Saturday, 9 December 2017

प्रधानमंत्री जी के नाम एक खुला पत्र / विजय शंकर सिंह

यह एक खुला पत्र है। इसके लेखक है जयंत जिज्ञासु । लेखक से मैं परिचित नहीं हूं पर लेख मुझे अच्छा लगा और उस से सहमत भी हूँ तो उसे साझा कर रहा हूँ। यह पत्र देश मे बढ़ रहे सामाजिक दुर्भाव से जुड़ा है, धर्मान्धता से प्रेरित होकर होने वाली हिंसा और हत्या से जुड़ा है। राजसमंद की घटना निश्चित ही एक बर्बर और घृणित घटना है। उस से भी गर्हित वह इस लिये है कि वह हिन्दू धर्म और इसकी महान सभ्यता और संस्कृति के नाम पर की गयी हैं। पर पीएम का मौन अचंभित तो नहीं करता है पर उनके प्रति एक तरस भाव उत्पन्न करता है । आप यह पत्र पढ़े। 

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प्रिय प्रधानमंत्री जी, 
आप थोड़ा अपनी वाणी पर संयम रखें। आप 19 जीत जायें या मुमकिन है कि 24 भी, पर जो नुक़सान इस देश का हो रहा है, उसे आने वाले प्रधानमंत्री भी भर नहीं पायेंगे। राजस्थान में जो आज घटना हुई है, वो किसी इंसान की हत्या मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक सद्भाव की हत्या है। इस देश के आज़ाद 70 सालों की छोटी-मोटी उपलब्धियों की हत्या की क्रूर शुरुआत है।

रहम कीजिए इस देश पर, बख़्श दीजिए इस समाज को। आप चले जाएंगे आग लगाकर, पर बुझाने वाले पानी कहां से लाएंगे? इंसानियत के कुएं में कूड़ा डलवाकर आपने ढंकवा दिया है। अफ़सोस कि आज आपको डांटने के लिए संसद में कोई चंद्रशेखर, कोई भूपेश गुप्त, कोई मधु लिमये नहीं है, जिनकी डपट आपके गुरुदेव द्वय भी सर झुका कर सुन लेते थे, और आंशिक ही सही, अमल में लाने का भरोसा तो दिलाते थे।

आपने तो संसद को ही निलंबित अवस्था में डाल दिया है जिसके साथ जनहित के मुद्दे हवा में लटके हुए हैं। अपने ‘मन की बात’ को आपने संसदसत्र का पर्याय या स्थानापन्न बना दिया है। यह ठीक नहीं कर रहे आप, प्रधानमंत्री जी। एक तरफ आप मौनव्रत साधे रहते हैं, दूसरी तरफ ‘मनोरोगी’ हत्यारे ‘राजकीय संरक्षण’ के बल पर तांडव करते रहते हैं।

हिंदुस्तान की सारी गायों को आप अपने प्रधानमंत्री आवास में रख लें या गुजरात में अपने मित्र उद्योगपतियों को दे दें, प्रबंधन में माहिर अपने अध्यक्ष से कहें कि अडानी या अंबानी के घर बांध आएं, कुछ तो व्यवस्था करें। नहीं चाहिए हमें गाय-माल। इन गायों ने हमारे जानमाल की बहुत क्षति कर दी है। निरीह, निरपराध लोगों का जीना हराम कर रखा है।

अलौली के मेरे गांव स्थित घर में चार गायें हैं, आप बिहार भाजपा के अपने अध्यक्ष नित्यानंद राय से कहें कि वो हमारे खूंटे से खोलकर ले जाएं। कुपोषण का शिकार हमारा परिवार बिना दूध के भी स्वस्थ रह लेगा, पर अपने अक्लियत भाइयों-बहनों का ख़ून होते नहीं देख सकते।

दस-दस गाय सरदाना-चौधरी-अंजना-रुबिया-चौरसिया-रजत-गोस्वामी-चौरसिया, आदि के यहाँ बंधवा दीजिए। यही लोग गोभक्त भी हैं और देशभक्त भी, मुल्क की समझ बस इन्हीं लोगों के पास है। वो जो गांव में इन चिल्लाने वाले एंकरों के एजेंडे से बेख़बर अमन-चैन से रहना चाहते हैं; वो सब ‘जाहिल’ हैं और आपके ‘नेशन फ़र्स्ट’ के प्रोजेक्ट में बाधक हैं। मिटाना चाहें, तो मिटा दें इन्हें अपनी इमेजिनेशन से, पर इतनी बेरहमी से घुटा-घुटा कर इन्हें जीते जी क्यों मार रही है आपका कट्टर समर्थक होने का दावा करने वालों की टोली।

क्या आप इतना सब देखने के बाद भी चैन की नींद सो लेते हैं? माफ़ कीजै कि बहुतों को इंसोमनिया हो गया है, पर दूर-दूर तक कोई राहत और हल नज़र नहीं आते।

प्रधानमंत्री जी, आपके आने से जो सबसे बड़ा नुक़सान इस जनतंत्र को हुआ है, वो ये कि पहली बार लोगों ने प्रधानमंत्री को गंभीरता से लेना छोड़ दिया है। ऐसा तो देवगौड़ा जिन्हें झूठा ही कमज़ोर प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित किया गया; के साथ भी नहीं था। आज लोग चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, यह कोई अच्छी बात तो नहीं।

लोगों ने न्यायपालिका तक की मंशा पर संदेह करना शुरू कर दिया है। ऐसा मत कीजिए प्रधानमंत्री जी। सेक्युलरिज़म का मज़ाक उड़ाते-उड़ाते आपने ख़ुद को ही नहीं, प्रधानमंत्री नामक संस्था को मज़ाक का विषय बना दिया है।

यह सब बहुत दु: खी मन से आपके प्रति बिना किसी गुस्से के आज कह रहा हूँ। ख़ुद से नाराज़ हूँ।

एक तू ही नहीं जो मुझसे ख़फ़ा हो बैठा 
मैंने जो संग़ तराशा वो ख़ुदा हो बैठा। 
शुक्रिया ऐ मेरे क़ातिल ऐ मसीहा मेरे 
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा।

भवदीय
जयन्तु जिज्ञासु 
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