घोड़े खरीदने वे अस्तबल में आये हैं,
घोड़े उनके लिये बहुत ज़रूरी है।
बहुत अनुराग है उनको घोड़ो से,
इसी से तो
गाड़ियों की कम बिक्री पर
उनके कान पर कोई जूं भी न रेंगी,
डूबते व्यापार से, बढ़ते बेरोजगारों से,
कभी डूबते, तो कभी सूखते,
सिसकते किसानों से,
बाजार में पसरते सन्नाटे से।
काम धंधों की कोई फिक्र नहीं,
लुटते पिटते गरीबो का कोई दर्द नही,
पंक्तियों में खड़े मरते हुए लोगों पर,
मिहिरकुल जैसा पागल अट्टहास लिये,
वे घोड़ो और
लाउडस्पीकर की तलाश में जुटे रहे।
लुटने के बजाय उनकी हमदर्दी
लूटने वालों के साथ रही।
निश्चिन्त भाव से निर्द्वन्द्व हो,
लूट कर सकें उनके वे,
ज़रूरी है उसके लिये कि वे घोड़ों पर,
नज़र रखे, मोलभाव करते रहें,
धन की आपूर्ति के लिये वे तो हैं ही।
उन्हें पता है घोड़ो के दम पर तो
बड़े बड़े साम्राज्य बनाये
और बिगाड़े जाते हैं !!
© विजय शंकर सिंह
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