गलवां घाटी में 20 सैनिकों की शहादत के बाद चीन के विरुद्ध जनाक्रोश फैला हुआ है, जो स्वाभाविक है। लोग चीन की बनी वस्तुओं के बहिष्कार की बात कर रहे हैं। टिकटोक जैसे चीनी एप्प अनइंस्टाल किये जा रहे है। जनता में यह आक्रोश सड़क और सोशल मीडिया पर दिखाई भी पड़ रहा है।
इसी क्रम में एक खबर आयी कि भारतीय रेलवे ने 471 करोड़ का एक ठेका जो सिग्नल आदि बनाने के लिए चीन को 2016 ई में दिया गया था उसे रद्द कर दिया गया। भाजपा आइटीसेल ने इसे खूब प्रचारित किया और इस ठेके के निरस्तीकरण को सरकार का चीन के बहिष्कार के बारे में, पहला कदम घोषित कर दिया। लेकिन दूसरे ही दिन इसकी पोल खुल गयी कि इस ठेका निरस्तीकरण का गलवां घाटी की दुःखद घटना से कोई संबंध नहीं है।
यह ठेका चीनी कम्पनी, बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्युनिकेशन ग्रुप जो विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित है को दिया गया था। इस निरस्तीकरण में, विश्व बैंक, चूंकि उसका धन भी लगा है अतः वह भी एक पक्ष है, तो उसका भी अनुमोदन मांगने के लिये आवश्यक पत्राचार चल रहा है। भारतीय रेलवे का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट को खुद ही बनाएगी।
यह प्रोजेक्ट, दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन ( मुगलसराय ) से कानपुर के बीच बन रहे, 417 किमी लंबे, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के सिग्नल सिस्टम के निर्माता का है। 2016 में दिए गए ठेके का केवल 20 % क़ाम ही पूरा हो पाया है। द प्रिंट में छपी एक खबर के अनुसार, रेलवे ने इस ठेके के निरस्त करने का निर्णय पहले ही ले लिया था, और इसका गलवां घाटी की घटना के बाद चीन के बहिष्कार की मुहिम से कोई संबंध नहीं है।
आत्मनिर्भरता और अपने ही दम पर देश और समाज प्रगति करते जाए इससे सुखद बात कोई और नहीं हो सकती है। बस इस मुहिम को सफल बनाने के लिये हमें ठंडे दिमाग से भारत और चीन के बीच के व्यापार सम्बन्धो की तल्ख हक़ीक़त को समझना पड़ेगा। भारत से चीन का सालाना व्यापार करीब 55 अरब डॉलर का है। हर भारतीय औसतन ऐसी बहुत सारी चीजों को अपने दैनंदिन प्रयोग में लाता रहता है, जो चीन में ही बनती है और आयात होती हैं। अगर पूरा सामान नहीं आयात होता है तो हमारे यहां बनने वाले बहुत से सामान का कुछ न कुछ कम्पोनेंट चीन से ही आयात होता है, क्योंकि वे या तो स्वदेश में बनते नहीं या सरकारी नीतियों के कारण महंगे होते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत में अभी भी कई सामान ऐसे हैं, जिनका भारत में उत्पादन और बिक्री चीनी कंपनियों द्वारा की जाती है। हमने यह आंदोलन तो शुरू कर दिया पर उसका विकल्प क्या होगा, यह नहीं सोचा है।
उदाहरण के लिये, मोबाइल फोन लैपटॉप, डेस्कटॉप स्टेशनरी का सामान, बैटरी, बच्चों के खिलौने, फुटपाथ पर बिकने वाला सामान, गुब्बारे, चाकू और ब्लेड, कैल्कुलेटर, चिप्स का पैकेट बनाने वाली मशीन, छाता, रेन कोट, प्लास्टिक से बने सामान, टीवी, फ्रिज, एसी आदि, वॉशिंग मशीन, पंखे, कार में प्रयोग होने वाले कल-पुर्जे, खेल उत्पाद, किचन में प्रयोग होने वाला सामान, मच्छर मारने वाला रैकेट, दूरबीन, मोबाइल एसेसरीज, हैवी ड्यूटी मशीनरी, केमिकल्स, लौह अयस्क व स्टील, खाद, चश्मे का फ्रेम व लेंस, बाल्टी और मग, फर्नीचर (सोफा, बेड, डाइनिंग टेबल) रक्षा क्षेत्र, बिजली का सामान आदि आदि है। जब तक इनका स्वदेशी विकल्प उपलब्ध नहीं हो जाता तब तक चीन का बहिष्कार केवल एक नारा और भावुकता भरा उन्माद बन कर रह जायेगा।
यह कारोबार, जब से भारत चीन के बीच व्यापार का सिलसिला चला है, तब से न तो कम हुआ है और न ही रुका है।इस परस्पर कारोबार में, निरन्तर वृद्धि ही होती गयी है। भारत और चीन के बीच कारोबार में किस तरह बढ़ोतरी हुई है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इस सदी की शुरुआत यानी साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया। इस प्रकार, उपभोक्ता समान के आयात निर्यात के आंकड़ो में, चीन अमरीका की जगह लेकर भारत का अब सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है।
कुछ उदाहरण देखिए,
● 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुंच गये थे, और उभय देशों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।
● 2019 में भारत-चीन के बीच व्यापार 2018 की तुलना में करीब 3 अरब डॉलर कम रहा। दोनों देशों में आर्थिक नरमी से व्यापार प्रभावित हुआ है।
● व्यापार में गिरावट के बावजूद वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा (चीन को निर्यात की तुलना में वहां से आयात का आधिक्य) 56.77 अरब डॉलर के साथ ऊंचा बना रहा।
● चीन के सीमाशुल्क सामान्य विभाग (जीएसीसी) के मंगलवार को जारी आंकड़े के अनुसार भारत के साथ व्यापार में चीनी मुद्रा-आरएमबी-युआन के हिसाब से 1.6 प्रतिशत की हल्की वृद्धि हुई है जबकि डॉलर के हिसाब से
● जीएसीसी के उप-मंत्री जोऊ झिवु ने कहा कि चीन-भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले साल 639.52 अरब युआन (करीब 92.68 अरब डॉलर) रहा। यह सालाना आधार पर 1.6 प्रतिशत अधिक है।
● चीन का भारत को निर्यात पिछले साल 2.1 प्रतिशत बढ़कर 515.63 अरब युआन रहा जबकि भारत का चीन को निर्यात 0.2 प्रतिशत घटकर 123.89 अरब युआन रहा।
● भारत का व्यापार घाटा 2019 में 391.74 अरब युआन रहा। हालांकि डॉलर के संदर्भ में दोनों देशों के बीच व्यापार कम हुआ है।
● 2018 में द्विपक्षीय व्यापार 95.7 अरब डॉलर था। 2019 में इसके 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद थी यह 3 अरब डॉलर कम होकर 92.68 अरब डॉलर रहा।
● वर्ष-2019 में चीन से भारत को निर्यात 74.72 अरब डॉलर रहा।
● 2018 में चीन ने भारत को 76.87 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इसी दौरान भारत का चीन को निर्यात घट कर 17.95 अरब डॉलर के बराबर रहा। यह इससे पिछले वर्ष 18.83 अरब डॉलर था।
● वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 56.77 अरब डॉलर रहा। यह 2018 में 58.04 अरब डॉलर था।
चीन में भारत के राजदूत ने जून 2019 में दावा किया था कि इस साल यानी 2019 में भारत-चीन का कारोबार 100 बिलियन डॉलर पार कर जाएगा। लेेेकिन, इस बढ़ते कारोबार का आशय यह नहीं है कि, इसका लाभ भारत और चीन दोनो को बराबरी पर यह हमें अधिक हो रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी। इसका आशय यह है कि चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उसे पांच गुना ज़्यादा सामान बेचा. ऐसे में इस कारोबार में चीन को फ़ायदा हुआ। हम चीन को निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। आयात ही अधिक कर रहे हैं। भारत को अगर किसी देश के साथ सबसे ज़्यादा कारोबारी घाटा हो रहा है तो वह चीन ही है। यानी भारत, चीन से सामान ज़्यादा खरीद रहा है और उसके मुक़ाबले बेच बहुत कम रहा है।
2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ। दोनों देशों के बीच का यह व्यापारिक असंतुलन भारत के लिए सरदर्द बन गया है। भारत चाहता है कि वो इस व्यापारिक घाटे को किसी ना किसी तरह से कम करे। चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2017 के आखिर तक चीन ने भारत में 4.747 अरब डॉलर का निवेश किया। चीन भारत के स्टार्ट-अप्स में काफ़ी निवेश कर रहा है। हालांकि, भारत का चीन में निवेश तुलनात्मक रूप से कम है। सिंतबर 2017 के आखिर तक भारत ने चीन में 851.91 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। अब दोनों देश यह कोशिश कर रहे हैं कि वो आपसी निवेश को बढ़ाए।
चीन के साथ तनातनी के बीच कल रात केंद्र सरकार ने बीएसएनएल और एमटीएनएल जो पब्लिक सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियां है, में किसी भी चीनी उपकरण के प्रयोग पर तत्काल रोक लगा दी है। यह रोक 4 जी के बारे में लगायी गई है। यह निर्णय अच्छा है। स्वागत योग्य है क्योंकि इससे हमें खुद का वह उत्पाद बनाने का प्रोत्साहन मिलेगा जो हम चीन से मंगाते थे। पर सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि, जिन चीनी उत्पादों का प्रयोग बीएसएनएल और एमटीएनएल कर रहे थे क्या उनके विकल्प भारत मे बन रहे हैं ?
और अगर बन रहे हैं तो उनकी गुणवत्ता क्या है ?
हालांकि चीनी उत्पाद गुणवत्ता में बेहतर नहीं होते हैं। वे सस्ते ज़रूर होते हैं।
यही बंदिश जियो, एयरटेल, वोडाफोन या और भी जितनी निजी टेलीकॉम कम्पनियां हैं पर भी लगनी चाहिए। उन्हें भी यह कहना होगा कि वे भी धीरे धीरे इसी बहिष्कार नीति पर चलना शुरू करें। अगर ये निजी कम्पनियां इसे नहीं मानती हैं तो ऐसे उत्पाद पर सरकार अतिरिक्त आयात शुल्क लगा दे, जिससे वे कम्पनियां, भारतीय उत्पाद का प्रयोग करने के लिये बाध्य हो जांय।
अगर ऐसा नहीं किया गया तो सरकारी कम्पनियां बीएसएनएल और एमटीएनएल, फिर इन निजी कम्पनियों से स्पर्धा नहीं कर पाएंगी और वे अभी खस्ता हाल और उपेक्षित तो हैं हीं, आगे और धीरे धीरे डूबने लगेगीं, जिसका सीधा लाभ जियो और अन्य निजी कम्पनियों को होगा। लेकिन क्या सरकार जो खुल कर जियो के पक्ष में खड़ी है ऐसा कोई निर्णय लेगी। मुझे सन्देह है। यह कदम भी कहीं आपदा मे अवसर के रूप में, सरकार के सबसे प्रिय एजेंडे, निजीकरण की ओर बढ़ता एक कदम तो नहीं है ?
अब कुछ आश्चर्यजनक विरोधाभास भी देखिए। सरकार ने चीन की ही हुवेई ( Huawei ) कंपनी को कुछ महीने पहले ही टेलीकॉम क्षेत्र में, देश भर मे ट्रायल शुरू करने की अनुमति दे चुकी है। क्या यह भी रद्द होगा ? अगर रद्द होगा तो 5 जी के बारे में विकल्प क्या है ?
अब कुछ हालिया उदाहरण भी देखें। अर्थ समीक्षक, ज्योति प्रकाश ने कुछ विवरण दिए हैं जिनसे यह पता चलता है कि भारतीय बाजार और उद्योग क्षेत्र मे चीन की पैठ कितनी गहरी हो गयी है। इसे देखिए,
● चीन की ग्रेट वॉल मोटर ने महाराष्ट्र सरकार के साथ एक एमओयू साइन कर भारत के ऑटोमोबाइल में एक बड़ी डील की घोषणा की है।
● चीन की एसएआईसी मोटर कॉर्प गुजरात के पंचमहल जिले के हलोल में प्लांट लगा रही है ।
● फिक्की ( FICCI ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 6 सालों में देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में 40%, हिस्सा चीन के कब्जे में जा चुका है ओर यह अनुपात बढ़ भी रहा है।
● पेटीएम, पेटीएम मॉल, बिग बास्केट, ड्रीम 11, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, ओला, मेक माई ट्रिप, स्विगी, जोमेटो जैसी स्टार्टअप कंपनियों में चीन की अलीबाबा और टेंसट होल्डिंग कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी है।
● भारत में पिछले पांच साल में स्टार्टअप कंपनियों में चीन ने 4 बिलियन डॉलर यानी 30,000 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट किया है, जो कुल इन्वेस्टमेंट का 2/3 भाग है।
● ओप्पो, वीवो, शाओमी जैसे मोबाइल, जिनका भारत के 66% स्मार्टफोन बाजार पर कब्ज़ा है, वे चीनी कंपनियां हैं।
● देश भर की सभी पॉवर कंपनियां अपने ज्यादातर इक्विपमेंट चीन के बनाए खरीदती हैं। TBEA जो भारत की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक इक्विपमेंट एक्सपोर्टर कंपनी है, वह एक चीन समर्थित कंपनी है, जिसकी फैक्टरी गुजरात में लगी है।
● देश में बनने वाली दवा के 66% इनग्रेडिएंट्स चीन से आते हैं।
● भारत में उत्पादित समान का चीन तीसरा सबसे बड़ा इम्पोर्टर देश है। 2014 के बाद भारत का चीन से इम्पोर्ट 55% और एक्सपोर्ट 22% बढ़ा है। भारत चीन के बीच लगभग 7.2 लाख करोड़ का व्यापार होता है, जिसमें 1.5 लाख करोड़ भारत एक्सपोर्ट और 5.8 लाख करोड़ का इम्पोर्ट करता है।
● इंडियन इलेक्ट्रिक ऑटो सेक्टर तो पूरी तौर पर चाइनीज कंपनी के चंगुल में आता जा रहा है। गिले, चेरि, ग्रेट वॉल मोटर्स, चंगान और बीकी फोटॉन जैसी चीनी कंपनियां अगले 3 साल में 5 बिलियन डॉलर यानी 35 हजार करोड़ से अधिक इन्वेस्टमेंट करने जा रहीं। इनमें कई की फैक्ट्रियां मुंबई और गुजरात में लग रही हैं।
● अडानी समूह ने 2017 में चीन की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ईस्ट होप ग्रुप के साथ गुजरात में सौर ऊर्जा उपकरण के उत्पादन के लिए $ 300 मिलियन से अधिक का निवेश करने का समझौता किया था। रेन्युवेबल एनर्जी में चीन की लेनी, लोंगी, सीईटीसी जैसी कंपनियां भारत में 3.2 बिलियन डॉलर यानी 25 हजार करोड़ से अधिक इन्वेस्ट करने वाली हैं।
● अर्थ समीक्षक आनंद कृष्णन के एक लेख के अनुसार, 2014 में भारत चीन का इन्वेस्टमेंट 1.6 बिलियन था, जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद केवल 3 वर्ष यानी 2018 में पांच गुना बढ़कर करीब 8 बिलियन डॉलर हो गया।
● 2019 अक्टूबर में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र में चीनी औद्योगिक पार्क स्थापित करने के लिए चाइना एसोसिएशन ऑफ स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया, जिसमें उच्च तकनीक क्षेत्रों में चीन 10,500 करोड़ रुपये का निवेश करेगा।
● हाल ही में दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) प्रोजेक्ट के अंडरग्राउंड स्ट्रेच बनाने के लिए 1100 करोड़ का ठेका चीनी कम्पनी SETC को मिला है। वहीं महाराष्ट्र सरकार के साथ चीनी वाहन निर्माता कंपनी ग्रेट वॉल मोटर्स (जीडब्ल्यूएम) का 7600 करोड़ रुपये के निवेश का समझौता हुआ है।
गिरीश मालवीय के एक लेख के अनुसार, अभी अडानी ग्रुप को दुनिया का सबसे बड़ा सौलर संयंत्र देश मे स्थापित करने का ठेका दिया गया है। साल 2011-12 तक भारत जर्मनी, फ्रांस, इटली को सोलर पैनल एक्सपोर्ट करता था। यानी भारत माल भेजता था लेकिन 2014 के बाद से चीन की सौलर पैनल की डंपिंग के चलते भारत से सोलर पैनल का एक्सपोर्ट रुक गया है। सिर्फ चाइनीज सोलर पैनल की डंपिंग की वजह से देश में दो लाख नौकरियां खत्म हुई हैं। ओर यह सब किया गया इज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर।
आज हमने अपने सौलर पैनल उत्पादन को लगभग खत्म कर दिया है और सारा माल चीन से मंगाना शुरू कर दिया है।
चीन से इंपोर्ट होने वाले सोलर पैनल में एंटीमनी जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जिनके आयात की अनुमति नहीं होनी चाहिए। लेकिन उसके बावजूद यह अनुमति दी गयी नतीजा यह हुआ कि हमने अपनी सौलर पैनल इंडस्ट्री को पिछले 6 सालों में तबाह कर लिया। यह बात, अकाली दल के नरेश गुजराल की अध्यक्षता वाली संसद की वाणिज्य संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में उल्लिखित है।
यह समिति अपनी रिपोर्ट में कहती है कि ,
" यह समिति चीन से सस्ते सामान के आयात की भर्त्सना करती है।बहुत ही दुखद बात है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर हम चीनी सामान को अपने बाजार में जगह देने के लिए बहुत उत्सुक हैं जबकि चीन सरकार अपने उद्योग को भारतीय प्रतिस्पर्धियों से बहुत चालाकी से बचा रही है।"
समिति ने पाया कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) जैसी संस्थाएं घटिया चीनी सामान को भी आसानी से सर्टिफिकेट दे रही हैं जबकि हमारे निर्यात को चीन सरकार बहुत देरी से और काफी ज्यादा फीस वसूलने के बाद ही चीनी बाजार में प्रवेश करने देती है।
अब अगर हम सच मे चीन के बहिष्कार पर गम्भीरता से सोच रहे हैं तो हमे इस आपसी व्यापारिक आयात निर्यात के संबंध में निम्न बिंदु गंभीरता से सोचने पड़ेंगे।
● चीन के आयात होने वाले शुल्क में वृद्धि की जाय और आयात कम से कम होने दिया जाय।
● जो समान भारत मे बन रहा है, उसे प्रोत्साहित किया जाय।
● बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में चीन की कम्पनियों को ठेका न लेने के उपाय ढूंढे जांय।
● जो सामान आयात शुल्क देकर आ गए हैं उन्हें तो खपाना पड़ेगा, क्योंकि वे अगर डंप हुए तो नुकसान व्यापारियों का होगा, चीन का नहीं।
चीन के व्यापारिक विकल्प के लिए लंबी, कुशल और दूरदृष्टिसम्पन्न रणनीति बनाने की ज़रूरत है। नहीं तो यह मुहिम और सरकार का इरादा, भी एक जुमला ही बन कर रह जाएगा ? लेकिन जो सरकार अपनी मूर्खतापूर्ण आर्थिक नीतियों से, देश की चलती फिरती अर्थव्यवस्था को 8 से 3.5% जीडीपी पर ले आए, उससे आप केवल आत्मनिर्भरता और स्वदेशी जैसे सुभाषित ही सुन सकते है, और कोई ठोस काम की उम्मीद करना फिलहाल तो मृग मरीचिका में जल श्रोत ढूंढना है।
( विजय शंकर सिंह )
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