Friday, 5 June 2020

एक फरियादी की त्रासद मृत्यु और हमारा तँत्र / विजय शंकर सिंह

हाईकोर्ट में दायर एक वृद्ध याचिकाकर्ता की मृत्यु, इलाज के अभाव में हो गयी। दिल्ली हाईकोर्ट में एक 80 वर्षीय वृद्ध, जो कोविड 19 से पीड़ित था, को दिल्ली के किसी भी अस्पताल मे चिकित्सा हेतु बेड नही मिल रहा था। उसने दिल्ली हाईकोर्ट मे एक याचिका दायर की कि, उसे दिल्ली के किसी अस्पताल में भर्ती करने और इलाज तथा वेंटिलेटर की सुविधा दी जाय।

अदालत ने उसके मुक़दमे की सुनवाई के लिये तिथि निर्धारित की। पर जब तक अदालत मुक़दमे की सुनवाई करती और कोई आदेश जारी होता, इसके पहले ही उस वृद्ध याचिकाकर्ता की मृत्यु हो गयी। दिल्ली के अस्सी वर्षीय यह वृद्ध नागरिक, पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी क्षेत्र के रहने वाले थे और कोरोना से संक्रमित हो जीवन की अंतिम लड़ाई लड़ रहै थे। 

अपने इलाज के लिये उन्होंने दिल्ली के सभी बड़े अस्पतालों के दरवाजे खटखटाये यहां तक कि वे एम्स, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, राजीव गांधी अस्पताल, मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज आदि बड़े अस्पतालों में भी इलाज कराने के लिए एडमिट होने की कोशिश की, लेकिन किसी भी अस्पताल ने उन्हें एडमिट नहीं किया। 

थक हार कर उन्होंने, 2 जून को दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसकी सुनवाई आज शुक्रवार को होनी थी। इसी बीच बीती रात ही उनका दुःखद निधन हो गया। यह सूचना अखबारों को उनके वकील आरपीएस भट्टी द्वारा दी गयी। 

अपनी याचिका में उन्होंने हाईकोर्ट से यह अनुरोध किया था कि, अदालत रिस्पोंडेंट ( जिसे याचिका में विपक्षी पार्टी बनाया गया है ) को यह निर्देश दे कि किसी भी सरकारी अस्पताल में याचिकाकर्ता को वेंटिलेटर और मुफ्त चिकित्सा सुविधा के साथ बीपीएल ( गरीबी रेखा से नीचे ) की सुविधा प्रदान करते हुए भर्ती कर उनका इलाज करे। 

याचिका में यह भी कहा गया है कि, 
" उसे 25 मई को बीमार होने पर पूर्वी दिल्ली के ही एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां अस्पताल ने लापरवाही से उन्हे एक कोरोना संक्रमित मरीज़ के बगल में लिटा दिया  जिससे याचिकाकर्ता को भी कोरोना संक्रमण हो गया। उसकी हालत बिगड़ती चली गयी। अस्पताल में उसे वेंटिलेटर पर भी रखा पर वहां उचित सुविधा न होने के कारण अस्पताल ने याचिकाकर्ता को कहीं बेहतर कोविड अस्पताल में शिफ्ट करने के लिये उसके तीमारदारों से कहा। 

दिल्ली सरकार एक तरफ तो लगातार यह दावे कर रही है कि वह कोरोना से लड़ने के लिए संसाधनों की कमी नहीं होने देगी, दूसरी तरफ, एक 80 वर्षीय वृद्ध को बेहतर इलाज और अस्पताल में भर्ती होने के लिये, हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। दिल्ली सरकार के मंत्री राघव चड्ढा कह रहे हैं कि 57 दिनों के लॉक डाउन मे सरकार ने अस्पालो को अधिक समृद्ध किया है। अगर स्थिति और बदतर होती है तो सरकार उसे संभालने में सक्षम होगी। 

इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती होने और एक अदद बेड के लिये भी किसी नागरिक को हाईकोर्ट  में याचिका दायर करनी करनी पड़े, और वह भी दिल्ली जैसे उन्नत राज्य में तो यह घटना हमारी प्राथमिकताओं की बखिया उधेड़ देने के लिये अकेले ही पर्याप्त है। यह अकेला केस नहीं होगा, भले ही अदालत में गया यह अकेला केस हो। 

सुनवाई की प्राथमिकता तय करने का आखिर आधार क्या है ? यह कोई वरिष्ठ अधिवक्ता या अदालती कार्यवाहियों में रुचि रखने वाले मित्र बता सकें तो ज़रूर हम सबका ज्ञान वर्द्धन करें। अव्वल तो यह मुकदमा हाईकोर्ट तक जाना नहीं चाहये था और अगर हाईकोर्ट तक चला भी गया तो इसपर तत्काल सुनवाई कर के सरकार को बेड आदि उपलब्ध कराने के लिये आदेश जारी करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

अब लगभग सभी शॉपिंग मॉल, उपासनास्थल, खुल रहे हैं, तो निश्चय ही भीड़ होगी। सोशल डिस्टेंसिंग बस तम्बाकू का सेवन खतरनाक है, जैसी वैधानिक चेतावनी बन कर रह जायेगा। सोशल डिस्टेंसिंग को प्रभावी रूप से लागू करना संभव नहीं होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के ही एक आंकड़े के अनुसार, गुरुवार की रात्रि तक कुल 24,000 कोविड 19 के पॉजिटिव संक्रमित मामले सामने आए और अब तक कुल 606 मौतें कोरोना से दिल्ली में हो चुकी हैं। दिल्ली सरकार का टीवी पर आता हुआ प्रचार देखिये, और एक तल्ख हक़ीक़त। कितना फ़र्क़ है दोनो में। 

( विजय शंकर सिंह )

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