Wednesday, 24 June 2020

रक्षा बजट और भारत. / विजय शंकर सिंह


भारत के रक्षा बजट पर बात करने के पहले हमें यह ध्यान में रखना होगा कि हमारी सीमाओं पर खतरा कहां से है । पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान है जिससे हमें खतरा पूरे पश्चिमी सेक्टर पर है जो पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर, गुजरात की कच्छ घाटी तक फैला हुआ है और फिर अरब सागर में पाकिस्तान की नौसेना से है।

उत्तर में चीन से खतरा अक्साई चिन, लद्दाख से होते हुए, लिपुलेख के पास भारत नेपाल चीन की सेना, फिर चिकेन नेक जो 22 किमी का गलियारा जो पूरे नॉर्थ ईस्ट से हमें जोड़ता है, से होते हुए, सिक्किम भूटान और चीन की साझी सीमा पर डोकलां, और फिर अरुणांचल का, तवांग जिसे चीन तिब्बत का एक हिस्सा मान कर अपना हक जताता है, तक है । लेकिन इधर चीन का सबसे अधिक आक्रामक रुख लद्दाख क्षेत्र में ही है और यही आगे बढ़ते बढ़ते पाक अधिकृत कश्मीर तक चला गया है । इसका कारण उसकी बेहद महत्वाकांक्षी और विस्तारवादी योजना वन बेल्ट वन रोड ओबीओआर है जो उसे ग्वादर से अरब सागर और आगे जाकर यूरोप को जोड़ती है। भारत के लिये यह दो खतरे सबसे अधिक हैं जिनसे भारत को सदैव सतर्क रहना पड़ेगा।

रक्षा बजट में समीक्षा के पहले इतिहासकार जेफ़री ब्लेनी की लिखी ये दो पंक्तियां पढ़ लीजिए...
" युद्ध आमतौर पर तब समाप्त होते हैं जब युद्ध कर रहे देश एक दूसरे की ताक़त को समझ जाते हैं और उस पर सहमति बना लेते हैं. और युद्ध आमतौर पर तब शुरू होते हैं जब यही देश एक - दूसरे की ताक़तों को समझने से इनकार कर देते हैं. "
युद्ध के संबंध में जेफरी ब्लेनी की इन महत्वपूर्ण शब्दो को बराबर ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं कि, भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे अपने पड़ोसियों के बीच में फंसा हुआ है, और आज यह दोनों ही पड़ोसी देश परमाणु शक्तियों से लैस हैं। दक्षिण एशिया में भारत, चीन और पाकिस्तान तीनो ही देश परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं और भारत की दुश्मनी दोनो ही पड़ोसी देशों से है। दोनों ही देशों से दुश्मनी का आधार अलग अलग है। पाकिस्तान से पुरानी दुश्मनी है, चार बार लड़ाइयां हो चुकी हैं, और आतंकी गतिविधियों के रूप में एक छद्म युद्ध लगातार ही चल रहा है पर चीन के साथ कुछ सीमा विवाद है जो रह रह कर उभर जाता है। इस बार गलवां घाटी की यह बड़ी घटना हो गयी, जिसमे हमारी बड़ी सैन्य जन हानि हुयी है। इन दोनों ही देशों के साथ भारत युद्ध लड़ चुका है और वर्तमान में छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर इनके साथ भारत की तनातनी बनी रहती है

इन सबके बीच भारत के भीतर भी, जम्मूकश्मीर, नॉर्थ ईस्ट में तमाम आतंकी गतिविधियों की चुनौतियां मौजूद हैं जिन्हें सुलझाने के लिए समय समय पर, सेना की मदद सुरक्षा बलों को लेनी पड़ती है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए देश को एक मज़बूत सेना की आवश्यकता पड़ती है और हमारे पास एक सक्षम सेना है भी। फिर भी, उनकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई तरह की कोशिशें और योजनाएं सरकार चलाती रहती है। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।

सरकारें हर साल पेश किए जाने वाले आम बजट में ही रक्षा बजट के प्राविधान रखती है। रक्षा बजट में मोटे तौर पर दो तरह के मुख्य प्रविधान हैं, एक सैन्य बल के वेतन, भत्ते, पेंशन, और सभी तरह के इस्टेबलिशमेंट के खर्चे से संबंधित है और दूसरा शस्त्रास्त्र और उनके निरन्तर होते हुए आधुनिकीकरण के व्यय से जुड़ा है । आधुनिकीकरण पर व्यय की जब बात आती है तो सरकारे अक्सर अपना हांथ खींच लेती है और कोशिश करती हैं कि यह व्यय टल जाय और इसका पैसा कहीं और व्यय हो जाय। आधुनिकीकरण एक सतत प्रक्रिया है और रक्षा उत्पाद, उपकरणों आदि में निरन्तर शोध होते रहते हैं। उन्ही शोधों को प्रयोगशाला से ज़मीन पर उतारने की प्रक्रिया ही सतत हो रहे आधुनिकीकरण का एक पक्ष है। शोध और फिर उसके व्यावसायिक उत्पादन में व्यय होता ही है और वह व्यय धरातल पर न तो दिखाई देता है और न ही उसकी चर्चा होती है तो कभी कभी लगता है कि वह बेमतलब का खर्च है। पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। भारत मे भी डीआरडीओ सहित अनेक उन्नत प्रयोगशालाएं हैं जो निरन्तर शोध करती रहती हैं। ज़रूरत है कि, उन्हें वैज्ञानिक शोधों की ओर और पेशेवराना तरीके से प्रोत्साहित किया जाय।

'हम देश के जान दे देंगे' जैसे उत्साहपूर्ण शब्द तब तक केवल एक जुमले ही साबित होंगे जब तक कि हम रक्षा को अपनी प्राथमिकता में न ले आएं। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब देश की नई सरकार बनी तो हमारे पास एक फ़ुल-टाइम रक्षा मंत्री तक नहीं था। अरुण जेटली, जो कि वित्त मंत्रालय संभाल रहे थे उन्हें ही रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था। उस समय कई लोगों ने यह माना था कि इससे देश की सेना को फ़ायदा पहुंचेगा क्योंकि वित्त मंत्री के हाथ में ही रक्षा मंत्रालय भी रहेगा तो धन की कमी नहीं होगी। लेकिन क्या आगे चल कर ऐसा हुआ भी ? अब इसे देखते हैं।

● 10 जुलाई 2014 को अरुण जेटली ने नई सरकार का पहला बजट पेश किया. इसमें उन्होंने 2,33,872 करोड़ रुपए सेना के लिए आवंटित किए।
● यह आंकड़ा यूपीए सरकार के ज़रिए फ़रवरी 2014 में पेश किए गए अंतिम बजट से क़रीब 5 हज़ार करोड़ रुपए अधिक था।
● इस तरह एनडीए ने मोटे तौर पर सेना के लिए होने वाले ख़र्च में 9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की।
● इसके बाद एनडीए सरकार का पहला पूर्ण बजट 28 फ़रवरी 2015 में पेश किया गया. इस बजट में पिछले बजट की तरह ही रक्षा के लिए आवंटित ख़र्च 2,55,443 करोड़ रुपए रखा गया.
● इसके अगले साल 29 फ़रवरी 2016 को जब जेटली ने बजट पेश किया तो उन्होंने सेना पर ख़र्च का ज़िक्र नहीं किया. इस पर कई लोगों ने सवालिया निशान भी उठाए।

यह अनुमान लगाया जा रहा था कि रक्षा बजट में दो प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी। इस बजट को पेश करने से कुछ वक़्त पहले यानी 15 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलग-अलग सेनाओं के कमांडरों की संयुक्त बैठक में बोल चुके थे, कि,
"मौजूदा समय में तमाम बड़ी शक्तियां अपने सैन्यबलों को कम कर रही हैं और आधुनिक उपकरणों और तकनीक पर अधिक ध्यान लगा रही हैं. जबकि हम अभी भी अपने सैन्यबल को ही बढ़ा रहे हैं. एक ही समय पर सेना का विस्तार और उसका आधुनिकीकरण करना मुश्किल और ग़ैरज़रूरी लक्ष्य है."

● 1 फ़रवरी 2017 को जब वित्त मंत्री एक बार फिर बजट के साथ हाज़िर हुए तो उन्होंने रक्षा बजट के तौर पर 2,74,114 करोड़ रुपए आवंटित किए.

पिछले बजट से बिलकुल उलट इस बार के बजट में क़रीब 6 प्रतिशत की वृद्धि थी। रक्षा मंत्रालय के फंड से चलने वाले इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के लिए लिखते हुए रिसर्च फ़ैलो लक्ष्मण के. बेहरा ने इसे अपर्याप्त बजट बताया था।

● उसके बाद अपने कार्यकाल का पहला बजट और सरकार के कार्यकाल का आख़िरी बजट पेश करते हुए पीयूष गोयल ने कहा,
"पहली बार हमारा रक्षा बजट 3 लाख करोड़ के पार पहुंचने जा रहा है." इस बार के रक्षा बजट में 3,18,847 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. पिछले बजट के मुकाबले इसमें आठ प्रतिशत की वृद्धि है।

तो अब सवाल यह उठता है कि रक्षा बजट के मामले में क्या एनडीए की सरकार यूपीए से अधिक कारगर साबित हुई है?

रक्षा मंत्रालय में पूर्व वित्त सलाहकार रह चुके अमित कॉविश इस बारे में कहते हैं,
"दोनों सरकारों के बीच अगर हम आंकलन करें तो एक जैसा ही ट्रेंड देखने को मिलता है. हालांकि बजट आंवटन में जो अंतर नज़र आता है वह स्वाभाविक अंतर है. क्योंकि 15 साल में इतना अंतर तो आना ही था। "

अब वरिष्ठ सैन्य अफ़सरों और सांसदों (जिनमें बीजेपी के सांसद भी शामिल है) की राय पढिये तो यह पता चलता है कि रक्षा के प्रति हम कितने सजग और सतर्क हैं।

● नवंबर 2018 को भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा था,
"जीडीपी के प्रतिशत में भले ही गिरावट आई हो लेकिन जैसा कि हमसे वादा किया गया था रक्षा बजट लगातार ऊपर ही बढ़ा है. हम चाहते हैं इसमें और वृद्धि होती रहे, हालांकि कुछ अड़चनें ज़रूर हैं और हम सभी उनसे अवगत भी हैं.।"

● 25 जुलाई 2018 को बीजेपी के सांसद डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने कहा था, "जीडीपी के 1.56 प्रतिशत हिस्सा रक्षा पर खर्च किया जा रहा है। साल 1962 में चीन से युद्ध के बाद से यह सबसे निचले स्तर पर है। भारत जैसे बड़े देश के लिए सका रक्षा बजट बहुत अहम होता है।"

● मार्च 2018 को संसदीय समिति में आर्मी स्टाफ़ के उप प्रमुख ने कहा,
"साल 2018-19 के बजट ने हमारी उम्मीद को खत्म कर दिया. हमने जो कुछ भी प्राप्त किया था उन्हें थोड़ा-सा झटका तो लगा है. ऐसे में अब हमारी समिति के बहुत से पुराने खर्च और बढ़ जाएंगे।"

● मार्च 2018 को संसदीय समिति ने रक्षा बजट पर कहा था,
"बीते कुछ सालों में वायु सेना के लिए होने वाले खर्च के हिस्से में गिरावट आई है. वायु सेना को आधुनिक बनाने के लिए जिस खर्च की आवश्यकता है उसमें भी गिरावट दर्ज की गई है। साल 2007-08 में कुल रक्षा बजट में इसका हिस्सा जहां 17.51 प्रतिशत था वहीं साल 2016-17 में यह गिरकर 11.96 प्रतिशत पर आ गया.।

लेकिन, 2020-21 के रक्षा बजट में 6 फीसद की बढ़ोतरी की गयी है, जो एक अच्छी खबर है । इसको 2019-20 की तुलना में 3.18 लाख करोड़ से बढ़ाकर 3.37 लाख करोड़ कर दिया गया है। इस बजट में सेना के आधुनिकीकरण और नए और अत्याधुनिक हथियारों की खरीद के लिए सेना को 1,10,734 करोड़ का आवंटन किया गया है। वर्ष 2019-20 में इस क्षेत्र के लिए दिए गए बजट से ये राशि अधिक है। इस बजट में यदि रक्षा पेंशन को भी जोड़ा जाए तो इस बार का ये बजट करीब 4.7 लाख करोड़ का है। इस बार रक्षा पेंशन के बजट को पिछले वर्ष की तुलना में 1.33 लाख करोड़ से बढ़ाकर 1.77 लाख करोड़ किया गया है।

चीन की तुलना में भारत का रक्षा बजट काफी कम रहा है। चीन का रक्षा बजट भारत से तीन गुना ज्यादा है। वहीं भारत इस क्षेत्र पर अपनी जीडीपी का दो फीसद से भी कम खर्च करता आया है। हालांकि रक्षा जानकार हर बार रक्षा बजट को जीडीपी के तीन फीसद तक करने की मांग करते रहे हैं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना भारत में है। पाकिस्तान और चीन जैसे खतरों से निपटने के लिए भारत को अपने रक्षा बजट पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। भारत रक्षा बजट पर खर्च के मामले में दुनिया में 6 वें स्थान पर था, पर अब और ऊपर आ गया है । हाल ही में भारत ने सउदी अरब को पीछे छोड़ते हुए सबसे ज्यादा हथियार आयत करने वाले देशों में पहले नंबर आ गया है। हालांकि अब तमाम भारतीय और विदेशी कंपनियां भारत के रक्षा उपक्रमों में निवेश कर रही हैं। अर्जुन टैंक, तेजस फाइटर जेट इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसके अलावा भारत धनुष तोप, मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम पिनाका, इंन्सास राइफल, बुलेटप्रूफ जैकेट-हेलमेट, सेना के लिए विशेष ट्रक-गाड़ियां, मिसाइल, अरिहंत पनडुब्बी, एयरक्राफ्ट कैरियर जैसे तमाम हथियार और सैन्य उपकरण बना रहा है। वहीं अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन भारत में F-16 लड़ाकू विमान का कारखाना खोलने में रुचि दिखा रही है। कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत धीरे-धीरे रक्षा उपकरणों के मामले में आत्मनिर्भर हो रहा है।

अब दुनिया के कुछ प्रमुख देशों के रक्षा बजट पर एक नज़र डालें।

अमेरिका
दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका अपने रक्षा खर्चों में किसी तरह की ढील नहीं होने देता है। अमेरिका का कुल रक्षा बजट 596 बिलियन डॉलर है, जो कि अमेरिका के कुल जीडीपी का 3.3 फीसदी है।

चीन
ग्लोबल पॉवर बनने की चाहत रखने वाला चीन हर साल अपना रक्षा बजट बढ़ाता रहता है। चीन के बारे में ये भी कहा जाता है कि उसका छुपा हुआ रक्षा खर्च बताए गए रक्षा बजट से बहुत ज्यादा होता है। फिलहाल चीन रक्षा खर्च के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है चीन का कुल रक्षा बजट 215.0 बिलियन डॉलर है जो कि चीन की जीडीपी का 1.9 फीसदी है।

सऊदी अरब
तेल का उत्पादन करने वाला देश सऊदी अरब अपने रक्षा उपक्रमों पर जमकर खर्च करता है। सऊदी अरब का कुल रक्षा बजट 87.2 बिलियन डॉलर है जो कि उसकी कुल जीडीपी का 13.2 फीसदी है।

रुस
दुनिया का सबसे बड़ा देश रुस अपने रक्षा बजट पर खर्च के मामले में चौथे स्थान पर आता है। रुस का कुल रक्षा बजट 66.4 बिलियन डॉलर है जो कि उसके कुल जीडीपी का 5.4 फीसदी है। रुस दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े निर्यातको में से एक है।

यूनाइटेड किंगडम
यूरोप का सबसे शक्तिशाली देश ब्रिटेन अपने रक्षा बजट पर किसी भी यूरोपीय देश से ज्यादा खर्च करता है। ब्रिटेन का कुल रक्षा बजट 55.5 बिलियन डॉलर है जो कि ब्रिटेन की जीडीपी का 2.0 फीसदी है। रक्षा बजट पर खर्च के मामले में ब्रिटेन 5वें स्थान पर है।

फ्रांस
फ्रांस रक्षा बजट पर खर्च के मामले में 7वें स्थान पर आता है। फ्रांस का कुल रक्षा बजट 50.9 बिलियन डॉलर है जो कि फ्रांस की कुल जीडीपी का 2.1 फीसदी है।

जापान
रक्षा बजट पर खर्च के मामले में जापान दुनिया में 8वें स्थान पर है। जापान का कुल रक्षा बजट 43.6 बिलियन डॉलर है जो कि जापान की कुल जीडीपी का 1.4 फीसदी है।

जर्मनी
जर्मनी रक्षा खर्च के मामले में दुनिया में 9वें स्थान पर है। जर्मनी का कुल रक्षा बजट 39.4 बिलियन डॉलर है जो कि जर्मनी की जीडीपी का 1.2 फीसदी है।

दक्षिण कोरिया
युद्ध के मुहाने पर खड़ा दक्षिण कोरिया रक्षा बजट पर खर्च के मामले में 10 वें स्थान पर आता है। दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के बीच लगातार युद्ध की स्थिति बनी रहती है। दक्षिण कोरिया की सुरक्षा का ज्यादातर भार अमेरिका के हिस्से में है, खासकर कि अमेरिकी युद्धपोत हर वक्त दक्षिण कोरिया की समुद्री सीमा में तैनात रहते हैं।

रक्षा बजट को आंकड़ो की नज़र से नहीं खतरे की आशंका की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। ऊपर जिन देशों के नाम और उनके रक्षा बजट का उल्लेख किया गया है, उसमे किसी को भी अपने पड़ोस से उतना खतरा नहीं है, जितना भारत को है। इस खतरे को कम करने के लिये, राजनयिक और कूटनीतिक प्रयास तो होते ही रहते हैं पर जब तक देश रक्षा के मामले में साधन संपन्न नहीं होता कूटनीतिक बातचीत का कोई असर नहीं होता है।

और अंत मे एक लघु प्रसंग पढ़ लें।
जनरल मांटगोमरी एक परेड का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने एक सैनिक से जो उनके सामने तन कर और निगाह सौ गज दूर किये अविचल खड़ा था, पूछा,
" तुम देश के लिये क्या कर सकते हो ? "
सैनिक ने बिना हिले कहा,
" मैं देश के लिये जान दे सकता हूँ । "
जनरल ने सैनिक की बेल्ट खींची और कंधे पर हांथ मारते हुए, तेज़ आवाज में, जोश दिलाते हुए कहा,
" मूर्ख, देश के लिये जान देने की नही, जान लेने की ज़रूरत है। तुम लड़कर मरने के लिये प्रशिक्षित नहीं हुए हो । तुम दुश्मन को मार कर उसे भगाने के लिये गढ़े गए हो। समझे।

( विजय शंकर सिंह )




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