Thursday, 14 December 2017

निर्वाचन आयोग और गुजरात का चुनाव / विजय शंकर सिंह

डर है, एके जोति देश के अब तक के सबसे कमजोर और विवादास्पद मुख्य निर्वाचन आयुक्त न ठहराये जाँय। कल से उनके कुछ फैसलों को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगने लगे है। यदि ऐसा होता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा । रेफरी या अंपायर की निष्पक्षता तो होनी ही चाहिये, पर वह निष्पक्षता दिखनी भी चाहिये । कम से कम उस समय तो ज़रूर ही, जब दर्शक दीर्घा ठसाठस भरी हो और लोग पल पल पर सोशल मीडिया पर अपडेट ले रहे हों। 

कभी कभी लग रहा है, टीएन शेषन और जेएम लिंगदोह ही नहीं , उनके द्वारा स्थापित परम्पराएं अब अतीत बन रही हैं। कमज़ोर और आत्मसमर्पित चुनाव प्रशासन सत्ताधारी दल को सदैव भाता है। सत्ताधारी दल कोई भी हो। शेषन ने जिस दृढ़ इच्छाशक्ति और दिलेरी से निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुये निर्वाचन आयोग को एक अलग पहचान दिलायी थी, और उम्मीद की एक ज्योति जलाई थी उसे एके जोत सर के समय मे मद्धिम होने दिया जा रहा है। हम में से जो मित्र गण शेषन और लिंगदोह या उसके बाद भी कुछ समय तक चुनाव के प्रशासनिक प्रबंधन से जुड़े रह चुके हैं उन्हें एक शब्द अब भी याद होगा शेषनादेश । यह शब्द चुनाव प्रकिया के प्रारंभ होते ही शासनादेश से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता था। किसी भी संस्था का क्षय जब दिखायी देने लगता है तो उस संस्था के प्रति जनता में अविश्वास उत्पन्न होने लगता है। वह अविश्वास या साख का संकट न बने संस्था के प्रमुख की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यही होती है ।

मतदान के दिन वोट देने के बाद रोड शो करना प्रधानमंत्री जी का गैर जिम्मेदारी भरा कदम है। पीएम खुद जब आदर्श आचार संहिता को धता बताते हुये सड़क पर निकल जाए तो चुनाव आयोग लगभग असहाय हो जाता है। जिला मैजिस्ट्रेट, एसएसपी या पुलिस आयुक्त या आयोग के पर्यवेक्षक अगर सामने दिखें भी तो वे कुछ नहीं कर पाएंगे। यह मैं एक व्यावहारिक बात कर रहा हूँ। बहुत होगा आयोग एक नोटिस जारी कर देगा। यहां आयोग उतना दोषी नहीं है जितना कि पीएम । उन्हें स्वयं आचार संहिता का पालन करना चाहिये। न कि आचार संहिता का उल्लंघन ।

हम एक ऐसे पारदर्शी दौर में आ गए हैं कि आप अगर यह जानना चाहें कि मैं कहाँ पर बैठ कर यह पंक्तियां लिख रहा हूँ तो आप जान सकते हैं। विज्ञान और संचार की तकनीकी ने अपनी आंख हर जगह फैला रखी है । निवाचन आयोग को अपनी साख और विशेषकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त की निष्पक्षता बनी रहे यह आवश्यक है। जब भी उनका मूल्यांकन होगा तो शेषन और उनके द्वारा स्थापित मानदंड अवश्य याद आएंगे।

मैं भारत सरकार के पूर्व सचिव एईएस सरमा का एक पत्र यहाँ उद्धरित कर रहा हूँ जो उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर आयोग की चुप्पी को दृष्टिगत रखते हुये लिखा है ।

EAS Sarma, former Secretary to GoI, writes to the Election Commission of India on the Gujarat Election. MUST BE READ.

E.A.S.Sarma
14-40-4/1 Gokhale Road
Maharanipeta
Visakhapatnam 530002
Mobile: 919866021646
Email: eassarma@gmail.com

To

Shri A K Joti
Chief Election Commissioner
Election Commission of India

Shri P K Sinha
Cabinet Secretary

Shri Rajiv Gauba
Union Home Secretary

Dear S/Shri Joti/ Sinha/ Gauba,

Subject:- Violation of Representation of the People Act and Foreign Contribution (Regulation) Act (FCRA) in Gujarat elections

I enclose a Business Standard report dated 14-12-2017 (“Gujarat: Did Modi's seaplane fly from Karachi to escort him to Dharoi?”) which suggests that

i. During his travel in Gujarat in connection with BJP's election campaign, Shri Narendra Modi accepted an air ride from Ahmedabad to Dharoyi and back on a sea-plane on 12-12-2017. The sea-plane was an aircraft (Kodiak 100) owned by a foreign company, namely, Utah-based Quest Aircraft Company, operated by a Japanese plane-maker. Apparently, the aircraft is also owned by the Bank of Utah with registration in the US.

ii. The contents of the news report suggest that the Prime minister's aerial ride was intended to bypass the lack of police permission for a road show in Gujarat. It appears that the journey undertaken on the sea-plane became a part and parcel of the election campaign for BJP as it did have a visible impact on the people. The news report states that "BJP went a little overboard in highlighting Modi's last rally for Gujarat polls. BJP's twitter handle posted 'Modi becomes first passenger of India’s first ever seaplane!'” This leads to the inescapable inference that the sea-plane ride was intended to be a part of the election campaign.

iii. In other words, the expenditure incurred on the sea-plane ride, whether paid for or not, will have to be deemed to be a part of the election expenses for BJP's Gujarat election campaign, as envisaged in the Representation of the People Act and it therefore needs to be reckoned as such by the Election Commission of India (ECI)

iv. The news report estimates the cost of the sea-plane ride to be Rs 40 lakhs. Since an aircraft owned by a foreign company was involved, this amounts to a outright violation of the FCRA. FCRA prohibits political parties from accepting donations, direct or indirect, from a foreign source.

v. If either the Central govt agencies or the State govt agencies have paid for the expenditure incurred on the sea-plane ride, the ECI should take cognizance of the same and take such action that is appropriate against all those responsible for diverting public funds for private electioneering.

I request the ECI to treat the implicit cost of the sea-plane ride as a part of the election expense of BJP in the ongoing Gujarat election campaign and take necessary action under the Representation of the People Act. This is necessary in order to send a strong message that the ECI would not encourage expensive election campaigning in whatever manner it manifests itself.

Further, I request the Union Home Ministry to proceed against those who have violated the FCRA. Acceptance of donations from foreign sources, in whatever manner they flow in, is unacceptable from the point of view of long-term national security.

If you fail to take the necessary action, I will be constrained to seek judicial intervention under the Representation of the People Act as well as under FCRA.

Regards,

Yours sincerely,

E A S Sarma
Former Secretary to GOI
Visakhapatnam
14-12-2017
***

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