में जबकि मुस्लिम पक्ष और वाद संख्या ५ के त्रिलोकी नाथ पांडे आदि का मानना है कि बाबर ने ही मस्जिद बनाया तो अब हम इस पर अपना कोई मन्तव्य नहीं देंगे।
११। हमारे अधिवक्ता ने सप्रमाण सिद्ध किया कि तथाकथित बाबरी मस्जिद पर लगे हुए शिलालेख जाली थे जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया।
१२. इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ एवं उच्चतम न्यायालय भारत में सर्वाधिक बहस हमारे अधिवक्ता डॉ पी एन मिश्र ने की। उच्च न्यायालय में कुल 90 दिन हुई बहस में 24 दिन अकेले उन्होंने अपनी सहयोगी सुश्री रंजना अग्निहोत्री के साथ बहस किया। संघियों के वकीलों ने कुल मिलाकर 10 दिन से भी कम ही बहस किया। उच्च न्यायालय के निर्णय में हमारे अधिवक्ता का नाम लगभग एक सौ बार आया है जबकि संघियों के किसी भी एक अधिवक्ता का 30 बार भी नाम नहीं आया है।उच्चतम न्यायालय में हुई 40 दिन की बहस में हमारे अधिवक्ता डॉ पी एन मिश्र ने भगवान श्री राम के पक्ष में 5 दिन बहस किया। सुप्रीम कोर्ट निर्णय में हिंदुओं की ओर से के परासरण के बाद सर्वाधिक मेरे अधिवक्ता का नाम आया है। जिन बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट में हमारे अधिवक्ता को संघियों ने बहस नहीं करने दिया उन मुद्दों पर हिंदुओं की हार हुई जैसे कि लिमिटेशन पर मेरे अधिवक्ता की बहस के आधार पर हाईकोर्ट में मुसलमानों का वाद खारिज हो गया था परंतु सुप्रीम कोर्ट में परासरण जी ने उस मुद्दे पर बहस किया और मुस्लिम वाद उस बिंदु पर मान्य करार दिया गया। अब भारत की जनता निर्णय करें कि राम मंदिर में किस का क्या योगदान है क्योंकि निर्णय सार्वजनिक हैं उन्हें पढ़कर कोई भी आसानी से निष्कर्ष निकाल सकता है।
१३. हिंदुओं के पवित्र तीर्थ श्री राम जन्मभूमि के धार्मिक समारोह में मुसलमानों को बुलाना तीर्थस्थल की मर्यादा को भंग करना और हिंदुओं के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का बलात् हनन करना है -
टीवी को दिए गए एक साक्षात्कार में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव श्री चंपत राय ने एक मुस्लिम मोहम्मद फैज के हाथ से लाई गई मिट्टी को राम मंदिर की नीव में देने के कार्य को उचित ठहराते हुए कहा है कि क्या मुसलमान के छूने से मिट्टी अपवित्र हो जाएगी, मिट्टी तो मां होती है, माँ तो हमेशा पवित्र रहती है। मुसलमान मिट्टी का कैरियर हो सकता है। उन्होंने एक मुसलमान इकबाल अंसारी को श्री राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में भाग लेने के लिए पहला निमंत्रण पत्र भेजा जो कि टीवी पर दिखाया गया, यह वही इकबाल अंसारी हैं जिनके पिता हाशिम आँसारी मूल मुस्लिम पक्षकार थे और उनकी मृत्यु के बाद यह पक्षकार बने, इसप्रकार मंदिर द्रोही को पहला निमंत्रण देकर हिंदुओं कि भावनाओं पर आघात किया गया। इन महासचिव जी ने स्वयं कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पद्मश्री प्रदत्त फैजाबाद के एक मुसलमान मोहम्मद शरीफ को भी इन्होंने निमंत्रित किया है। हमने यह भी सुना है कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारूखी तथा एक मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी को भी न्यास द्वारा आमंत्रित किया गया है। इस्लाम जो कि मूर्ति पूजा का भयंकर विरोधी है, स्वयं जिसके पैगंबर ने काबा में ३६५ मूर्तियों का विध्वंस कराया था, जो कहते हैं कि मूर्तिपूजक जहन्नुम कि दोजख की आग में जाएंगे, उनके धर्म ग्रंथ में यह भी लिखा है कि काफिरों के साथ कभी भी दोस्ती मत करो, अवसर मिले तो उन्हे पोरी-पोरी काटो। मुसलमानों के धर्मशास्त्र हिदाया में बकरीद पर हिंदुओं के लिए जो पवित्र गाय है उसकी भी कुर्बानी करने कि व्यवस्था दी है। इन्हीं सब कारणों मुसलमानों का हमारे मंदिरों में प्रवेश निषेध है। श्री जगन्नाथ पुरी, श्री बद्रीनाथ मंदिर, श्री विश्वनाथ मंदिर आदि सभी पृथक पृथक अधिनियम के अंतर्गत परिचालित मंदिरों में भी अब तक मुसलमानों का प्रवेश निषेध है। दक्षिण भारत के श्री गुरुवायूर मंदिर , श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, श्री अय्यप्पा स्वामी मंदिर, श्रीपद्मनाथ स्वामी मंसिर आदि सभी मंदिरों में मुसलमानों का प्रवेश निषेध है। ऐसी स्थिति में श्री राम जन्म भूमि के धार्मिक समारोह में श्री राम जन्मभूमि का भारत सरकार द्वारा निर्मित न्यास के द्वारा मुसलमानों द्वारा पददलित करवाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ और २६ में प्राप्त हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का शासन के जोर पर हनन है। हम इसकी घोर निंदा करते हैं और संविधान एवं विधि विहित वैधानिक प्रक्रियाओं के अंतर्गत हम भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और उनके यंत्र न्यास के इस धर्म विरोधी और संविधान विरोधी अपकृत्यों को चुनौती देंगे।
१४. श्री राम मंदिर का राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपयोग हम नहीं होने देंगे- श्री राम मंदिर जैसे पवित्र धार्मिक स्थल का सरकार के यंत्र न्यास द्वारा मुस्लिम एवं अन्य धर्म के मतावलंबियों के तुष्टीकरण के लिए इस्तेमाल किया जाना घोर आपत्तिजनक है। श्री राम जन्मभूमि जैसे पवित्र तीर्थ तथा जन्मभूमि मंदिर को अन्य धर्म के मतावलंबियों के लिए खोलने के कुत्सित कार्य का हम घोर विरोध करते हैं । यह वर्तमान सरकार के यंत्र न्यास का घोर असंवैधानिक कार्य है हम चुप नहीं बैठेंगे इस न्यास को प्रबंधन के कार्य से हटवा के ही छोड़ेंगे। इनके अपकृत्यों के विरुद्ध अब हम धर्माचार्यगण जन-जागरण करेंगे और आवश्यकता पड़ी तो न्यायालयों में भी जाएंगे। क्या हिंदुओं को ये संघी और इनकी सरकार काबा में प्रवेश दिलवा सकते हैं, यदि नहीं तो हमारे मंदिरों में मुसलमानों को प्रवेश देकर इन्हें हमारे धार्मिक मान बिंदुओं को नष्ट करने का इन्हें कोएए अधिकार नहीं है।
१५. मंदिर निर्माण का मुहूर्त धर्म शास्त्रों के अनुसार अशुभ है - भारत के गृहमंत्री का कोरोना की बीमारी से पीड़ित होना, उत्तर प्रदेश के कबीना मंत्री श्रीमती कमला रानी वरुण की कोरोना से मृत्यु होना, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का कोरोनाग्रस्त होना, तमिलनाडु के राज्यपाल का कोरोनाग्रस्त होना, कर्नाटक के मुख्यमंत्री का कोरोनाग्रस्त होना, श्री राम जन्म भूमि के पुजारी का कोरोनाग्रस्त होना, श्री राम जन्मभूमि परिसर के सुरक्षाकर्मियों का कोरोनाग्रस्त होना यह सब अशुभ लक्षण ही तो प्रतीत होते हैं। यह सभी लोग उन्हीं लोगों से संबंधित हैं जो कि अशुभ मुहूर्त में राम मंदिर का भूमि पूजन करवाना चाहते हैं।
१६. शास्त्रों में किसी भी मंदिर या भवन निर्माण हेतु दो बार भूमि पूजन एवं शिलान्यास का विधान नहीं- यह सर्वविदित तथ्य है कि वर्ष १९८९ में इन्हीं संघियों ने अपने एक सदस्य श्री कामेश्वर चौपाल से, जो कि इस यंत्र न्यास में भी एक सदस्य हैं राम जन्मभूमि से १९२ फिट दूर शिलान्यास और भूमि पूजन करवाया था। तो क्या अब उनके द्वारा किया गया वह भूमिपूजन और शिलान्यास इन्हें मान्य नहीं है? और यदि मान्य नहीं है तो क्यों? वास्तविकता तो यह है कि उस समय मैंने कहा था कि यह गलत हो रहा है शिलान्यास और भूमि पूजन श्री राम जन्म भूमि पर होना चाहिए दूर नहीं परंतु उस समय इन लोगों ने मेरी ही आलोचना की थी कि एक दलित के द्वारा भूमिपूजन और शिलान्यास हो रहा है इसलिए शंकराचार्य विरोध कर रहे हैं। और आज उसी भूमिपूजन और शिलान्यास को संघी गलत मान रहे हैं तभी तो दूसरा भूमिपूजन और शिलान्यास करवा रहे हैं। क्या अब एलोग दलित का अपमान नहीं कर रहे हैं।
१७ . प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा बिना पत्नी के भूमिपूजन एवं शिलान्यास करना शास्त्र विरुद्ध है- हमारे शास्त्रों में मंदिर अथवा भवन निर्माण से संबंधित या अन्य महत्वपूर्ण सभी धार्मिक कार्यों में विवाहित व्यक्ति के लिए सपत्नीक पूजा का विधान है। यहां तक की जब भगवान श्री राम अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे और निर्वासित सीता जी कहां है इसका अता पता न था तब भी उन्होंने सीता जी कि स्वर्ण प्रतिमा बनवा कर यज्ञ किया था। यहां तो श्री मोदी जी की धर्मपत्नी श्रीमती यशोदा बेन का अता-पता ज्ञात है, ऐसी स्थिति में बिना पत्नी के श्री राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण हेतु उनके द्वारा अकेले पूजा करना शास्त्र विरुद्ध और अमान्य है। नारी जाति का अपमान कर ये लोग एक नई अधार्मिक परंपरा को जन्म देना चाहते हैं जिसे विफल करना प्रत्येक सनातनी/हिन्दू का परम कर्तव्य है।
१८. शास्त्रीय मान्यता के अनुसार तीर्थ स्थल पर बनाए जाने वाले मंदिर का शिलान्यास और भूमि पूजन केवल सिद्ध पुरुष कर सकता है इसका फल यह होता है कि मूर्ति रहे न रहे, मंदिर रहे ना रहे, उस स्थल पर वहां के अभिमानी देवी-देवता अदृश्य रूप में सर्वदा विराजमान रहते हैं। यह तर्क हमारे अधिवक्ता द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दिया गया था और इसे उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में इसे स्वीकार भी किया है।
१९. एक टेलीविजन चैनल में भाजपा के प्रवक्ता अमित पुरी और संघ के एक धर्मध्वजी संत राम विलास वेदांती ने मुझ ९६ वर्षीय हिंदुओं के प्रधान धर्मगुरु परमहंस दंडी संन्यासी जगद्गुरु शंकराचार्य शारदा मठ द्वारका और ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम को कांग्रेसी कह कर विवक्षित रूप से धर्म द्रोही और देशद्रोही बताने का प्रयास कर रहे थे। अपने उक्त कार्य से यह अल्पज्ञ प्रतीत होते हैं। इन्हें ज्ञान नहीं है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाला कांग्रेसी मैं हूं, भारत मां को स्वाधीन करने के लिए जेल जाने वाला कांग्रेसी मैं हूं; स्वतंत्रता के बाद सत्ता सुख भोगने वाला कांग्रेसी या भाजपायी संत मैं नहीं हूण । स्वतंत्रता के बाद के कांग्रेसियों के द्वारा गो भक्तों पर दिल्ली में चलाई गई गोली को झेलने वाला सन्यासी मैं हूं। वर्ष १९९० में श्री राम जन्मभूमि स्थल पर शिलान्यास करने जाने वाला वह शंकराचार्य हूण जिसे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव ने गिरफ्तार कर 1 सप्ताह से अधिक समय तक के लिए चुनार के किले में बंद कर दिया था। इनकी पार्टी के पितामह श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस मंत्रिमंडल में मंत्री थे। उन्होंने ही भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी जिसकी संतान भारतीय जनता पार्टी है। इनकी सरकार ने जिनको भारत रत्न दिया है वह महामना मदन मोहन मालवीय भी कांग्रेसी ही थे। जिन सरदार वल्लभ भाई पटेल का विश्व में सबसे ऊंचा पुतला इन्होंने बनाया है वह भी कांग्रेसी ही थे, यह वही तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पटेल हैं जिन्होंने महात्मा गांधी जी की हत्या के बाद संदेह के घेरे में आये संघ पर प्रतिबंध भी लगा दिया था । यह वही कांग्रेसी पटेल हैं जिन्होनें सोमनाथ के मंदिर को बनवाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय आदि सभी कांग्रेसी ही थे । जिनको भारत के नागरिक राष्ट्रपिता मानते हैं वे महात्मा गांधी भी कांग्रेसी ही थे। पाकिस्तान से १९६५ का युद्ध जीतने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी भी कांग्रेसी ही थे। इनकी संघ संस्था ने अभी 100 वर्ष भी पूरा नहीं किया है और मैं जिस गद्दी पर बैठा हूं वह ढाई हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन है, अब ये हमें प्रमाण पत्र देंगे?
२०. क्या इस कोरोना कि वैश्विकमहामारी के काल में जब कि सभी धर्म के लोगों को धार्मिक समारोहों का आयोजन करने से सरकार द्वारा रोक दिया गया है, तब सरकारों और उनके यंत्र न्यास के दवरा भूमिपूजन व शिलान्यास के धार्मिक समारोह का आयोजन करना उचित है?
२१ . श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में भारत सरकार ने स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष पीठेश्वर, प्रयाग कहकर शामिल किया है। अपने २०१७ के निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दो न्याय मूर्तियों की खंडपीठ ने ईं श्री वसुदेवनन्द को सन्यासी तक नहीं माना है। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा की गई अपील में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित कर कहा है कि अपीलों के निस्तारण तक जगतगुरु शंकराचार्य ज्योतिषपीठाधीश्वर के रूप में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ही मान्य रहेंगे। इसके बावजूद भी सत्ता के मद में चूर केंद्रीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को शंकराचार्य कह कर यंत्र न्यास में शामिल किया है और अपने इस कृती से संपूर्ण भारत के लोगों को गुमराह किया है। हमारी सभी हिंदुओं से अपील है कि आपके इस प्रधान धर्माचार्य को जो लोग सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से अपशब्द कह रहे हैं, गाली गलौज दे रहे हैं, लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं, अपने अशास्त्रीय कार्यों को सत्ता के बल पर शास्त्रीय कहलवाना चाहते हैं,
ऐसी विषम परिस्थिति में
आप सभी आस्थावान सनातनी / हिंदू उनके उन्हीं माध्यमों को अपने अभिव्यक्ति का साधन बना कर उनका जो दुष्प्रचार तंत्र है उसको समुचित जवाब देकर धर्म और देश की रक्षा करें। आप सभी का कल्याण हो। धर्म कि जय हो, अधर्म का नाश हो।
भाद्रपद कृष्ण २ विक्रम संवत् २०७७
दिनांक ५ अगस्त २०२०
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