Tuesday, 23 June 2020

गलवां घाटी आखिर है किसकी / विजय शंकर सिंह


15 जून को एक बेहद गम्भीर और व्यथित कर देने वाली खबर, देश को मिली, कि गलवां घाटी जो लद्दाख के भारत चीन सीमा पर स्थित लाइम ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, एलएसी पर है, में हुयी एक झडप में, हमारे एक कर्नल सुरेश बाबू जो बिहार रेजिमेंट के थे, सहित कुल 20 जवान शहीद हो गए। भारत चीन की सीमा पर स्थित यह घटना भारत चीन विवाद के इतिहास में 1962 के बाद की सबसे बड़ी घटना है जिसकी व्यापक प्रतिक्रिया देश भर में हुयी। लेकिन सरकार की तरफ से कोई त्वरित जवाबी कार्यवाही अब तक नही की गयी जबकि इसकी पुरजोर मांग देश भर में उठ रही है। हो सकता है सेना, इस हमले का जवाब देने के लिये उचित समय और अवसर की प्रतीक्षा में हो, या कोई अन्य उचित कूटनीतिक और सैन्य रणनीति बना रही हो।
1962 में जब चीन ने हमला किया था तो गलवां घाटी और पयोग्योंग झील के आगे 8 पहाड़ियों वाले घाटी का इलाका जिसे फिंगर्स कहते हैं, एक अनौपचारिक रूप से तय की हुयी सीमा रेखा बनी जिसे एलएसी कहा गया। वास्तविक सीमा के निर्धारण और भौगोलिक जटिलता के कारण कभी हम उनके तो कभी वे हमारे क्षेत्र में चले आते थे। 1993 में हुए एक भारत चीन समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया, कि उभय पक्ष हथियार का प्रयोग नहीं करेंगे। लेकिन अचानक, 15 जून को यह घटना हो गयी जिसने हमारी कूटनीति और भारत चीन के बीच चले आ सम्बन्धो के खोखलेपन को उजागर कर दिया।
समझौते की शर्तें, इस प्रकार हैं,
1. भारत चीन सीमा के संदर्भ में, दोनो पक्ष, इस बात पर सहमत हैं कि, वे इस विवाद को शांतिपूर्ण और दोस्ताना बातचीत से हल करेंगे।
कोई भी पक्ष एक दूसरे को न तो धमकी देगा और न ही बल का प्रयोग करेगा। इसका अर्थ यह है कि, जब तक सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान न हो जाय तब तक, दोनो ही पक्ष एलएसी की स्थिति का सम्मान करेंगे।
किसी भी परिस्थिति में कोई भी पक्ष एलएसी का उल्लंघन नहीं करेगा। अगर ऐसा किसी भी पक्ष ने किया भी है तो वह तुरन्त वापस अपने क्षेत्र में चला जायेगा। अगर आवश्यकता होती है तो दोनो ही पक्ष मिल बैठ कर इस मतभेद को सुलझाएंगे।
2. दोनो ही पक्ष, एलएसी के पास अपना न्यूनतम बल तैनात करेंगे जैसा कि दोस्ताने और अच्छे पड़ोसी वाले देशों के बीच होता है।
दोनों ही पक्ष आपस मे बात कर के अपने अपने सैन्यबल को कम संख्या में नियुक्त करेंगे। सैन्यबल, एलएसी से कितनी दूरी पर, किस समय और कितना कम रखा जाय, यह दोनो देशों से विचार विमर्श के बाद तय किया जाएगा।
सैन्यबल की तैनाती दोनो ही पक्षो के बीच आपसी सहमति से तय की जाएगी।
3. दोनो ही पक्ष आपसी विचार विमर्श से एक दूसरे पर भरोसा बनाये रखने के उपाय, आपसी विचार विमर्श से ढूंढेंगे।
दोनो ही पक्ष एलएसी के पास कोई विशेष सैन्य अभ्यास नहीं करेंगे।
दोनो ही पक्ष अगर कोई विशेष सैन्य अभ्यास करते हैं तो, वे एक दूसरे को इसकी सूचना देंगे।
4. अगर एलएसी के पास कोई आकस्मिक बात होती है तो दोनो ही पक्ष आपस मे बैठ कर इस समस्या का समाधान, सीमा सुरक्षा अधिकारियों के साथ मिल कर निकालेंगे।
ऐसी आपसी मीटिंग और संचार के चैनल का स्वरूप क्या हो, यह दोनो ही पक्ष आपसी सहमति से तय करेंगे।
5. दोनो ही पक्ष इस बात पर सहमत है कि, दोनो ही क्षेत्र में कोई वायु घुसपैठ भी न हो, और अगर कोई घुसपैठ होती भी है तो उसे बातचीत से हल किया जाय।
दोनो ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि, उस क्षेत्र के आसपास, दोनो मे से, कोई भी देश वायु अभ्यास नहीं करेंगे।
6. दोनो ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि, यह समझौता, जिसमें, एलएसी के बारे में जो तय हुआ है वह सीमा पर अन्यत्र जो सैन्य नियुक्तियां हैं, उन पर कोई प्रभाव नहीं डालता है।
7. दोनो ही पक्ष इस बात पर सहमत होंगे कि, आपसी विचार विमर्श से ही सैन्य निरीक्षण का कोई तँत्र विकसित करेंगे जो सैन्य बल को कम से कम करने पर और इलाके में शांति बनाए रखने पर विचार करेगी।
8. दोनो ही पक्षो के इंडो चाइना वर्किंग ग्रुप, कूटनीतिक और सैन्य विशेषज्ञों के दल गठित करेंगे जो आपसी विचार विमर्श से इस समझौते को लागू कराने का विचार करेंगे।
संयुक्त कार्यदल के विशेषज्ञ एलएसी के दोनों तरफ की समस्याओं के समाधान को सुझाएंगे, और कम से कम सेना का डिप्लॉयमेंट कैसे बना रहे, इसकी राह निकलेंगे।
विशेषज्ञ, संयुक्त कार्यदल को इस समझौते के लागू करने में सहायता देंगे। समय समय पर अगर कोई समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो, उन्हें सदाशयता और परस्पर विश्वास के साथ हल करेंगे।
यह समझौता यूएन की साइट पर उपलब्ध है और सार्वजनिक है। यह समझौता मैंने इसलिए यहां प्रस्तुत किया है कि हमारे सैनिकों के निहत्थे होने के तर्क के बारे यह कहा जा रहा है कि वे1993 के समझौते के कारण निहत्थे थे, जबकि इस समझौते में ऐसा कोई उल्लेख नही है कि ट्रुप हथियार नहीं रखेंगे।
15 जून की हृदयविदारक घटना और चीन के धोखे के बाद पूरा देश उद्वेलित था, और इसी की कड़ी में 19 जून को प्रधानमंत्री द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी, और उस सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री जी ने चीन के घुसपैठ पर जो कहा उससे देश भर में बवाल मचा। पीएमओ के ट्वीट और एएनआई की खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आज सर्वदलीय मीटिंग में जो कहा , पहले उसे पढ़े। पीएम ने कहा,
" न तो हमारी सीमा में कोई घुसा था, और न ही हमारी चौकी पर किसी ने कब्जा किया था। हमारे 20 जवान शहीद हो गए। जिन्होंने, भारत माता के प्रति ऐसा दुस्साहस किया है, उन्हें सबक सिखाया जाएगा। "
प्रधानमंत्री के इस यह बयान से, भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी और तत्काल निम्न सवाल उठ खड़े हो गए।
● जब कोई अंदर घुसा ही नहीं था और किसी चौकी पर घुसने वाले ने कब्जा तक नहीं किया था,तो फिर विवाद किस बात का क्या था ?
● जब विवाद नहीं था तो फिर 6 जून 2020 को जनरल स्तर की फ्लैग मीटिंग क्यों तय की गयी थी ?
● फ्लैग मीटिंग में फिर क्या तय हुआ जब कोई घुसा ही नहीं था तो ?
● जब कोई घुसा ही नहीं था तो वह ढाई किमी वापस कहाँ गया ?
● जब कोई घुसा ही नहीं था तो हमारे अफसर और जवान क्या करने चीन के क्षेत्र में गए थे जहाँ 20 जवान और एक कर्नल संतोष बाबू शहीद हो गए ?
● अगर कोई घुड़ा ही नहीं था तो यह झड़प किस बात के लिये थी ?
● फिर तो वे घुसने की कोशिश कर रहे थे कि झड़प हुयी अगर ऐसा है तो ऐसा एक ही दशा में सम्भव है जब वे हमारे इलाके में घुसे और हम प्रतिरोध करें। यह तो घुसपैठ ही है और आक्रमण भी ?
● अभी दो तीन पहले तो उन्होंने कहा था कि मार कर मरे हैं। फिर यह मार की नौबत आयी क्यों ?
● अब कही चीन यही स्टैंड न ले ले कि हम तो अपनी ज़मीन पर ही थे। वे ही आये थे तो झड़प हो गयी।
प्रधानमंत्री के इस बयान से एक नया रहस्य गहरा गया है कि गलवां घाटी में असल मे हुआ क्या था, और अब वर्तमान स्थिति क्या है ? प्रधानमंत्री के इस बयान पर राजनीतिक दलों सहित बहुत लोगो की प्रतिक्रिया आयी। पर हम राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया को अलग कर दें तो सबसे चिंताजनक प्रतिक्रिया देश के भूतपूर्व सैन्य अफसरों की हुयी। सेना के अफसर गलवां घाटी के सामरिक महत्व को समझते है औऱ पीएम द्वारा यह कह दिए जाने से कि 'कोई घुसपैठ हुयी ही नहीं थी', हमारी सारी गतिविधयां जो भारत चीन सीमा पर अपनी ज़मीन को बचाने के लिये हो रही हैं, वह अर्थहीन हो जाएंगी। हालांकि इसके एक दिन बाद शनिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने उनके इस बयान पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि गलवान घाटी में हिंसा इसलिए हुई क्योंकि चीनी सैनिक एलएसी के पास कुछ निर्माण कार्य कर रहे थे और उन्होंने इसे रोकने से इनकार कर दिया। लेकिन इस स्पष्टीकरण से जो भ्रम फैला वह दूर नहीं हुआ।
अब कुछ भूतपूर्व सैन्य अधिकारियों की इस बयान पर उनकी प्रतिक्रिया देखें।
● कर्नल अजय शुक्ला का कहना है,
" क्या हमने नरेन्द्र मोदी को आज टेलिविज़न पर भारत-चीन की सीमा रेखा को नए सिरे से खींचते हुए नहीं देखा ? मोदी ने कहा कि भारत की सीमा में किसी ने अनुप्रवेश ( घुसपैठ ) नहीं किया । क्या उन्होंने चीन को गलवान नदी की घाटी और पैंगोंग सो की फ़िंगर 4-8 तक की जगह सौंप दी है, जो दोनों एलएसी में हमारी ओर पड़ते हैं, और जहां अभी चीनी सेना बैठ गई है ? मोदी यदि आज कहते हैं कि भारत की सीमा में किसी ने भी अनुप्रवेश नहीं किया है तो फिर झगड़ा किस बात का है ? क्यों सेना-सेना में संवाद हो रहा है, क्यों कूटनीतिक बातें चल रही है, सेनाओं के पीछे हटने का क्या मायने है, क्यों 20 सैनिक मारे गए ?
भारत के 20 सैनिकों ने भारत की सीमा में घुस आए अनुप्रवेशकारियों को पीछे खदेड़ने के लिये अपने प्राण गँवाए हैं । लेकिन मोदी कहते हैं कि भारत की सीमा में कोई आया ही नहीं । तब उन सैनिकों ने कहाँ जान गँवाई ? क्या मोदी चीन की बात को ही दोहरा रहे हैं कि उन्होंने चीन में अनुप्रवेश किया था ? "
● लेफ़्टिनेंट जैनरल प्रकाश मेनन ट्वीट कर के कहते हैं,
" मोदी ने समर्पण कर दिया है और कहा है कि कुछ हुआ ही नहीं है । भगवान बचाए ! उन्होंने चीन की बात को ही दोहरा कर क्या राष्ट्रद्रोह नहीं किया है ? इसमें क़ानूनी/ संवैधानिक स्थिति क्या है । कोई बताए ! "
● मेजर जैनरल सैन्डी थापर ने जो ट्वीट किया वह इस प्रकार है,
" न कोई अतिक्रमण हुआ और न किसी भारतीय चौकी को गँवाया गया ! हमारे लड़के चीन की सीमा में घुसे थे उन्हें ‘खदेड़ने’ के लिए ? यही तो पीएलए कह रही है । हमारे बहादुर बीस जवानों के बलिदान पर, जिनमें 16 बिहार के हैं, महज 48 घंटों में पानी फेर दिया गया ! शर्मनाक ! "
● मेजर बीरेन्दर धनोआ ने सीधे स्स्वाल पूछा है,
" क्या हम यह पूछ सकते हैं कि ‘मारते-मारते कहाँ मरें ? "
● मेजर डी पी सिंह जो उस इलाके में सेवा दे चुके है, की प्रतिक्रिया है,
" प्रधानमंत्री को सुना । मेरे या किसी भी सैनिक के जज़्बे को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा सकता है । मैंने सोचा था वे उसे और ऊँचा उठायेंगे । मैं ग़लत सोच रहा था । "
यह भी खबर आयी कि चीन के कब्जे में हमारे 10 सैनिक थे, जिन्हें चीन ने बाद में छोड़ा। इस पर आज तक भ्रम बना हुआ है। सरकार कह रही है कि, चीन के कब्जे में एक भी सैनिक नहीं था ? पर इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू की खबर है कि, 10 सैनिक जिंसमे कुछ कमीशंड अफसर भी चीन के कब्जे में थे, जिन्हें बाद में छोड़ा गया। अब अगर, सरकार को लगता है कि दोनो प्रतिष्ठित और बड़े अखबार गलत खबर दे रहे हैं तो सरकार उनसे इन खबरों का खंडन करने के कहे और ये खेद व्यक्त करें।
आखिर गलवां घाटी किसकी टेरिटरी में इस समय है ? हमारी या फिर चीन की ? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। क्योंकि सारा विवाद ही चीन द्वारा हमारे क्षेत्र में एलएसी पार कर घुसपैठ करने के कारण शुरू हुआ है। पर हमारे पीएम और चीन के प्रवक्ता एक ही बात कह रहे हैं कि कोई घुसा नहीं था तो फिर यह झड़प, 20 सैनिकों की शहादत, और सैनिक अस्पतालों में पड़े हमारे घायल सैनिक, हुए कैसे ?
प्रधानमंत्री के पहले, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री ने चीनी घुसपैठ की बात स्वीकार की थी, उनके बयान देखें।
इसी सम्बंध में 2 जून को रक्षामंत्री ने कहा,
" महत्वपूर्ण संख्या ( साइज़ेबल नम्बर ) में चीनी सेनाओं में लदाख में घुसपैठ की है, और अपने इलाके में होने का दावा किया है। "
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि, चीन की पीएलए हमारे इलाके में घुस कर बंकर बना रही है।
13 जून को, थल सेनाध्यक्ष जनरल प्रमोद नरवणे ने कहा,
" चीन से लगने वाली हमारी सीमा पर स्थिति नियंत्रण में है, दोनों पक्ष चरणों में अलग हो रहे हैं। हमलोगों ने उत्तर में गलवान नदी क्षेत्र से शुरुआत की है ।"
15 जून को यह दुःखद शहादत होती है और फिर प्रधानमंत्री का 19 जून को यह बयान आता है, जिससे भ्रम उत्पन्न हो गया है।
यह भी सवाल उठता है कि, क्या मंत्रिमंडल में गलवां घाटी और चीन को लेकर कोई मतभेद है या लोगों के अलग अलग स्टैंड क्यों हैं ?
यह घटना बेहद गम्भीर है और ऐसे अवसर पर संसद का आपात अधिवेशन बुलाया जाना चाहिए। संसद में सरकार गलवां घाटी और लद्दाख से लेकर अरुणांचल तक जहां जहाँ चीन घुसपैठ कर रहा है, वहां वहां के बारे में सरकार विस्तार से एक बयान जारी करे। जनता को संसद के अधिवेशन के माध्यम से सच जानने का अधिकार है और सरकार सच बताने के लिये बाध्य है। सरकार ने शपथ ली है कि, " मैं भारत की संप्रभुता एवं अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा। " लेकिन गलवां घाटी के बारे में प्रधानमंत्री का कथन देश की अखंडता के अक्षुण रखने की शपथ से मेल नहीं खाता है। जबकि शपथ की पहली पंक्ति ही यही है। अखंडता और अक्षुण्णता सरकार की पहली प्राथमिकता और परम दायित्व है।
अब पीएम के ही बयान के आधार पर चीन भी यही कह रहा है कि, वह तो भारत की सीमा में घुसा ही नहीं था। हालांकि सर्वदलीय बैठक में कही गयी बात संसद के दिये गए बयान की तुलना में कम महत्वपूर्ण है, इसलिए भी स्थिति को स्पष्ट करने के लिये संसद का आपात अधिवेशन बुलाया जाना ज़रूरी है। ताकि सरकार स्पष्टता के साथ, अपनी बात कह सके। इस अधिवेशन में केवल एक ही विषय सदन के पटल पर केंद्रित हो जो केवल चीनी सेना द्वारा हमारी सीमा के अतिक्रमण से जुड़ा हो। जैसे,
● चीन की लदाख क्षेत्र में घुसपैठ,
● गलवां घाटी की वास्तविक स्थिति,
● 20 शहीद और अन्य घायल सैनिकों के बारे में, क्यों, और कैसे यह दुःखद घटना घटी है।
● अरुणांचल में चीनी गतिविधियां
और अंत मे,
● सरकार का अगला कदम क्या होगा,
इस पर ही केंद्रित हो।
यह कोई सामान्य देशज प्रकरण नहीं है बल्कि यह मामला सामरिक महत्व के लद्दाख क्षेत्र के गलवां घाटी को चुपके से चीन के हाथों में जाते हुए देखते रहने का मामला है। संसद का अधिवेशन बुलाया जाय औऱ इस मसले पर लंबी बहस हो जिसे पूरा देश देखें। भूतपूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के ट्वीट और बयान जो आ रहे हैं वे व्यथित करने वाले हैं। सेना के वेटरन्स जिन्होंने कई कई सफल ऑपरेशन किये हों के, इन बयानों को गम्भीरता से लेना होगा। नेताओ का यह बयान कि हम देश के लिये जान दे देंगे अब तक का सबसे बड़ा जुमले वाला बयान है। देश के लिये जिन्हें जान देनी है वे बहादुर अपनी जान गंवा चुके हैं। पर वे शहीद कैसे हुए, जब न कोई घुसा और न किसी ने कब्ज़ा किया ? यह सवाल मुझे ही नहीं, सबको मथ रहा है।
लद्दाख में इतनी शहादत के बाद हमने अब तक क्या पाया है ? अब जो चीजें साफ हो रही हैं उससे यह दिख रहा है कि, लद्दाख क्षेत्र में जो हमारे सैन्य बल की शहादत हुयी है वह एक बड़ा नुकसान है। कहा जा रहा है कि सैनिकों के पीछे हटने हटाने को लेकर यह झडप हुयी थी। अखबार की खबर के अनुसार, 43 सैनिक चीन के भी मारे गए हैं। हालांकि, इस खबर की पुष्टि, न तो हमारी सेना ने की है और न चीन ने। यह एएनआई की खबर है। एएनआई को यह खबर कहां से मिली, यह नहीं पता है। शहादत की भरपाई, दुश्मन देश की सैन्य हानि से नहीं आंकी जा सकती है। एक भी जवान की शहादत युद्ध के नियमों में एक बड़ा नुकसान होता है। यह बस, एक मानसिक तर्क वितर्क की ही बात होती है कि, उन्होंने 20 हमारे मारे तो 43 हमने उनके मारे। पर यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि, अपने 20 जवानों को शहीद करा कर, और उनके 40 मार कर, हमने हासिल क्या किया ?
इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो, यह मामला दस पंद्रह दिन से चल रहा है और ऐसा भी नहीं कि, दबा छुपा हो । डिफेंस एक्सपर्ट अजय शुक्ल पिछले कई हफ्तों, से चीनी सेना की, लद्दाख क्षेत्र में, सीमा पर बढ़ रही गतिविधियों पर, जो स्थितियां है उसके बारे में लगातार ट्वीट कर रहे हैं। उन्होंने लेख भी लिखा और यह भी कहा कि, 60 वर्ग किमी चीन हमारी ज़मीन दबा चुका है। उनके अलावा अन्य रक्षा विशेषज्ञ चीन की हरकतों पर उसकी अविश्वसनीयता के इतिहास के मद्देनजर हमे सतर्क करते रहे है। लेकिन, सरकार ने इन सब चेतावनियों पर या तो ध्यान नहीं दिया, या ध्यान दिया भी तो समय से उचित रणनीति नहीं बना पायी।
गलवां घाटी के पास, आठ पहाड़ियों के छोटे छोटे शिखर जिन्हें फिंगर कहा जाता है, के पास यह सीमा विवाद है। सीमा निर्धारित नहीं है और जो दुर्गम भौगोलिक स्थिति वहां है उसमें सीमा निर्धारण आसान भी नहीं है तो, कभी हम , चीन के अनुसार, चीन के इलाके में तो कभी वे हमारे अनुसार, भारत के इलाके में गश्त करने चले जाते रहे हैं। लेकिन यह यदा कदा होता रहा है। सीमा निर्धारित न होने के कारण, यह कन्फ्यूजन दोनो तरफ है। लेकिन जब चीनी सैनिकों का जमावड़ा उस क्षेत्र में बढ़ने लगा और इसकी खबर भी असरकारी स्रोत से मिलने लगी तो उस पर सरकार ने क्या किया ? हो सकता है सरकार ने डिप्लोमैटिक चैनल से बात की भी हो, पर उसका असर धरातल पर नहीं दिखा। अन्ततः, 7000 की संख्या में,चीनी सेना की मौजदगी, वहां बताई जाने लगी। क्या इतनी शहादत और इतने नुकसान के बाद, हमने चीन को उनकी सीमा में खदेड़ दिया है और अपनी सीमाबंदी मुकम्मल तरीके से कर ली है ? इस सीधे सवाल का उत्तर अगर हाँ में है तो, यह एक उपलब्धि है अन्यथा यह शहादत एक गम्भीर कसक की तरह देश को सदैव सालती रहेगी।
युद्ध का मैदान शतरंज की बिसात नहीं है कि उसने हमारे जितने प्यादे मारे हमने उससे अधिक प्यादे मारे। युद्ध का पहला उद्देश्य है कि जिस लक्ष्य के लिये युद्ध छेड़ा जाय वह प्राप्त हो। यहां जो झड़प हुयी है वह अआर्म्ड कॉम्बैट की बताई जा रही है, जिसकी शुरुआत चीन की तरफ से हुयी है। हमारे अफसर, सीमा पर चीन को पीछे हटाने की जो बात तय हुयी थी, उसे लागू कराने गए थे। अब इस अचानक झड़प का कोई न कोई या तो तात्कालिक कारण होगा या यह चीन की पीठ में छुरा भौंकने की पुरानी आदत और फितरत, का ही एक, स्वाभाविक परिणाम है, यह तो जब सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी होगी तभी पता चल पाएगा। इसी संदर्भ में जनरल एच एस पनाग का यह बयान पढ़ा जाना चाहिए। जनरल कह रहे हैं,
" भारतीय सेना के इतिहास में, यह पहली बार हुआ है कि, एक कमांडिंग ऑफिसर की इस प्रकार मृत्यु हुयी है। यह चीन की सेना द्वारा की गयी एक हत्या का अपराध है। हमारे सैनिकों को, चीनी पोस्ट पर निःशस्त्र नहीं जाना चाहिए था। निश्चय ही ऐसा करने के लिये कोई न कोई राजनीतिक निर्देश रहा होगा , अन्यथा सेना इस प्रकार निहत्थे नहीं रहती है। "
इस समय सबसे ज़रूरी यह है कि
● हम जहां तक उस क्षेत्र में इस विवाद के पहले काबिज़ थे, वहां तक काबिज़ हों और चीन की सीमा पर अपनी सतर्कता बढ़ाएं।
● चीन को हमसे आर्थिक लाभ भी बहुत है। उसे अभी अभी 1100 करोड़ का एक बड़ा ठेका मिला है और गुजरात मे जनवरी में देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट बनाने का जिम्मा भी। इस परस्पर आर्थिक संपर्क को कम किया जाय न कि टिकटॉक को अन्स्टाल और झालरों के बहिष्कार तक ही सीमित रहा जाय।
● भारत को अपने सभी पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर बनाने और उन्हें साथ रखने के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा। इन्हें चीन के प्रभाव में जाने से रोकना होगा।
● पाकिस्तान से संबंध सुधरे यह फिलहाल तब तक सम्भव नहीं है। इसका कारण अलग और जटिल है।
अब आज की ताज़ी खबर यह है कि, भारत और चीन के बीच लद्दाख में चल रहे सीमा विवाद पर चर्चा करने के लिए एक बार फिर कोर कमांडर स्तरीय बैठक चुसुल-मोल्डो बॉर्डर प्वाइंट पर हो रही है। इससे पहले छह जून को हुई बैठक जो, मोल्डो में ही आयोजित की गई थी, में भारत की ओर से 14 कॉर्प्स कमांडर ले.जनरल हरिंदर सिह चीन के साथ बात कर रहे हैं। उस बातचीत में इस बात पर सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष सभी संवेदनशील इलाकों से हट जाएंगे। हालांकि, इसके बाद ही 15 जून की दुःखद घटना घट गयी। इस कोर कमांडर वार्ता में क्या हल होता है यह तो जब वार्ता के बाद आधिकारिक वक्तव्य उभय पक्ष द्वारा जारी किए जाएंगे तभी बताया जा सकेगा, लेकिन गलवां घाटी पर हमारी जो स्थिति इस विवाद के पूर्व थी, वह स्थिति बहाल होनी चाहिए। उस स्थिति पुनः प्राप्त करना भारत का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए। अगर दुर्भाग्य से ऐसा करने में हम चूक गए तो, यह चीन के विस्तारवादी स्वभाव और मंसूबे को और बढ़ावा देगा, जिसका घातक परिणाम भारत चीन सीमा और संबंधों पर पड़ेगा।

( विजय शंकर सिंह )

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