पाकिस्तान के साथ जब सभी प्रकार का कूटनीतिक वार्तालाप बन्द है तो फिर क्रिकेट ही क्यों ?
इस सवाल का उठना स्वाभाविक है । सीमा पर सब कुछ नियंत्रण में है, यह गृह मंत्री जी ने कहा हैं। सब कुछ नियंत्रण में है पर सब सामान्य नहीं है । अभी कल दिनांक 03 जून को ही सीमा पार आतंकवाद की घटनाओं में 2 जवान शहीद हो गए हैं । लगातार युद्ध के हालात हैं । ऐसे हालात सेना पर बहुत अधिक मानसिक और शारीरिक दबाव देते हैं । सेनाध्यक्ष अभी पिछले दिनों कश्मीर के दौरे पर थे । उन्होंने जवानों का मनोबल बढ़ाया । सात महत्वपूर्ण कमांडरों की मीटिंग की और स्थिति की समीक्षा की । ऐसी सारी मीटिंग्स गोपनीय होती है । हुर्रियत को पाक फंडिंग की भी जांच हो रही है । यह एक खुला तथ्य है कि, पाकिस्तान और आईएसआई हुर्रियत को उनके जन्म से ही फंडिंग करती आ रही है । हुर्रियत नेता मनमर्ज़ी से पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर आते जाते रहते हैं । यह एक सुविधाभोगी जमात है । इनका जितना असर अखबारों और टीवी चैनेल्स पर दिखता है उतना ज़मीन पर नहीं है । इन सारे हंगामें और दहशतगर्दी के बीच हम जब पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने के लिए लालायित हैं तो यह सवाल उठना लाज़िम है ।
हाल ही में हुयी अफगानिस्तान में एक आतंकी घटना में , जिसमे पाकिस्तान का हाँथ था 80 लोग मारे गए । अफगानिस्तान ने इस घटना के बाद पाकिस्तान से हर तरह के क्रिकेट सम्बन्ध तोड़ लिए । देशी और विदेशी दोनों । यह निर्णय अफगानिस्तान सरकार ने तुरन्त ले लिया ।
हम लगातार पाक प्रायोजित आतंक झेल रहे हैं । हर महीने हमारे जवान शहीद हो रहे हैं । हम पाक को दुश्मन देश कहते हुए टीवी पर नहीं थकते हैं । बड़बोले एंकर और वाचाल प्रवक्ता तो लगता है टीवी के स्टूडियो से ही ब्रह्मोस दाग देंगे और नक़्शे से पाकिस्तान ग़ायब हो जाएगा । लेकिन दुश्मनी के बावज़ूद, फिर भी , हम आगामी 4 जून को उसके साथ क्रिकेट खेलने जा रहे हैं !
हमारे नेता यह मासूम तर्क देते हैं कि बीसीसीआई एक स्वायत्त संस्था है । उस पर सरकार का नियंत्रण नहीं चलता । इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा !
पर सच तो यह है कि पक्ष विपक्ष के कई बड़े नेताओं के हित बीसीसीआई से जुड़े हैं । धन है यहां । यहां खिलाड़ी देवता और भगवान बनाये जाते हैं । सट्टेबाज़ों की लीलाभूमि है यह। जैसे इंद्र अपने तमाम कुकर्मों के बाजवूद भी पूज्य है क्यों कि वह जल बरसाता है उसी तरह कंचन मेह बरसाने वाले इस खेल से हमारा राजनैतिक नेतृत्व भला कैसे किनारा कर सकता है ? सर्वे गुणा कांचनामाश्रयान्ति ! कुछ साल पहले तक क्रिकेट बोर्ड खुद को एक अलग संसार समझता था । जब सुप्रीम कोर्ट ने नकेल कसी तो उनके पाँव ज़मीन पर आये ।
सिंधु जल समझौता खत्म करने की बात चली । बाद में पता चला कि उसमे कई कूटनीतिक पेंच हैं । उसे नहीं खत्म किया जा सकता है । संशोधन पर मंथन जारी है । देखिये क्या होता है ।
हमारे उद्योगपति वहाँ उद्योग लगा रहे हैं । उन पर भी हम नकेल नहीं कस सकते क्यों कि राजनीतिक दल उनसे उपकृत होते रहते हैं ।
पाकिस्तान हमारा सबसे अज़ीज़ और पसंदीदा मुल्क आज भी बना हुआ है । यह मुहब्बत है या दुश्मनी यह पता नहीं । यह दर्ज़ा भी हम समाप्त नहीं कर पा रहे हैं । हो सकता है इसमें भी कोई पेंच हो ।
अब कहा जा रहा है कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक शुरू की है । घुस के मारना शुरू किया है । उनके बंकर तबाह किये । उनके लोगों को मारा । बदला ले लिया । बहुत अच्छी बात है । इसे बनाये रखिये । पर सेना के ही भरोसे सारा भारत - पाक - कश्मीर मसला हल नहीं होगा । सेना हमारे अनेक प्रयासों के बीच एक कदम है । एक मज़बूत कदम है । वह अपना काम कर भी रही हैं। वह दुश्मन से लड़ने के लिए गठित और प्रशिक्षित है और वह यह काम बखूबी कर भी रही है ।
पर कूटनीतिक मोर्चे पर हम कहाँ है ? मित्र कहेंगे कि वह गोपनीय होता है । जब होगा तो पता चलेगा । यह तर्क मान्य है । पर कूटनीतिक कदम का साया तो दिखना चाहिए । अभी तक तो धूप ही धूप है । कुछ दिखा ही नहीं ।
हमने संगीत, साहित्य , सिनेमा सब की आवाजाही पर रोक लगा रखी है । पर यह देवलोक से उतरा , क्रिकेट हमारे बस में नहीं हैं । यह झींगुर की तरह बस में ही नहीं आता हैं। यह भी एक संयोग ही है कि अंग्रेज़ी में झींगुर को क्रिकेट ही कहते हैं ।
पाकिस्तान द्वारा लगातार की जा रही आतंकी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में यह सर्वथा उचित होगा कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना बन्द किया जाय । जब दोनों देशों में कोई भी वार्ता ही नहीं हो रही है तो फिर क्रिकेट ही क्यों हो ?
एक पुराना किस्सा भी पढ़ लें । मेरे मित्र नज़ीर मलिक ने बताया है ।
" 70 का दशक था। भारत की टीम पहली बार डेविस कप टीम के फाइनल में पहुची थी। मुकाबला दक्षिण अफ्रीका से था। अचानक भारत सर्कार, जिसे आज कुछ लोग देशद्रोही कहते हैं, ने कहा कि नस्लभेदी सरकार की टीम से हम फाइनल मैच नही खेलेंगे। नतीजे में दक्षिण अफ्रीका विजेता घोषित हुआ।उसके बाद से भारत कभी फाइनल में नहीं पहुंचा। "
आज 4 जून को भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच है। देश में राष्ट्रवादियों की सरकार है। कभी इसी भाजपा ने क्रिकेट कूटनीति की निंदा की थी पर आज उसे इस मैच को लेकर उसे कोई दिक्कत नहीं है । पाकिस्तान को नक़्शे से मिटा देने का दम भरने वाले आज मैच खेल रहे हैं औऱ सोशल मीडिया पर यह दावा करते नहीं थक रहे हैं कि अब वे पकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देंगे। यह कौन सा देशप्रेम है और किस तरह का राष्ट्रवाद है यह तो वे और उनके मित्र ही जानें । यह सुविधा का राष्ट्रवाद है ।
( विजय शंकर सिंह )
No comments:
Post a Comment