Tuesday 19 December 2017

काकोरी ट्रेन डकैती कांड और ठाकुर रोशन सिंह - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की मुख्य धारा और आज़ादी का आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं द्वारा चलाया जा रहा था। महात्मा गांधी उस आन्दोलन के सबसे बड़े नेता थे । लेकिन इस धारा के विपरीत क्रांतिकारी आंदोलन भी कम त्वरा से नहीं चलाया जा रहा था। यह आंदोलन अपने स्वरूप उद्देश्य और गतिविधियों के कारण अधिकतर खबरों से बाहर रहा और इसकी अधिकतर गतिविधियां गोपनीय थीं।  क्यों कि गोपनीयता ही किसी भी क्रांतिकारी आंदोलन की जान  होती है । गोपनीयता के कारण इस आंदोलन से जुड़े ऐतिहासिक सामग्रियों की उपलब्धता भी कम थी और जो कुछ था भी, उसका भी अध्ययन नहीं हो पाया । अधिकतर क्रांतिकारी युवा और किशोर थे जो अपने अंदर उमड़ रही देशप्रेम की भावना के कारण आज़ादी के लिये कुर्बान हो गए। कुछ क्रांतिकारी संगठन बने भी तो उनके गोपनीय दस्तावेज़ जो अंग्रेजों ने बरामद किये थे, उसे नष्ट कर दिया और जो बचा उसका भी मूल्यांकन नहीं हो पाया । दस्तावेजों के अभाव और घटनाक्रम के सिलसिलेवार विवरण की अनुपलब्धता के कारण, क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास उतना व्यवस्थित नहीं लिखा जा सका, जितना कि लिखा जाना चाहिये था । फिर भी क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े मन्मथनाथ गुप्त ने क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास लिखा और यशपाल ने अपनी पुस्तक झूठा सच और सिंहावलोकन में में ऐसे आंदोलन का विवरण दिया है । भगत सिंह के नेतृत्व का संगठन समाजवादी आंदोलन था जिसका लक्ष्य आज़ादी तो था ही पर यह मूलरूप से औपनिवेशिक साम्राज्यवाद, सामाजिक असमानता और शोषण के विरुद्ध था।

क्रांतिकारी आंदोलन की एक उल्लेखनीय घटना है, काकोरी ट्रेन डकैती कांड । स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन में सन1925 में यह महत्वपूर्ण घटना तब घटी, जब नौ अगस्त को चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 22 किमी दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था। ट्रेन से खजाना लूट की इस घटना से ब्रिटिश सरकार बुरी तरह तिलमिला गई और यह लूट ब्रिटिश सत्ता को एक दमदार चुनौती भी थी।  इस घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी केवल चंद्रशेखर आजाद को छोड़ कर, सभी  पकड़े गये । यह घटना जिन क्रांतिकारियों ने की थी वे सभी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) के सदस्य थे । कुल 45 सदस्यों पर ट्रेन डकैती का  मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई । डकैती के अपराध में फांसी की सजा का कोई प्राविधान भारतीय दंड संहिता में नही था । आज भी नहीं है । क्रांतिकारियों को फांसी देने के  लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय हुई, लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी दे दी गई । राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी दी गई। रोशन सिंह को भी 19 दिसंबर को फांसी पर लटका दिया गया. क्रान्तिकारी बिस्मिल, अशफाक व रोशन उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे.

काकोरी कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी उच्च शिक्षित थे. बिस्मिल जहां प्रसिद्ध कवि थे वहीं भाषाई ज्ञान में भी निपुण थे. उन्हें अंग्रेजी, हिन्दुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था. अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे.।क्रांतिकारियों ने काकोरी की घटना को काफी चतुराई से अंजाम दिया था. इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल दिये थे ।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की स्थापना अक्टूबर 1924 में भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिलयोगेश चन्द्र चटर्जीचंद्रशेखर आजादऔर शचींद्रनाथ सान्याल आदि ने कानपुर में की थी। पार्टी का उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति करके औपनिवेशिक शासन समाप्त करने और संघीय गणराज्य संयुक्त राज्य भारत की स्थापना करना था।। काकोरी काण्ड के पश्चात् जब इस दल के चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दे दी गयी तथा सोलह अन्य को कैद की सजायें देकर जेल में डाल दिया गया तब इसी दल के एक प्रमुख सदस्य चन्द्र शेखर आज़ाद ने भगत सिंह, विजय कुमार सिन्हा, कुन्दन लाल गुप्त, भगवती चरण वोहरा, जयदेव कपूर व शिव वर्मा आदि से सम्पर्क किया। इस नये दल के गठन में पंजाब, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, राजपूताना, बिहार एवं उडीसा आदि अनेक प्रान्तों के क्रान्तिकारी शामिल थे। 8 व 9 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक करके भगत सिंह की भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने सभा का विलय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में किया और काफी विचार-विमर्श के बाद आम सहमति से ऐसोसिएशन को एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन। क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल अंडमान से काला पानी की सजा भुगतकर लौटे थे और बनारस को उन्होंने अपना केंद्र बना कर फिर आज़ादी का शंखनाद फूंका था। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन द्वारा अंजाम दिया गया काकोरी काँड , भारत के क्राँतिकारी इतिहास में एक मील के पत्थर की तरह है।

काकोरी काँड की क्रांतिकारी कार्यवाही को अंजाम देने की योजना का सूत्रपात मेरठ शहर को वैश्य अनाथालय से हुआ, जहाँ कि मवाना के एक क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिष अधीक्षक के तौर पर कार्यरत थे। काकोरी काँड की तैयारी के सिलसिले में अनेक क्रांतिकारियों का वैश्य अनाथालय में बसेरा रहता था। क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिश को काकोरी काँड के मुलजिम के तौर पर 26 सितम्बर 1925 को पुलिस ने गिरफ्तार किया। काकोरी काँड की क्रांतिकारी कार्यवाही के दौरान किसी क्रांतिकारी का एक गर्म शॉल घटना स्थल पर गलती से छूट गया था। इस गर्म शॉल के ड्राई क्लीनर के पते से पुलिस ने पंहुच कर क्रांतिकारियों का सुराग हासिल कर लिया और एक के बाद दूसरे क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गये। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद और कुंदनलाल को पुलिस अंत तक गिरफ्तार नहीं कर सकी। कुंदनलाल का पता नहीं चला और आज़ाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जब वे पुलिस से घिर गए तो पहले उन्होंने पुलिस का मुकाबला किया फिर अंत मे ज़ीवित पुलिस के हांथों न पड़ें, तो स्वयं ही खुद को गोली मार कर जान दे दी। वे आज़ाद ही रहे।

काकोरी काँड का मुकदमा लखनऊ की सेशन कोर्ट में 19 महीने तक इंडियन पीनल कोड की धारा 121ए, 120बी, 395 आईपीसी के तहत चला। 6 अप्रैल 1927 को सेशन कोर्ट द्वारा क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रौशन सिंह और राजेंद्र लहडी़ को सजाए मौत दी गई। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के शीर्ष नेता शचींद्रनाथ सान्याल को आजन्म कारावास (काला पानी) की सजा, योगेश चटर्जी और मन्मथनाथ गुप्त को 20 साल की कैद ए बामशक्कत की सजा और बाकी क्रांतिकारियों को भी मुखतलिफ़ अवधियों की कठोर कारावास की सजायें सुनाई गई। मेरठ के क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिश को 10 वर्ष के लिए अंडमान में कैद ए बामशक्कत की सजा का ऐलान किया गया।

इसी क्रांतिकारी घटना के एक किरदार थे ठाकुर रोशन सिंह । रोशन सिंह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़े और उन्हें उस आंदोलन में जेल जाना पड़ा । उन्हें 1921-22 के असहयोग आंदोलन के समय बरेली शूटिंग केस में सजा सुनाई गयी थी। बरेली सेंट्रल जेल से रिहा होने के बाद 1924 में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गये। जबकि काकोरी हत्या कांड में उनका हाथ नही था लेकिन फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मौत की सजा दी।

रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को नवाडा गाँव के एक क्षत्रिय परिवार में कौशल्यानी देवी और जंगी राम सिंह के यहाँ हुआ था। यह छोटा सा गाँव उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में स्थित है। वे एक अच्छे शूटर और रेसलर थे। वे अच्छे घुड़सवार भी थे।

ठाकुर रोशन सिंह काकोरी ट्रेन लूट कांड  में शामिल ही नही थे फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और मौत की सजा सुनाई गयी। जब सजा सुनाई जा रही थी तब जज ने IPC के सेक्शन 121 (A) और 120 (B) के तहत पाँच साल की सजा सुनाई थी, और रोशन सिंह इंग्लिश शब्द “पाँच साल” आसानी से समझ सकते थे । सजा सुनने के बाद ठाकुर रोशन सिंह ने जज से उन्हें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के गुनाह जितनी सजा सुनाने की सिफारिश भी की थी । बिस्मिल को फांसी की सज़ा सुनायी जा चुकी थी। लेकिन तभी विष्णु शरण दुब्लिश ने उनके कानो में कहा, “ठाकुर साहेब! आपको पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जितनी ही सजा मिलेंगी” दुब्लिश के मुह से यह शब्द सुनते ही ठाकुर रोशन सिंह अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और पंडित को गले लगाते हुए ख़ुशी से कहाँ, “ओये पंडित! क्या तुम फाँसी तक भी अकेले जाना चाहोंगे? ठाकुर अब तुम्हे और अकेला नही छोड़ना चाहता। यहाँ भी वह तुम्हारे ही साथ जायेंगा।”

कारागार के सेल से रोशन सिंह के आखिरी शब्द थे,
“इंसान का जीवन ही भगवान की सबसे सुंदर रचना है और मै बहुत खुश हूँ की मै अपने जीवन का बलिदान भगवान की इस रचना के लिए कर रहा हूँ। मै अपने गाँव नबादा का पहला इंसान हूँ जो अपने भाई बहनों को इस तरह से गौरवान्वित करने जा रहा हूँ। इस नश्वर मानवी शरीर के लिए क्यू पछताना, जो कभी भी एक दिन नष्ट हो सकती है। मै बहुत खुश हूँ की मैंने अपना अंतिम समय ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने में बिताया। मै जानता हूँ की इंसान के कार्य करते समय ही उसके रास्ते में मौत आती है। आपको मेरी मौत के बारे में चिंता करने की कोई जरुरत नही है। मै भगवान की गोद में शांति से सोने जा रहा हूँ।”
यह उनके द्वारा अपने भाई हुकुम सिंह को लिखे गए एक पत्र का अंश है ।

काकोरी कांड के सभी अमर शहीदों को उनके अदम्य बलिदान हेतु वीरोचित श्रद्धांजलि ।

© विजय शंकर सिह

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