अमित शाह जो स्वयं एक चतुर दलाल हैं , एक चतुर चाय वाले के साथ मिल कर, अत्यंत चतुराई से कभी बनियों की पार्टी कही जाने वाली पार्टी , भाजपा और उसकी सरकार चला रहे हैं , ने इसे किस अवचेतन भाव से कहा यह तो वही जानें पर उन्होंने जो कहा , उसे खुद गाँधी जी ने भी एक बार , जब वे 1932 में इंग्लैंड , द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने जा रहे थे , तो मालवीय जी से , इन शब्दों में, " मैं एक बनिया हूँ, घाटे का सौदा नहीं करता " कहा था । इस चतुर बनिये ने दुनिया के सबसे ताकतवार बनिये के साम्राज्य की चूलें हिला कर रख दी थीं, भारत में भी और दक्षिण अफ्रीका में भी ।
अमित सर, गांधी आप और आप के जमात की मज़बूरी हैं । पूरी जमात मन मसोस के रह जा रही है कि इनका क्या करें । ये न उगलते बनते हैं न निगलते । जब कहीं कोई राह नहीं दिखती तो गांधी जी का ही नुस्खा आप की जमात भी अपनाती है । यक़ीन न हो तो शिवराज चौहान जी से पूछ लें । वैसे भी उन्होंने यह कदम आप से पूछ कर ही उठाया होगा । गांधी आधुनिक भारतीय इतिहास के एक ऐसे ठीहा हैं , जिनकी आप चाहे जितनी आलोचना करें , चाहे जितना उनका उपहास उड़ायें, चाहे जितने फोटोशॉप कर के उनके यौन प्रयोगों या संबंधों को प्रचारित करें, चाहे जितना उन्हें कोसें पर आप उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएंगे । इसी लिए देश के अंदर जो उन्हें नकार नकार कर , उनका उपहास उड़ा कर, उन्हें नज़रअंदाज़ कर के चातुर्य पूर्ण राजनीति कर रहे हैं , वही जब दुनिया के अन्य मुल्क़ों में जाते हैं तो उन्हें गांधी के अस्थिशेष प्रतिमा पर माल्यार्पण करना ही पड़ता है । दुनिया के अधिकाँश देशों में वे खड़े हैं ।
आज कोई भी दल गांधी के सिधान्तो पर नहीं चल रहा है । चल भी नहीं सकता । कभी कभी उनकी सदाशयता, अहिंसा और हद से अधिक सत्य का प्रयोग मुझे झुंझलाहट से भर देता है । लगता है यह आदमी कुछ दूसरी ही दुनिया का है । इस समाज के लिए मिसफिट है । अगर गांधी के आंदोलनों की पड़ताल करें तो एक भी आंदोलन उनके तय शुदा सिद्धांतों पर नहीं हुआ है । 1920 का असहयोग आंदोलन तो लक्ष्य प्राप्त के पूर्व ही चौरी चौरा हिंसा के बाद रद्द हो गया । गांधी तब नेपथ्य में चले गए । 1942 का आंदोलन में तो जितनी सामूहिक और अराजक हिंसा हो सकती थी, उतनी उस आंदोलन में हुयी । भारत उनकी आँखों के सामने बंट गया और वे , निरुपाय निःसहाय देखते रहे । फिर तो उनकी हत्या ही हो गयी । यह भी विडंबना ही है कि बंटवारे का सबसे अधिक दोष भी आप की ही जमात देती है जो आज़ादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ, और मुस्लिम लीग के साथ थी। यह भी एक चातुर्य है ।
लेकिन इन सब के बावज़ूद भी गांधी का करिश्मा कम नहीं हुआ । गांधी , शायद उन बिरले अभियुक्तों में से होंगे जिन्होंने अपने ऊपर लगाए देशद्रोह के आरोप को स्वीकार किया और दंड की मांग की । यह मामला है, 1922 में अहमदाबाद के जिला एवम् सत्र न्यायलय में गांधी के खिलाफ चले देशद्रोह का । सर थॉमस स्ट्रॉन्गमैन की लिखी किताब , " Indian Court and Characters " में इस मुक़दमे का पूरा विवरण दिया गया है । तत्कालीन सेशन जज , ब्रूमफील्ड आईसीएस , ने अदालत में, जब उन पर आरोप स्थापित कर के पूछा कि क्या वे ज़ुर्म स्वीकार करते हैं , तो गांधी जो खुद भी एक वकील थे ने अपनी क्षीण आवाज़ में सिर्फ एक वाक्य कहा, मुझे ज़ुर्म स्वीकार है । उन्हें सजा हो गयी । अब इस पर बहस करते रहिये कि यह उनकी चतुराई थी या सत्यवादिता या चरित्र । गांधी लोकप्रिय ही नहीं लोगों में उनके प्रति एक दीवानगी की हद तक का लगाव था । उन्होंने जो भी कार्यक्रम चलाये , जनता ने उसे अपना लिया । चाहे मामला अछूतोद्धार का हो, या विदेशी वस्त्रों और सामान के बहिष्कार का । नोआखाली हिंसा में जब वे घूम घूम कर साम्प्रदायिकता की आग से जूझ रहे थे तो, लॉर्ड माउंटबेटन ने उन्हें इस हिंसा के विरुद्ध वन मैन आर्मी कह कर संबोधित किया था । राजनेता का चतुर होना तो आवश्यक है ही साथ ही नीयत का साफ़ होना भी आवश्यक है ।
अमित शाह सर आप भी चतुर हो जाइए । पर चातुर्य के अतिरेक को धूर्तता में न बदलने दीजिये । आज आधी से अधिक समस्या सरकार की चातुर्य दिखाने वाले बड़बोलेपन के कारण है । किसान आंदोलन के लिये हो सकता है कांग्रेस जिम्मेदार हो, पर किसानों को स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का लॉलीपॉप दिखाने का दोष आप का ही है । आप अपने संकल्प पत्र के पन्ने पलटें तो आप खुद पाएंगे कि बहुत से वादे आप पूरा कर ही नहीं सकते हैं । लेकिन आप के दल ने उन्हें सिर्फ इस लिये छाप दिया है कि कौन पूछता है । आप के अंध समर्थक उसे नहीं देखेंगे पर अंध विरोधी वही देखेंगे । वे उसी को बार बार याद दिलाएंगे । यह अलग बात है कि केंद्रीय कृषि मंत्री से जब मन्दसौर के बारे में पूछा जाता है तो वे योग का मेला कह कर जान छुडाते भागते नज़र आते हैं । क्या इसे भी उनकी चतुराई कही जाय ? राजनीति में तो सभी चतुर हैं । कोई कम तो कोई अधिक । ठगा तो केवल वह आदमी जाता है, जिसके आँख का काजल वोट के रूप में बेहद चतुराई से आप हड़प लेते हैं । आप से मेरा तात्पर्य आप से व्यक्तिगत नहीं , बल्कि आप की राजनीतिक बिरादरी से है ।
( विजय शंकर सिंह )
No comments:
Post a Comment